live In Relationship In India की वास्तविक स्थिति

live in relationship in india की प्रासंगिकता

भारत में लिव इन संबंध की प्रासंगिकता

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live in relationship in india की प्रासंगिकता  विवाह एक सामाजिक संविदा है जो दो वयस्कों के आपसी सहमति के आधार पर विवाह के बंधन में बनते हैं और भारत जैसे देश में कहा जाता है की विवाह सात जन्मों का बंधन होता है कई बार जहां विवाह में विच्छेद उत्पन्न हो जाता है उसके कई कारण रहते हैं  पति पत्नी आपस में किसी मुद्दे पर विवाद होना आपसी संबंधों पर संदेए की स्थिति होना ऐसी स्थिति में वह तलाक के लिए न्यायालय की शरण लेते हैं लेकिन भारत में न्याय प्रणाली काफी धीमी है जिसके कारण काफी समय लग जाता है और जब तक वह दूसरी शादी भी नहीं कर सकता और कई कई समाज में  दूसरी शादी की भी अनुमति होती है जिन समाज में दूसरी शादी को मान्यता प्राप्त नहीं है वहा नियमो का उल्लंघन माना जाता है वयस्क लिव इन रिलेशनशिप के बारे में विचार करते हैं यह ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो लोगों का विवाह नहीं हुआ है और वह साथ रहते हैं उनके बीच पति पत्नी जैसे शारीरिक संबंध होते हैं और उनके बीच रिश्ता गहरा होता है इस प्रकार के संबंध पश्चिमी देशों में बहुत आम हो चुके हैं लेकिन भारतीय परिस्थितियों में अभी यह नए हैं लिव इन रिलेशनशिप क्या वैधानिक है। 13 जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू परिवार में संपत्ति के बंटवारे के संबंध में एक अहम फैसला देते हुए कहा कि बिना शादी के लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले दंपत्ति की नाजायज संतान पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदार होगी इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक व्यक्ति को संपत्ति के अधिकार के लिए इसलिए वंचित कर दिया गया क्योंकि वह अविवाहित दंपति का बेटा था सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि एक पुरुष और महिला पत्नी पति पत्नी की तरह लंबे समय तक एक साथ रहते हैं तो उन्होंने भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 114 के तहत विवाहित जोड़ा ही माना जाएगा।

live in relationship in india की प्रासंगिकता                                                                                                                                                                                                                                                                 रिलेशनशिप की वस्तुस्थितिlive in relationship in india की प्रासंगिकता

वर्तमान में भारत में लिव इन रिलेशनशिप को परिभाषित करने वाला कोई स्पष्ट कानून नहीं है हालांकि इस तरह के संबंध पर कोई कानूनी प्रतिबंध भी नहीं है और ना ही अपराध है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता प्रदान करता है कनाडा अमेरिका चीन जैसे कुछ देशों ने समझौते या पंजीकरण आदि के माध्यम से लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्रदान किया परंतु भारत में ऐसा नहीं है भारतीय समाज के ऊंच वर्गों के बीच एक अपनाने वाला विकल्प बनता जा रहा है  परंतु मध्यमवर्गीय भारतीय समाज में इसे सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं करता है कर के संबंध में किसी भी प्रकार की औपचारिक प्रतिबंध नहीं है फिर भी भारत में इस प्रकार के रिलेशनशिप में कोई विशेष कानून नहीं है फिर भी कुछ वर्षों में इस  पर कानून बनाने की लगातार मांग बढ़ रही है और कुछ कानून बनाने की दिशा में लगातार प्रगति भी हो रही है।

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लिव इन रिलेशनशिप से संबंधित न्यायिक निर्णय

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live in relationship in india की प्रासंगिकताबद्री प्रसाद बनाम उपनिदेशक चकबंदी वाद 1978 इस मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार लिव इन रिलेशनशिप को विवाह के रूप में मान्यता दी थी इस मामले में न्यायालय ने एक दंपति के 50 साल के लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी वैधता दी थी इसके अनुसार भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है इसे ध्यान में रखते हुए इन रिलेशनशिप को रूढ़िवादी भारतीय समाज के नजर में अनैतिक हो सकता है लेकिन कानून की नजर में यह वह अवैध नहीं है 

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एस खुशबू बनाम कर्नियमल वाद  2010 इस बात में दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुशबू जिन्होंने लिव इन रिलेशनशिप का समर्थन किया था इनके खिलाफ 22 आपराधिक अपील दायर की गई थी जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यदि दो  वस्यक एक साथ रहते हैं तो अवैध कैसे हो सकता है

मदन मोहन सिंह बनाम रजनीकांत वाद 2010 अगर लंबे समय तक एक साथ रहते हैं तो वॉक  इन वॉक आउट संबंध नहीं कहा जा सकता ऐसे संबंधों को दोनों पक्षों के बीच विवाह की तरह माना जाएगा

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आलोक कुमार बनाम राज्य वाद 2010 दिल्ली उच्च न्यायालय का की रिलेशनशिप की वैधता से जुड़े हुए इस प्रश्न पर भारतीय संदर्भ में स्थिति बहुत अधिक स्पष्ट नहीं है लेकिन अब सामाजिक कानूनी रूप में इसको देखते हैं तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिया गया ऐतिहासिक फैसला इस संदर्भ में हमें कुछ सहायता प्रदान करता है लिव इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चों के अधिकार। सर्वोच्च न्यायालय ने 13 जून 2022 को जो निर्णय दिया है उस निर्णय के अनुसार रिलेशनशिप में रहने वाले दंपत्ति की  संतान को पारिवारिक संपत्ति में हिस्सा होगा साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत पत्नी पति पत्नी के रूप में रहने हैं तो उनकी संतान को नाजायज नहीं माना जाएगा

लिव इन रिलेशनशिप निष्कर्ष

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भारत के मध्यमवर्गीय समाज में लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक ढांचे केले खतरे के रूप में देखा जाता है परंतु यह अपराध नहीं है वर्तमान समय में देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो उसको प्रतिबंधित करें बल्कि रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को कानूनी रूप से मान्यता देता है और उनके बच्चों को भी पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदारी प्रदान करता है हालांकि घरेलू हिंसा में महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 के तहत विधायकों ने लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले भागीदारों को सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार को स्वीकार किया है तो दाल तूने अविवाहित जोड़ों के बीच किसी भी अनिवार्य समझौते की अनुमति देकर लिव-इन संबंधों को वैध बनाने की दिशा में किसी भी तरह के सकारात्मक कदम उठाने से इंकार कर दिया है भारतीय न्यायपालिका सभी प्रकार के लिव-इन संबंधों के विवाह के रूप में मारने के लिए तैयार नहीं है यद्यपि कुछ फैसले लिव इन रिलेशनशिप के पक्ष में दिए गए हैं अभी और इसमें लगातार न्यायपालिका प्रयास कर रहा है और इन संबंधों के बारे में धीरे-धीरे न्यायिक निर्णय जो पक्ष में आ रहे हैं उसे आने वाले समय में ऐसे संबंधों के प्रति लोगों की जागरूकता और अधिक बढ़ेगी

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