बाल विवाह (Child marriage)

बाल विवाह (Child marriage)

संदर्भ:Child marriage हाल ही में, यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक की तुलना में विश्व स्तर पर बाल विवाह का प्रचलन कम होगया है।

बाल विवाह (Child marriage)

दक्षिण एशिया ने पिछले 10 वर्षों में दुनिया भर में बाल विवाह में सबसे बड़ी गिरावट देखी है, क्योंकि एक लड़की के 18वें जन्मदिन से पहले शादी होने का जोखिम 50 प्रतिशत से 30 प्रतिशत, यानि कि लगभग एक तिहाई से अधिक घट गया है, जिसमें भारत में हुई प्रगति का महत्वपूर्ण योगदान है।बाल विवाह (Child marriage)

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बाल विवाह की परिभाषा

किसी लड़की या लड़के की शादी 18 साल की उम्र से पहले होना बाल विवाह कहलाता है। बाल विवाह में औपचारिक विवाह तथा अनौपचारिक संबंध भी आते हैं, जहां 18 साल से कम उम्र के बच्‍चे शादीशुदा जोड़े की तरह रहते हैं।

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रिपोर्ट की अहम बातें

बाल विवाह (Child marriage)

बाल विवाह: मुद्दे

  • विश्व स्तर पर, बालकों के मध्य बाल विवाह का प्रचलन बालिकाओं की तुलना में मात्र छठा भाग है।
  • बाल विवाह से बालिकाओं की बाल्यावस्था को छीन लिया जाता है एवं उनके जीवन तथा स्वास्थ्य को खतरा होता है।
  • यह प्रथा बालिकाओं को परिवार एवं मित्रों से भी अलग कर सकती है तथा उन्हें अपने समुदायों में भाग लेने से बाहर कर सकती है, जिससे उनके शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक कल्याण पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है।
  • 18 वर्ष से पूर्व विवाह करने वाली बालिकाओं में घरेलू हिंसा का अनुभव होने की संभावना अधिक होती है तथा विद्यालय जाने की संभावना कम होती है।
  • बाल वधू प्रायः किशोरावस्था के दौरान गर्भवती हो जाती हैं, जब उनके एवं उनके शिशुओं के लिए मृत्यु का जोखिम होता है।
  • बालिकाओं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से तैयार होने से पूर्व ही वयस्क होने हेतु बाध्य किया जाता है।
  • बाल विवाह भारतीय अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है एवं निर्धनता के एक अंतरपीढ़ी चक्र को जन्म दे सकता है।
  • बच्चों के रूप में विवाहित बालिकाओं एवं बालकों के पास अपने परिवारों को निर्धनता से बाहर निकालने  एवं अपने देश के सामाजिक तथा आर्थिक विकास में योगदान करने के लिए आवश्यक कौशल, ज्ञान एवं नौकरी की संभावनाओं की कमी होने की अधिक संभावना है।बाल विवाह (Child marriage)

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दुनिया भर में बाल विवाह की स्थिति:

  • यूनिसेफ के अनुसार, दुनिया भर में हर साल लगभग 12 मिलियन लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती है। और यदि त्वरित प्रयास नहीं किए गए, तो वर्ष 2030 तक 18 वर्ष की आयु से पहले ही लगभग 150 मिलियन और लड़कियों की शादी कर दी जाएगी।
  • हालांकि दक्षिण एशिया ने पिछले दशक में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जहां बाल विवाह की संख्या लगभग 50% से घटकर 30% हो गई है, लेकिन क्षेत्र में इस दिशा में होने वाली प्रगति असमान है।
  • स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, बाल विवाह न केवल बच्चों के अधिकारों के विरुद्ध है, बल्कि इससे अधिक संख्या में मातृ और शिशु मृत्यु भी होती है। इसके अलावा, किशोर माताओं से पैदा होने वाले बच्चों में विकास के अवरुद्ध होने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि जन्म के समय उनका वजन कम होता है। NFHS के अनुसार 2019-21 में बच्चों में बौनापन की दर 35.5% थी।
  • सतत विकास लक्ष्य (SDGs) के तहत निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने और 2030 तक इस प्रथा को समाप्त करने के लिए बाल विवाह को कम करने के प्रयासों में काफी तेजी लाई जानी की आवश्यकता है।

