Narco Test
- नार्को टेस्ट क्या है
- संदर्भ: हाल ही में,Narco Test नई दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली पुलिस को मृत्यु के एक आरोपी का नार्को टेस्ट (Narco Test) कराने की अनुमति दे दी है। इस मामले में अभियुक्त ने इस परीक्षण
के परिणामों से अवगत होते हुए अपनी सहमती जताई है। उल्लेखनीय है कि नियमों के मुताबिक नार्को टेस्ट कराने के लिये भी व्यक्ति की सहमति आवश्यकता है। - नार्को टेस्ट क्या है
- 19वीं सदी में, इटली के एक क्रिमिनोलॉजिस्ट सीज़ार लोम्बोर्सो ने पूछताछ के दौरान अपराधी के ब्लड प्रेशर में होने वाले बदलाव का पता लगाने के लिए एक मशीन बनाई थी. उसके बाद, साल
1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मार्स्ट्रन ने एक ऐसी ही लेकिन इससे थोड़ी एडवांस मशीन बनाई. इस तरह, धीरे-धीरे इस तकनीक में सुधार होता गया और इस तरह के परीक्षणों का चलन
बढ़ता चला गया. साल 1921 में कैलिफ़ोर्निया के एक पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन ने भी इसी तरह की एक मशीन बनाई थी.
इस टेस्ट का इस्तेमाल मूलतः अपराधियों से सच उगलवाने के लिए किया जाता है यानी यह झूठ पकड़ने वाली एक तकनीक है।
इसमें जिस व्यक्ति का टेस्ट किया जाता है उसे कुछ दवाइयाँ या इंजेक्शन दी जाती हैं। सामान्यतः ट्रूथ ड्रग नाम की एक साइकोऐक्टिव दवा या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन दिया
जाता है। इस दवा को ट्रुथ सीरम भी कहा जाता है. - Narco Test
- इसकी वजह से वह आदमी अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है. अर्धबेहोशी का मतलब, ना ही वह व्यक्ति पूरी तरह होश में होता है और ना ही पूरी तरह बेहोश। इस स्थिति में उस व्यक्ति
का दिमाग़ झूठ नहीं गढ़ पाता है और वह सवालों का सही-सही जवाब देता है।
नार्को टेस्ट से पहले व्यक्ति का शारीरिक परीक्षण किया जाता है. इसमें विशेषज्ञों द्वारा उसकी उम्र, स्वास्थ्य और जेंडर की पूरी तरह जांच की जाती है.
अगर विशेषज्ञों को लगता है कि उस व्यक्ति का स्वास्थ्य पूरी तरह सही नहीं है तो उसका टेस्ट नहीं किया जाता है. क्योंकि अगर उस अस्वस्थ व्यक्ति को सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन दिया
गया तो इसका उसके शरीर या दिमाग पर काफी बुरा असर हो सकता है. वह व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है.
