महिलाओं की विवाह हेतु कानूनी उम्र
(Legal Age for Marriage of Women) में वृद्धि
- हालिया संदर्भ
- भारत में विवाह संबंधी क़ानूनी प्रावधान
- विवाह की न्यूनतम आयु में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों ?
- महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के लाभ
- महिलाओं की विवाह हेतु कानूनी उम्र में वृद्धि से उत्पन्न चिंताएं
- सुझावात्मक उपाय
- निष्कर्ष
of Women
Legal Age for Marriage
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हालिया संदर्भ
हाल ही में, कैबिनेट ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी | इसके लिए बाल विवाह निषेध (संशोधन) अधिनियम, 2021 संसद में पेश किया गया है | इस अधिनियम के लागू होने पर भारत में महिलाओं एवं पुरुषों दोनों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु समान (21 वर्ष) हो जाएगी। गौरतलब है, यह फैसला ‘जया जेटली’ की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश पर आधारित है। इस समिति का गठन जून, 2020 को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्त्व की आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों तथा विवाह एवं मातृत्व की उम्र के परस्पर संबंध की जाँच करने के लिये किया गया था। महिलाओं की शादी के लिए कानूनी उम्र बढ़ाने का यह प्रस्ताव भारत के लिए आर्थिक और सामाजिक लाभ को बढ़ावा देने के संदर्भ में है। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सशक्तिकरण, लैंगिक समानता, महिला श्रम बल की भागीदारी को बढ़ाना, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें स्वयं निर्णय लेने में सक्षम बनान है |
विदित है कि भारतीय संस्कृति में वैवाहिक संबंधों को पारिवारिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विशेषताओं से जोड़कर देखा जाता है। यही कारण है कि, औपनिवेशिक काल से जब भी इस दिशा में सुधार संबंधी कदम उठाने के प्रयास किए गए हैं, समाज के एक तबके ने इन सुधारों का व्यापक विरोध किया है। हालांकि, बाल विवाह को अनिवार्य रूप से गैरकानूनी घोषित करने तथा नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए विवाह की कानूनी आयु में वृद्धि करने की मांग लंबे समय से की जा रही है | भारतीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने के साथ 21वीं सदी के समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। इस दिशा में विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर उसे कानूनी रूप प्रदान किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण (सतत् विकास लक्ष्य–5) के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है, जहाँ राष्ट्र–राज्यों से लैंगिक समानता की प्राप्ति हेतु नीति–निर्माण की अपेक्षा की गई है। लेकिन केवल अच्छा इरादा ही अनुकूल परिणामों की गारंटी तो नहीं देता। व्यापक सामाजिक समर्थन के बिना लागू किये गए कानून प्रायः अपने उद्देश्यों की पूर्ति में तब भी विफल सिद्ध होते हैं जब उनके घोषित उद्देश्य और तर्क व्यापक सार्वजनिक भलाई का लक्ष्य रखते हों। इसलिए इस आधिनियम से संबंधित विभिन्न मुद्दे का विस्तृत एवं समग्र मूल्यांकन किया जाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है |
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भारत में विवाह संबंधी क़ानूनी प्रावधान
वर्तमान समय में भारत में अलग–अलग धर्मों के व्यक्तिगत कानून विवाह की अलग–अलग आयु का प्रावधान करते हैं | उदाहरणस्वरूप हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत महिलाओं एवं पुरुषों के लिए न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित है | दूसरी तरफ, इस्लाम जैसे वृहद धार्मिक समुदाय में अभी भी नाबालिग बच्चों की शादी को वैध माना जाता है | ध्यातव्य रहे, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
