पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी(Environment & Ecology)
ऑस्ट्रेलिया–भारत जल सुरक्षा पहल [ स्रोत: पी.आई.बी. ]
- पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी(Environment & Ecology)।
- हाल ही में, आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) और ऑस्ट्रेलिया सरकार के बीच शहरी जल प्रबंधन में तकनीकी सहयोग के लिए एक ‘समझौता ज्ञापन’ को मंज़ूरी प्रदान की है। गौरतलब है कि इस समझौता ज्ञापन पर दिसम्बर, 2021 में हस्ताक्षर किए गए थेपर्यावरण एवं पारिस्थितिकी(Environment & Ecology)।
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पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी (Environment & Ecology)
संबंधित प्रमुख बिंदु
- यह समझौता ज्ञापन ‘ऑस्ट्रेलिया-भारत जल सुरक्षा पहल’ (Australia-India Water Security Initiative – AIWASI) के तहत दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने में भी मदद करेगा।
- यह शहरी जल प्रबंधन के लिए सभी स्तरों पर संस्थागत क्षमताओं को मजबूत करेगा।
- इसके आलावा यह समझौता दोनों पक्षों को शहरी जल सुरक्षा के प्रमुख क्षेत्रों में दो देशों द्वारा प्राप्त तकनीकी प्रगति के बारे में जानकारी लेने में सक्षम करेगा और ज्ञान के आदान-प्रदान, सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों और संस्थानों के क्षमता निर्माण को बढ़ावा देगा।
- विदित है कि AIWASI विदेश मामलों और व्यापार विभाग (DFAT), ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण एशिया जल सुरक्षा पहल (SAWASI) के तहत एक परियोजना है। इसका उद्देश्य जल संवेदनशील शहर की दिशा में कार्य करना है जो एकीकृत जल चक्र के समग्र प्रबंधन पर आधारित है।
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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ (Commission for Air Quality Management)
[ स्रोत: द हिंदू ]
- हाल ही में, ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ (CAQM) द्वारा 1 जनवरी 2023 से पूरे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में औद्योगिक, घरेलू और अन्य विविध अनुप्रयोगों में कोयले के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं।
- गौरतलब है कि दिल्ली एनसीआर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है, क्योंकि दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित राजधानी शहरों में से एक है।
- इस पहल से सालाना7 मिलियन टन कोयले को बचाने में मदद मिलेगी। यह पार्टिकुलेट मैटर (PM), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), CO2 और CO सहित प्रदूषकों को कम करने में भी सहायक होगा।
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वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के बारे में
- इस आयोग का गठन अक्टूबर 2020 में ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग अध्यादेश’, 2020 (Commission for Air Quality Management in National Capital Region and Adjoining Areas Ordinance) के तहत किया गया था ।
- गौरतलब है कि CAQM का गठन करने के लिए पूर्ववर्ती ‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’ (Environment Pollution (Prevention and Control) Authority) अर्थात EPCA को भंग कर दिया गया था।
- ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ एक ‘सांविधिक प्राधिकरण’ (Statutory Authority) है। इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकायों का अधिक्रमण (Supersede) करने का अधिकार है।
- आयोग की अध्यक्षता भारत सरकार के सचिव अथवा राज्य सरकार के मुख्य सचिव के रैंक के अधिकारी द्वारा की जाएगी। ‘अध्यक्ष’ तीन साल की अवधि तक या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक पद पर कार्य करेगा।
- आयोग में विभिन्न मंत्रालयों के साथ-साथ, हितधारक राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। इसमें, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और सिविल सोसाइटी के विशेषज्ञ भी सदस्य के रूप में शामिल होंगे।
- इसके शक्तियां और कार्य:
- ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ को वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर संबंधित राज्य सरकारों को निर्देश जारी करने का अधिकार होगा।
- ‘आयोग’, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की सुरक्षा और सुधार के उद्देश्य से आवश्यक समझी जाने वाली शिकायतों पर विचार करेगा।
- वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए मानदंड भी निर्धारित करेगा।
- आयोग के पास, उल्लंघन-कर्ताओं को चिह्नित करने, कारखानों, उद्योगों तथा किसी भी अन्य प्रदूषणकारी इकाई की निगरानी करने, और ऐसी इकाइयों को बंद करने की शक्ति होगी।
- आयोग के पास, NCR और आसपास के क्षेत्रों में, प्रदूषण मानदंडों का संभावित उल्लंघन करने वाले, राज्य सरकारों द्वारा जारी किए गए निर्देशों को रद्द करने का भी अधिकार होगा।
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पर्यावरण रिपोर्ट 2022
- हाल ही में, ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ द्वारा “पर्यावरण रिपोर्ट 2022 की स्थिति: भारी प्रदूषण का सामना कर रही नदियाँ” (State of Environment Report 2022: Rivers facing heavy pollution) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गयी है।
- गौरतलब है कि यह रिपोर्ट सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त ‘पर्यावरण-विकास डेटा’ का एक वार्षिक संग्रह है।
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रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु
- जल प्रसार में वृद्धि: भारत, चीन और नेपाल में पच्चीस हिमनद झीलों और जल निकायों ने 2009 से अपने जल प्रसार क्षेत्रों में 40% से अधिक वृद्धि दर्ज की है, जो कि पांच भारतीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक गंभीर खतरा है।
- तटरेखा का कटाव: 1990 और 2018 के बीच भारत के एक तिहाई से अधिक तटरेखा में कुछ हद तक क्षरण देखा गया। पश्चिम बंगाल अपनी 60% से अधिक तटरेखा के कटाव के साथ सबसे बुरी तरह प्रभावित है। रिपोर्ट के अनुसार चक्रवातों की आवृत्ति और समुद्र के स्तर में वृद्धि, और बंदरगाहों का निर्माण, समुद्र तट खनन और बांधों का निर्माण जैसी मानवजनित गतिविधियां तटीय क्षरण के कुछ कारण हैं।
- नदियों में भारी जहरीली धातुओं की वृद्धि : सीसा, लोहा, निकल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम और तांबा – की मात्रा के स्तर में वृद्धि हुई है।
- जलवायु हॉटस्पॉट: 2030 तक भारत के 45 से 64% वन क्षेत्र के ‘जलवायु हॉटस्पॉट’ बनने की संभावना है। 2050 तक, देश का लगभग संपूर्ण वन क्षेत्र एक जलवायु हॉटस्पॉट बनने की संभावना है। ‘जलवायु हॉटस्पॉट’ (Climate Hotspot) एक ऐसे क्षेत्र को संदर्भित करता है जो जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर सकता है।
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विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)
- प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। गौरतलब है कि यह दिवस संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के द्वारा पहली बार 5 जून, 1973 को मनाया गया था।
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संबंधित प्रमुख बिंदु
- विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र सभा द्वारा 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के दौरान की गयी थी।
- ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ 2022 की थीम: ‘केवल एक पृथ्वी’ (Only One Earth) है, जो कि “प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना” पर केंद्रित है।
- इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत द्वारा ‘पर्यावरण के लिये जीवनशैली आंदोलन’ (Lifestyle for the Environment (LiFE) Movement) की शुरुआत की गयी।
- गौरतलब है कि LiFE (Lifestyle for the Environment) की अवधारणा 2021 में ग्लासगो में ‘युनाइटेड नेशन्स क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टि्ज’ 26 (COP26) के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
- यह विचार एक पर्यावरण-जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा देता है जो कि ‘नासमझ और विनाशकारी खपत’ के बदले ‘सचेत और सोच-समझ कर उपयोग करने’ पर केंद्रित है। इस आंदोलन का उद्देश्य सामूहिक शक्ति का उपयोग करना और पूरी दुनिया में लोगों को अपने दैनिक जीवन में जलवायु-अनुकूल सरल व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी (Environment & Ecology)संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के बारे में● संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme -UNEP) का शुभारंभ स्कॉटहोम सम्मेलन के दौरान 05 जून 1972 को हुआ। ● संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का मुख्यालय केन्या की राजधानी नैरोबी में है। ● यह एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है जो संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर कार्य करता है। ● इसका प्रमुख कार्य वैश्विक पर्यावरण एजेंडा को निर्धारित करना, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देना और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक अधिवक्ता के रूप में कार्य करना है। ● इसके द्वारा उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, इन्वेस्ट इनटू हेल्थी प्लेनेट रिपोर्ट, मेकिंग पीस विद नेचर इत्यादि जारी की जाती है | Single-use Plastic |
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पारिस्थितिक–संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Zone- ESZ) [ स्रोत: द हिंदू ]
सुर्खियों में क्यों ?
- हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को निर्देश जारी किया गया है कि देश भर में प्रत्येक संरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य में, उनकी निर्धारित सीमाओं से न्यूनतम एक किमी भीतर तक अनिवार्य ‘पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्र’ (ESZ) घोषित करें ।
- गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में ‘वन भूमि की सुरक्षा’ के संबंध में दायर एक याचिका पर आया है। इसके बाद, अदालत ने उक्त रिट याचिका के दायरे में विस्तार कर दिया ताकि, पूरे देश में ऐसे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जा सके।
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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
- यदि किसी ‘राष्ट्रीय उद्यान’ या ‘संरक्षित वन’ में पहले से ही एक किमी से अधिक का ‘बफर ज़ोन’ है, तो उसे ही अनिवार्य ‘पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्र’ (ESZ) के रूप में मान लिया जाएगा।
- यदि ‘बफर ज़ोन’ की सीमा का प्रश्न वैधानिक निर्णय के लिए लंबित है, तो ‘एक किलोमीटर तक सुरक्षा क्षेत्र बनाए रखने के लिए अदालत का निर्देश’, कानून के तहत अंतिम निर्णय आने तक लागू रहेगा।
- राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के भीतर खनन की अनुमति नहीं होगी।
- राज्यों के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं गृह सचिव, अदालत के इस निर्णय के अनुपालन के लिए उत्तरदायी होंगे।
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‘पारिस्थितिक–संवेदनशील क्षेत्र’ (ESZ) क्या होता है ?
- इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) अथवा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Fragile Areas- EFAs), संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित क्षेत्र होते हैं।
- किसी क्षेत्र को ‘पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्र’ (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य, इन क्षेत्रों में गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संरक्षित क्षेत्रों में एक प्रकार का ‘आघात-अवशोषक’ (shock absorbers) बनाना होता है।
- ये क्षेत्र, उच्च-संरक्षित क्षेत्रों तथा निम्न संरक्षित वाले क्षेत्रों के मध्य एक संक्रमण क्षेत्र के रूप में भी कार्य करते हैं।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 में “इको-सेंसिटिव जोन” शब्द का उल्लेख नहीं है। हालाँकि, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत इन संवेदनशील क्षेत्रों में खनन, रेत उत्खनन, ताप विद्युत संयंत्रों के निर्माण आदि कार्यों पर रोक लगाई जा सकती है।
- वन्यजीव संरक्षण रणनीति, 2002 के अनुसार, किसी संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किलोमीटर तक के क्षेत्र को एक ESZ घोषित किया जा सकता है।
- इसके अलावा, जहां संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण भाग, परिदृश्य शृंखला के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र, 10 किमी के क्षेत्र से आगे स्थित हैं, तो इन क्षेत्रों को भी ESZ में शामिल किया जा सकता है।
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ESZ का महत्व
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राष्ट्रीय उद्यानों, जंगलों और अभयारण्यों के आसपास ‘इको-सेंसिटिव जोन’ (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों को किसी भी तरह के खतरों से बचाने के लिए एक ‘क्षति अवशोषक’ (Shock Absorber) का निर्माण करना है।
- ये ‘इको-सेंसिटिव जोन’, अधिक संरक्षित क्षेत्रों एवं कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों के बीच ‘संक्रमण क्षेत्र’ के रूप में कार्य करेंगे।
- इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संभावित जोखिम को कम करना है।
- इस क्षेत्र में वाणिज्यिक खनन, पत्थर उत्खनन आदि गतिविधियाँ प्रतिबंधित है। साथ ही, नए उद्योगों और मौजूदा प्रदूषणकारी उद्योगों के विस्तार की अनुमति नहीं दी जाती है।
- इसके अतिरिक्त, इन क्षेत्रों में जलविद्युत परियोजनाओं, ठोस अपशिष्ट निपटान स्थलों, बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक पशुधन और पोल्ट्री फार्मों, लकड़ी आधारित औद्योगिक इकाइयों तथा ईंट भट्टों को भी प्रतिबंधित किया गया है।
- इस क्षेत्र में खतरनाक पदार्थों के उपयोग या उत्पादन, प्राकृतिक जल निकायों या भूमि क्षेत्र में अनुपचारित अपशिष्टों के निर्वहन, विस्फोटक वस्तुओं के निर्माण और भंडारण, जलाऊ लकड़ी के व्यावसायिक उपयोग, नदियों और भूमि क्षेत्रों में ठोस, प्लास्टिक एवं रासायनिक कचरे के डंपिंग, नदी तट पर अतिक्रमण को रोका जाएगा।
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स्टॉकहोम सम्मेलन के 50 वर्ष (स्रोत : डाउन टू अर्थ)
- हाल ही में स्टॉकहोम सम्मेलन (Stockholm Conference) की 50वीं वर्षगांठ मनायी गई है।
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‘स्टॉकहोम सम्मेलन’ के बारे में
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गौरतलब है कि स्टॉकहोम सम्मेलन 5 जून से 16 जून 1972 के बीच स्वीडन के ‘स्टॉकहोम’ में आयोजित किया गया था। इसे ‘संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण सम्मेलन’ (United Nations Conference on the Human Environment) भी कहा जाता है।
- यह पृथ्वी के पर्यावरण पर इस तरह का पहला विश्वव्यापी सम्मलेन था, और इसका विषय (थीम) ‘केवल एक पृथ्वी’ (Only One Earth) था। इस सम्मेलन में 122 देशों ने भाग लिया था।
- इस सम्मेलन की परिणति ‘स्टॉकहोम घोषणा’ (Stockholm Declaration) के रूप में हुई, जिसमें पर्यावरण संबंधी सिद्धांत और पर्यावरण नीति के लिए सिफारिशों सहित एक कार्य योजना शामिल थी।
- इस सम्मेलन के तीन आयाम थे-
- प्रतिभागी देशों द्वारा “एक दूसरे के पर्यावरण अथवा अपने राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों को नुकसान नहीं पहुचाने” पर सहमति व्यक्त की गयी।
- पृथ्वी के पर्यावरण के लिए ‘खतरे का अध्ययन करने के लिए एक कार्य योजना’ तैयार की की गयी।
देशों के बीच सहयोग स्थापित करने हेतु ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (UN Environment programme – UNEP) नामक एक अंतरराष्ट्रीय निकाय की स्थापना की गयी। SEE HER