यह टेस्ट जांच अधिकारियों, डॉक्टर, फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स और मनोवैज्ञानिकों की मौजूदगी में किया जाता है। - Narco Test
- सोडियम पेंटोथल
सोडियम पेंटोथल या सोडियम थायोपेंटल कम अवधि में तेजी से काम करने वाला एनेस्थेटिक है।
इसका अधिक मात्रा में उपयोग सर्जरी के दौरान रोगियों को बेहोश करने के लिये किया जाता है।
यह दवाओं के बार्बिट्युरेट (Barbiturate) वर्ग से संबंधित है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालती है।
चूँकि यह दवा झूठ बोलने के संकल्प को कमज़ोर करती है इसलिये इसे ‘ट्रुथ सीरम’ भी कहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खुफिया अधिकारियों ने इसका इस्तेमाल किया था।
पॉलीग्राफ परीक्षण से भिन्नता
पॉलीग्राफ परीक्षण इस धारणा पर आधारित होता है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा होता है तो उस समय उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं सामान्य की तुलना में भिन्न होती हैं।
इस परीक्षण में शरीर में दवाओं को इंजेक्ट नहीं किया जाता है बल्कि कार्डियो-कफ्स (Cardio-Cuffs) या संवेदनशील इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण संदिग्ध के शरीर से जोड़े जाते हैं।
साथ ही, प्रश्न पूछे जाने के दौरान विभिन्न शारीरिक गतिविधियों, जैसे- रक्तचाप, नाड़ी दर, श्वसन दर, पसीने की ग्रंथि गतिविधि में परिवर्तन, रक्त प्रवाह आदि को मापते हैं।
o इस प्रक्रिया में व्यक्ति के सत्य, असत्य, धोखे और अनिश्चितता का मूल्यांकन करने के लिये प्रत्येक प्रतिक्रिया को एक संख्यात्मक मान प्रदान किया जाता है।
यह परीक्षण पहली बार 19वीं शताब्दी में इतालवी अपराध विज्ञानी ‘सेसारे लोम्ब्रोसो’ द्वारा किया गया था, जिन्होंने पूछताछ के दौरान आपराधिक संदिग्धों के रक्तचाप में परिवर्तन को मापने के लिये एक मशीन का प्रयोग किया था। - Narco Test
- परीक्षणों का औचित्य
हाल के दशकों में, जांच एजेंसियों ने इन परीक्षणों के इस्तेमाल की मांग की है, जिन्हें कभी-कभी यातना (Torture) या थर्ड डिग्री (Third Degree) का बेहतर विकल्प माना जाता है।
हालाँकि, इनमें से किसी भी विधि की सफलता दर 100% नहीं है और ये विषय चिकित्सा क्षेत्र में भी विवादास्पद बने हुए हैं।
जब अन्य साक्ष्य किसी मामले की स्पष्ट तस्वीर नहीं प्रस्तुत करते हैं तो जांच एजेंसियां इस परीक्षण का उपयोग करती हैं। साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया में विशेषज्ञ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट का उपयोग किया - The Crisis In International Law
जाता है।
न्यायालय का मत
साल 2010 में, सेल्वी एंड अदर्स बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस व्यक्ति का पॉलिग्राफ या नार्को टेस्ट किया जाना है, उसकी सहमति जरूरी है. इसके अलावा,- Narco Test
- नार्को
टेस्ट के लिए कोर्ट की अनुमति लेना भी अनिवार्य है.
कोर्ट के मुताबिक, किसी व्यक्ति को इस तरह के टेस्ट के लिए मजबूर करना उसकी ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ का उल्लंघन है.
संविधान के अनुच्छेद-20(3) के तहत किसी भी व्यक्ति को अपने ही खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
अदालत ने आगे कहा था कि इस मामले में साल 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश फॉलो किए जाने चाहिए। - Narco Test
- परीक्षण परिणामों की स्थिति
मंजूरी मिलने के बाद से ही ऐसे टेस्ट विवादों में रहे हैं, क्योंकि नार्को और पॉलिग्राफ टेस्ट से प्राप्त नतीजे हमेशा सही नहीं होते हैं.
कुछ अपराधी इतने शातिर होते हैं कि वे झूठ बोलकर भी इस तरह के टेस्ट की पकड़ में नहीं आते हैं.
शायद यही वजह है कि इन टेस्ट की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन जैसे तमाम ऐसे बड़े देश है जहां पर अब इन टेस्ट पर बैन लग चुका है.
ग़ौरतलब है कि ऐसे टेस्ट के दौरान अगर आरोपी अपना ‘अपराध’स्वीकार कर भी ले तो भी अदालत इसे नहीं मानता है. क्योंकि अपराधी अपने पूरे होशो-हवास में इस तरह के बयान नहीं
देता है.
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी अपराधी ने स्वीकार कर लिया है कि उसने हत्या की है तो कोर्ट इसे साक्ष्य नहीं मानेगा. हां, अगर पूछताछ के दौरान पुलिस अपराधी से यह पूछती है कि
उसने हत्या करने के बाद हथियार कहां छुपाए थे और पुलिस इस हथियार को ढूंढ कर लाती है तो वह हथियार साक्ष्य माना जाएगा. - Narco Test
- स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस RELETED LINK
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