ज ्ञात हो कि वर्ष 1860 में अधिनियमित हुई भारतीय दंड संहिता के तहत लड़कियों के लिए विवाह हेतु सहमति की उम्र को शुरुआत में 10 वर्ष निर्धारित किया गया था। किन्तु आगे चलकर, वर्ष 1927 में लाए गए ‘द एज ऑफ कंसेंट बिल‘ के अंतर्गत बलात्कार संबंधी कानूनों में संशोधन करते हुए 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ विवाह को अवैध घोषित कर दिया गया। हालाँकि राष्ट्रवादी आंदोलन के रूढ़िवादी नेताओं द्वारा ब्रिटिश सरकार के इस कानून का काफी विरोध किया गया, क्योंकि वे इस प्रकार के कानूनों को हिंदू रीति–रिवाज़ों में ब्रिटिश हस्तक्षेप के रूप में देखा रहे थे। वहीं वर्ष 1929 में लाए गए बाल विवाह निरोधक अधिनियम के अंतर्गत लड़कों एवं लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु क्रमश: 18 वर्ष तथा 14 वर्ष निर्धारित की गई। इसे शारदा अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है। शारदा अधिनियम में संशोधन करते हुए स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1978 में पुरुषों एवं महिलाओं के लिए विवाह की आयु को क्रमश: 21 वर्ष एवं 18 वर्ष निर्धारित किया गया है।
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विवाह की न्यूनतम आयु में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
- विदित है कि कम उम्र में लड़कियों की शादी के परिणामस्वरूप जल्दी गर्भधारण से माताओं तथा बच्चों के पोषण स्तर एवं उनके मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस संदर्भ में किए गए अनेक अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि कम उम्र में लड़कियों की शादी करने वाले समाजों में शिशु मृत्यु दर तथा मातृ मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक होती है तथा यहां महिलाओं को साक्षरता तथा आजीविका के पर्याप्त अवसर प्राप्त नहीं हो पाते।
- वर्तमान में, मातृ मृत्यु दर जन्म लेने वाले प्रत्येक 100,000 बच्चों पर 145 है। इसी प्रकार भारत का शिशु मृत्यु दर दर्शाता है कि एक वर्ष में पैदा हुए प्रत्येक 1,000 बच्चों में से 30 बच्चों की एक वर्ष की आयु से पहले ही मृत्यु हो जाती है। उपर्युक्त दोनों संकेतकों में भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों में सबसे खराब है।
- पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अनुसार युवा माताओं में एनीमिया होने की आशंका अधिक होती है। भारत में प्रजनन आयु ( 15-49 वर्ष) की आधी से अधिक महिलाएं एनीमिक हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं में से 48 प्रतिशत का विवाह 20 वर्ष की उम्र में हो जाता है, इतनी छोटी सी उम्र में विवाह होने के पश्चात् गर्भावस्था में जटिलताओं और बाल देखभाल के बारे में जागरूकता की कमी के कारण मातृ और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि देखने को मिलती है।
- भारत समेत संपूर्ण विश्व में बाल विवाह एक गंभीर समस्या बना हुआ है | संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हालाँकि बाल विवाह पर लगभग संपूर्ण विश्व में प्रतिबंध लगा दिया गया था, किंतु फिर भी संपूर्ण विश्व में व्यापक स्तर पर इस प्रथा को अमल में लाया जा रहा है। यूनिसेफ (UNICEF) के एक अनुमान के अनुसार, विश्व भर में लगभग 650 मिलियन लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में भी कम उम्र में कर दिया गया। वहीं भारत में प्रत्येक वर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम से कम 1.5 मिलियन लड़कियों का बाल विवाह कर दिया जाता है, जिससे भारत विश्व में सबसे अधिक बाल विवाह वाला देश है।