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भारत से संबंधित आँकड़े:

  • हालाँकि बाल विवाह के संबंध में भारत में गिरावट की प्रवृत्ति देखी जा रही है, फिर भी लगभग 141.2 करोड़ की आबादी वाले देश में 23.3% की दर अत्यधिक उच्च प्रतिशत को दर्शाती है।
  • भारत में 8 राज्यों में राष्ट्रीय औसत की तुलना में बाल विवाह के अधिक मामले हैं। बाल विवाह के उच्च मामले वाले राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा हैं। यह पाया गया है कि 20-24 वर्ष के आयु वर्ग की 40% से अधिक महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले कर दी गई थी।
  • बड़े राज्यों में, बिहार और पश्चिम बंगाल में बालिकाविवाह का प्रचलन बहुत अधिक है। बड़ी आबादी वाले आदिवासी राज्यों में भी बाल विवाह बहुत लोकप्रिय हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड में 32.2% महिलाएं (20-24 आयु वर्ग में) हैं, जो बाल वधू बनीं। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि शिशु मृत्यु दर 37.9% है और 15 से 19 आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया की दर 65.8% (NFHS-5 के अनुसार) है।
  • इसी तरह, असम में बाल विवाह की घटनाओं में में वृद्धि दर्ज की गई है। यहाँ बाल विवाह की दर 2015-16 में दर्ज 30.8% से बढ़कर 2019-20 में 31.8% हो गई।

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जिन राज्यों ने बाल विवाह के मामलों में गिरावट दर्ज की गई है, वे हैं:

  • मध्य प्रदेश: 2015-16 में दर्ज 32.4% से घटकर 2020-21 में 23.1% हो गया।
  • राजस्थान: इसी अवधि के दौरान यहाँ भी गिरावट दर्ज की गई और बाल विवाह की दर 35.4 फीसदी से घटकर 25.4 फीसदी हो गई।
  • ओडिशा: 2015-16 में दर्ज 21.3 फीसदी से घटकर 20.5 फीसदी हो गया। यह आँकड़ा राष्ट्रीय औसत से ठीक नीचे है।
  • बेहतर साक्षरता दर, स्वास्थ्य परिणाम और सामाजिक सूचकांक वाले राज्यों का प्रदर्शन अन्य राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है। उदाहरण के लिए:
  • केरल में 18 साल की उम्र से पहले शादी करने वाली महिलाओं की संख्या साल 2019-20 में महज 6.3 फीसदी थी। वर्ष 2015-16 में यह दर 7.6% थी।
  • इसी तरह, तमिलनाडु में 2015-16 में दर्ज 16.3% के मुकाबले वर्ष 2019-20 में यह आँकड़ा 12.8% दर्ज किया गया।
  • आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि बाल विवाह उच्च प्रजनन, खराब मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और महिलाओं की निम्न सामाजिक स्थिति का एक प्रमुख निर्धारक है।
  • आँकड़ों से पता चलता है कि प्राथमिक स्तर या उससे कम शिक्षा प्राप्त लड़कियों में बाल विवाह का उच्च स्तर है।बाल विवाह (Child marriage)

बाल विवाह (Child marriage)

भारत में बाल विवाह से निपटने हेतु नीतिगत हस्तक्षेप:

  • बच्चों को मानव और अन्य अधिकारों के उल्लंघन से बचाने के लिए विभिन्न कानून हैं। इनमें से कुछ कानून हैं : बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012
  • इसके अलावा, एक संसदीय स्थायी समिति महिलाओं की विवाह योग्य आयु को बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है। केंद्रीय कैबिनेट पहले ही इस प्रस्ताव को मंजूरी दे चुकी है।
  • भारत में विवाह विभिन्न पर्सनल लॉ द्वारा नियंत्रित हैं और सरकार उनमें संशोधन करने पर विचार कर रही है। हालांकि, कई विशेषज्ञों का तर्क है कि यह बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
  • बेटी बचाओ बेटी पढाओ जैसी कई केंद्रीय योजनाएं भी हैं जो बाल विवाह से जुड़े कारकों पर काम कर रही है। इसके अलावा, कई राज्यों ने बच्चे के भविष्य के समग्र विकास के लिए अपनी योजनाएँ शुरू की हैं। उदाहरण के लिए,
  • पश्चिम बंगाल की कन्याश्री योजना उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छुक लड़कियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • बिहार और अन्य राज्य छात्राओं को साइकिल प्रदान करते हैं।
  • उत्तर प्रदेश द्वारा भी लड़कियों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एक योजना की शुरुआत की गई है।