- वहीं इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार गरीबी, शिक्षा तक सीमित पहुंच, कम आर्थिक अवसर तथा सुरक्षा संबंधी चिंताएं कम उम्र में शादी के ज्ञात कारण हैं।
महिलाओं की विवाह हेतु कानूनी उम्र
- भारत में जिस समय महिलाओं को उनके भविष्य और शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिये, उस समय उन्हें विवाह के बोझ से दबा दिया जाता है, 21वीं सदी में इस रुढ़िवादी प्रथा में बदलाव की आवश्यकता है, जो कि महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
- भारत के विधि आयोग ने भी लैंगिक आधार पर भिन्न–भिन्न वैवाहिक उम्र के निर्धारण को अमान्य बताया है | आयोग ने भी समाज में समान भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए विवाह की उम्र को समान किये जाने की सिफ़ारिश की है, हालांकि इनके अनुसार दोनों लिंगों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष निर्धारित की जानी चाहिए |
- गौरतलब है कि पुरुषों एवं महिलाओं के विवाह की निर्धारित अलग–अलग उम्र के संदर्भ में कानूनी एवं स्वास्थ्य संबंधित तर्कों की कोई भूमिका नहीं है, बल्कि इस प्रकार का असमानतापूर्ण निर्धारण सामाजिक रूढ़ियों से अधिक प्रेरित है। समाज में व्याप्त यह धारणा कि महिलाएं समान उम्र के पुरुषों की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं, अस्पष्ट तर्कों पर आधारित है |
- इस संदर्भ में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय संधि समिति (CEDAW), ऐसे क़ानूनों को समाप्त करने का आहवान करती है, जो महिलाओं के शारीरिक अथवा बौद्धिक विकास स्टार को पुरुष से भिन्न मानते हैं |
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महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने के लाभ
- महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने से महिला एवं बाल कल्याण को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि माता का गरीब होना उसके बच्चे और कुपोषण के संबंध में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं । इससे गर्भधारण करने वाली माताओं और उनके बच्चों के पोषण स्तर एवं उनके समग्र स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाली प्रतिकूल प्रभाव भी कम होगी।
- साथ ही विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने से महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता में भी वृद्धि होगी | गौरतलब है, बच्चे के जन्म के समय माँ की उम्र उसके शैक्षिक स्तर, रहन–सहन और स्वास्थ्य स्थिति, महिलाओं की निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करती है।
- इसके अलावा इससे बाल विवाह की समस्या का भी समाधान होगा | दरअसल, वैश्विक स्तर पर भारत में सबसे अधिक कम उम्र में विवाह होते हैं। यह कानून बाल विवाह के खतरे को रोकने में मदद करेगा तथा उनके बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा में भी सहायक होगा |
- इसके अलावा समान कानूनों से समानता की उत्पत्ति होती है और सामाजिक परिवर्तन कानूनों के पूर्ववर्ती और उनके परिणाम दोनों ही होते हैं। प्रगतिशील समाजों में कानून में परिवर्तन सामाजिक धारणाओं में परिवर्तन लाने की भी वृहत संभावना रखता है। आर्थिक संपदा से परे, महिलाओं को सशक्त बनाने से भारत के खुशी सूचकांक में योगदान होगा और इससे अकल्पनीय समृद्धि होगी।
- विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने से महिलाओं के पास शिक्षित होने, कॉलेजों में प्रवेश करने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु अधिक समय मिल पाएगा। इस निर्णय से संपूर्ण भारतीय समाज खासतौर पर निम्न आर्थिक वर्ग पर इस निर्णय का खासा प्रभाव देखने को मिलेगा।