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बाल विवाह: भारत में कानून

ऐसे उल्लेखनीय कानून हैं जिनका उद्देश्य बच्चों को मानव एवं अन्य अधिकारों के उल्लंघन से बचाना है,जिसमें मुख्य रुप से सम्मिलित हैं

  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012
  • एक संसदीय स्थायी समिति महिलाओं के लिए विवाह की आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करने के गुण एवं दोषों पर विचार विमर्श कर रही है, जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है।
  • बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना: इसका उद्देश्य गिरते बाल लिंग अनुपात (चाइल्ड सेक्स रेशियो/सीएसआर) के मुद्दे को हल करना है।
  • कन्याश्री योजना: पश्चिम बंगाल की यह योजना उच्च अध्ययन करने की इच्छुक बालिकाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • बालिकाओं को विद्यालय तक सुरक्षित पहुँचाने के लिए बिहार एवं अन्य राज्य एक साइकिल योजना लागू कर रहे हैं तथा उत्तर प्रदेश में बालिकाओं को विद्यालय में पुनः प्रवेश हेतु प्रोत्साहित करने की एक योजना है।

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आगे की राह

बाल विवाह जैसी समस्या का समाधान उचित सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करने और सामाजिक मानदंडों को संबोधित करने के अलावा लड़कियों के सशक्तिकरण में निहित है।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कल्याण अधिकारियों का सुझाव है कि बाल विवाह से से जुड़े कारकों पर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इनमें से कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:

  • गरीबी उन्मूलन
  • बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा और सार्वजनिक बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था
  • असमानताओं, प्रतिगामी सामाजिक मानदंडों, स्वास्थ्य और पोषण के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ाना।
  • उचित क्रियान्वयन के साथ सख्त कानून।
  • आर्थिक रूप से स्वतंत्रत होने के लिए बालिकाओं को पर्याप्त शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • यह सुनिश्चित किया जाए कि बाल संरक्षण समितियां एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी ग्राम पंचायत स्तर पर प्रभावी ढंग से कार्य कर रहे हैं और सामुदायिक सहायता समूहों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस तरह के प्रयासों से ओडिशा की तरह बाल विवाह मुक्त गांवों का निर्माण हो सकता है। ओडिशा में अब ऐसे ग्रामों की संख्या 12000 से अधिक हैं।

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की गई, जहां बाल विवाह के मामले 2005-06 में दर्ज 42% से घटकर 2019-20 में 21.3 % रह गए। शिवराज पाटिल समिति की रिपोर्ट (2011) से महत्वपूर्ण नीतिगत हस्तक्षेप और सिफारिशों को कर्नाटक सरकार द्वारा बाल विवाह के प्रसार को कम करने के लिए अपनाया गया था। अपनाए गए कुछ उपाय इस प्रकार हैं:

  • कई हजार बाल विवाह निषेध अधिकारियों को अधिसूचित किया गया।
  • लगभग 90,000 स्थानीय ग्राम पंचायत सदस्यों को बाल विवाह की अवैधता और मातृ तथा बच्चे के स्वास्थ्य पर इसके परिणाम के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए शामिल किया गया था।बाल विवाह (Child marriage)

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निष्कर्ष

बाल विवाह की समस्या दुनिया भर में अत्यधिक प्रचलित है। महामारी के कारण यह स्थिति और विकट हो गई है। भारत ने पिछले दशकों में इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन 2030 तक बाल विवाह की प्रथा को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।                                                                                                                                                                                                                                          SEE HER

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स्रोत: Unicef.org

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