- इस संदर्भ में भारतीय स्टेट बैंक ने “महिलाओं की शादी की कानूनी उम्र बढ़ाना: सामाजिक रूप से अच्छा, आर्थिक रूप से सशक्त महिलाओं के लिए एक प्रभावी रणनीति,” शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी किया है | इस रिपोर्ट के अनुसार लड़कियों के लिए कॉलेज समयावधि में वृद्धि होगी तथा दीर्घावधि में महिलाओं को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करने में सक्षम बनाएगी |
- साथ ही मातृत्व मौतों में कमी और पोषण के स्तर में सुधार भी हो सकता है। ध्यातव्य रहे, महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में वृद्धि से वर्ष 2025 तक भारत की $ 770 बिलियन की जीडीपी में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। साथ ही सशक्त महिलाएं जो अकेले उद्यमी बन जाती हैं, वो अगले दशक में 150 मिलियन से 170 मिलियन नौकरियों को जोड़ने में सक्षम हैं।
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महिलाओं की विवाह हेतु कानूनी उम्र में वृद्धि से उत्पन्न चिंताएं
इ स संदर्भ में सकारात्मक कार्रवाई के रूप में उपर्युक्त अधिनियम आवश्यक प्रतीत होता है, किंतु अनेक विद्वानों ने इसके दुष्प्रभावों की भी चर्चा की है। अनेक महिला एवं बाल अधिकार कार्यकर्ता तथा जनसंख्या एवं परिवार नियोजन विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक शिक्षा तथा जागरूकता को भारतीय समाज में अंतिम पायदान तक नहीं पहुंचाया जाएगा तब तक इस प्रकार के क़ानूनों का दुरुपयोग होता रहेगा | अतः महिलाओं की न्यूनतम आयु से संबंधित मुद्दे का विस्तृत एवं आलोचनात्मक मूल्यांकन किया जाना अत्यंत आवश्यक है |
- सामान्यतः 21 वर्ष की आयु तक अधिकांश महिलाओं का विवाह हो जाता है और महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाने से इन महिलाओं और उनके परिवारों को अपराधीकरण की ओर ले जाएगा। शादी की कानूनी उम्र बढ़ाने से उन युवा विधवाओं के हकों और अधिकारों की हानि भी होगी जो पहले से ही असुरक्षित हैं।
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- यह कानून भावनात्मक स्तर पर तो अच्छा दिखता है, लेकिन सामाजिक जागरूकता में वृद्धि और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार किये बिना यह महिलाओं को अधिक लाभ नहीं दे सकेगा। क्योंकि युवा महिलाएँ अभी तक आर्थिक रूप से स्वतंत्र एवं सबल नहीं हो सकी हैं और पारिवारिक एवं सामाजिक दबाव में रहते हुए अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रता का उपभोग करने में असमर्थ हैं।
- प्रस्तावित कानूनी सुधार के बारे में यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि इससे बाल विवाह को रोकने के बजाय युवा सहमति वाले जोड़ों को अधिक नुकसान होगा। अध्ययनों से पता चलता है कि माता–पिता मुख्य रूप से मौजूदा कानूनों का इस्तेमाल युवा जोड़ों द्वारा स्व–व्यवस्थित विवाह की बजाय कुंडली विवाह कराने के लिए करते हैं।
- शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाना, एक उचित रूप से प्रगतिशील कदम है, लेकिन यह ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने की बजाय दलित और आदिवासी समुदायों की मौजूदा कमजोरियों और अपराधीकरण को बढ़ावा देता है। इस प्रकार के क़ानूनों का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव गर्ब, पिछड़े, अनुसूचित जाति तथा जनजातियों पर पड़ेगा क्योंकि इन समाजों में शिक्षा, रोजगार तथा जागरूकता के अभाव में बाल विवाह को एक प्रथा के रूप में स्वीकार कर लिया गया है |
- पितृसत्तात्मक व्यवस्था में अधिक संभावना यह है कि आयु सीमा में परिवर्तन से युवा वयस्कों पर माता–पिता की अधिकारिता में और वृद्धि ही होगी। माता–पिता प्रायः इस अधिनियम का दुरूपयोग अपनी इच्छा से विवाह करने वाली या बलात विवाह, घरेलू हिंसा और शिक्षा सुविधाओं के अभाव से बचने के लिये भाग जाने वाली अपनी बेटियों को दंडित करने के लिये करते हैं।
- साथ ही, महिलाओं की वैवाहिक आयु में वृद्धि करने संबंधी प्रस्ताव धार्मिक विवाद का स्वरूप धरण कर सकता है, क्योंकि विवाह के संदर्भ में अलग–अलग धर्मों की मान्यताओं एवं प्रथाओं को धार्मिक पर्सनल लॉ के तहत सुरक्शित किया गया है |
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सुझावात्मक उपाय
- बाल विवाह में देरी का जवाब शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने में है क्योंकि यह प्रथा एक सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है। स्कूलों में स्किल और बिज़नेस ट्रेनिंग और सेक्स एजुकेशन को बढ़ावा देने से भी इस समस्या से निजात पाने में मदद मिल सकती है।
- सरकार को दूर–दराज़ के क्षेत्रों से लड़कियों की स्कूलों और कॉलेजों तक पहुँच बढ़ाने पर ध्यान देने की ज़रूरत है। सामाजिक परिवर्तन के अन्य सूचकांकों जैसे कि– शिक्षा का विस्तार, सुरक्षित एवं किफायती परिवहन व्यवस्था, कौशल विकास एवं रोजगार में वृद्धि के माध्यम से बाल विवाह में कमी लाई जा सकती है।
- इसके अलावा स्कूलों में लैंगिक समानता तथा प्रगतिशील दृष्टिकोण पर आधारित पाठ्यक्रम को लागू किया जाना चाहिए। विद्यालयों में छात्राओं के क्लब अथवा समूहों के निर्माण को बढ़ावा देने के साथ उनकी वैचारिकता की प्रगति का मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए।
- विवाह की उम्र में वृद्धि पर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की आवश्यकता है और नए कानून की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। साथ ही, कानून अथवा विधान प्रक्रिया को लड़कियों के विवाह की उम्र में वृद्धि के समग्र दृष्टिकोण का एक हिस्सा बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है। गौरतलब है कि कर्नाटक राज्य ने वर्ष 2017 में बाल विवाह निषेध अधिनियम में संशोधन करते हुए प्रत्येक बाल विवाह को शून्य घोषित करने के साथ इसे एक संज्ञेय अपराध का दर्जा दिया, जिसके उल्लंघन पर एक निश्चित समय के कारावास का प्रावधान है।
- इसके अलावा सरकारी तथा नीतिगत कार्यवाहियां भी सामाजिक परिवर्तन को तीव्र कर सकती हैं | इस संदर्भ में शिक्षकों, आंगनबाड़ी पर्यवेक्षकों, पंचायत तथा राजस्व कर्मचारियों को ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह निषेध अधिकारी के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है |
- साथ ही स्थानीय स्तर पर दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया कम उम्र की आयु में महिलाओं के शोषण को रोकने में मदद कर सकती है | इसके लिए स्थानीय निकायों को जन्म तथा विवाह के पंजीकरण हेतु अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए |
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निष्कर्ष
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि महिलाओं के विवाह की उम्र को बढ़ाना महिला सशक्तीकरण और महिला शिक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है, हालाँकि यह भी आवश्यक है कि नियम बनाने के साथ–साथ उनके कार्यान्वयन पर भी ध्यान दिया जाए | ध्यातव्य रहे, भारत में बाल विवाह की समस्या कानूनी पक्ष से सीधा संबंधित नहीं है बल्कि शिक्षा, रोजगार तथा जागरूकता जैसे मुद्दों से संबंधित है | इस संदर्भ में किए जाने वाले प्रयास सामाजिक–आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप होने चाहिए जो शिक्षा, कल्याण और महिलाओं के लिए अवसरों में निवेश की मांग करते हैं। इस दिशा में परिवारों की मदद करने के साथ कानून, शिक्षा तथा सरकारी कार्यवाही का एक साथ उपयोग करना अधिक उपयुक्त होगा | इन माध्यमों से सामाजिक स्वीकार्यता को बढ़ावा देकर विवाह की उम्र में वृद्धि की जा सकती है|
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