चुनाव आयुक्त

  • चुनाव आयुक्त
  • संदर्भ: चुनाव आयुक्त हाल ही में, उच्चतम न्यायालय (SC) ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) चुनने के तरीके पर सरकार से सवाल किया है, तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए
    सीईसी की नियुक्ति समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल करने का विचार रखा।चुनाव आयुक्त
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  • मुद्दा क्या है?
    कार्यकाल पूरा नहीं होने का मुद्दा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991' के तहत छह साल सीईसी
    का कार्यकाल है, लेकिन 2004 के बाद से किसी भी सीईसी ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
    भारत निर्वाचन आयोग की संरचना
    भारत में निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो भारत के संविधान में उल्लिखित नियमों और विनियमों के अनुसार भारत में चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार
    है। इसे 25 जनवरी 1950 को स्थापित किया गया था। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारतीय निर्वाचन आयोग लोकतंत्र का निर्वहन और सफल संचालन
    सुनिश्चित करता है।
    प्रारंभ में निर्वाचन आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था। वर्तमान में, इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त शामिल हैं। पहली बार 16
    अक्टूबर 1989 को दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गयी थी लेकिन उनका कार्यकाल बहुत कम 1 जनवरी 1990 तक ही रहा। इसके बाद इसे फिर से एक
    सदस्यीय आयोग बना दिया गया। परन्तु बाद में फिर से 1 अक्टूबर 1993 को आयोग में दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई और यह फिर से तीन
    सदस्यीय आयोग बन गया।
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  • आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल
    राष्ट्रपति के पास मुख्य चुनाव आयुक्त और उनकी सलाह पर अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन करने की शक्ति है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की
    आयु (जो भी पहले हो) तक होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते उपलब्ध होते हैं। मुख्य
    चुनाव आयुक्त को केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के बिना अन्य आयुक्तों को उनके
    पद से नहीं हटाया जा सकता।चुनाव आयुक्त
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  • अर्द्ध-न्यायिक कार्य

    चुनाव आयुक्त

  •  अनुच्छेद 103 के अंतर्गत राष्ट्रपति संसद के सदस्यों की अयोग्यताओं के संबंध में निर्वाचन आयोग से परामर्श करता है।
     अनुच्छेद 192 के अन्तर्गत राज्य विधानमण्डल के सदस्यों की अयोग्यताओं के संबंध में राज्यों के राज्यपाल निर्वाचन आयोग से परामर्श करते हैं।
     आयोग के पास ऐसे उम्मीदवार को प्रतिबंधित करने की शक्ति है, जो तय समय के भीतर और कानून के अनुसार निर्धारित तरीके से अपने चुनाव खर्चों का
    लेखा-जोखा आयोग के सामने पेश करने में विफल रहा है।
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  • भारतीय निर्वाचन आयोग की भूमिका
    वर्तमान में बदलती परिस्थितियों के परिदृश्य में भारतीय चुनाव आयोग की भूमिका प्रभावी हुई है। कुछ वर्षों में विधायिका एवं कार्यपालिका का ह्वास हुआ, तो
    दूसरी ओर चुनाव आयोग एवं न्यायपालिका की भूमिका में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। चूंकि चुनाव आयोग आचार संहिता को लागू करता है, इसी संज्ञान को ध्यान में रखते
    हुए इसे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की निगरानी और उल्लंघन के मामले में उचित कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया है।
    चुनाव आयोग के कार्य और शक्तियाँ
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  • चुनाव आयुक्त
  • भारतीय निर्वाचन आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
  •  यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए प्रत्येक चुनाव से पहले आदर्श आचार-संहिता जारी करता है ताकि लोकतंत्र की शोभा बनी रहे।
     यह राजनीतिक दलों को नियंत्रित करता है और चुनाव लड़ने योग्य पार्टियों को पंजीकृत करता है।
     यह सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार के प्रचार खर्च की अनुमति सीमा को प्रकाशित करता है और इसकी निगरानी भी करता है।
     सभी राजनीतिक दल नियमित रूप से अपनी ऑडिटेड वित्तीय रिपोर्ट चुनाव आयोग को पेश करते हैं।
     आयोग चुनाव के बाद सदस्यों की अयोग्यता के लिए सिफारिश कर सकता है, अगर उसे लगता है कि उन्होंने कुछ दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया है।
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  • मुख्य चुनाव आयुक्त बनाम चुनाव आयुक्त
     निर्वाचन आयोग एक सामूहिक संस्था है। इस प्रकार मुख्य निर्वाचन आयुक्त व दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों के पास समान शक्तियाँ होती हैं तथा उनके वेतन,
    भत्ते व दूसरे अनुलाभ भी एक समान होते हैं जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होते हैं।
     मुख्य निर्वाचन आयुक्त की प्राथमिकता केवल इतनी है कि वह निर्वाचन आयोग की बैठक की अध्यक्षता करता है।
     जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त व दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों के बीच विचार में मतभेद होता है तो आयोग बहुमत के आधार पर निर्णय करता है।
     निर्वाचन आयुक्तों को राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किया जाता है, इसीलिए वैधानिक रूप में निर्वाचन आयुक्तों को हटाने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है एवं
    मुख्य निर्वाचन आयुक्त स्वतः संज्ञान की कार्यवाही करते हुए निर्वाचन आयुक्तों को नहीं हटा सकते।चुनाव आयुक्त
    चुनाव आयोग के समक्ष चुनौतियाँ
  •  संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों के लिए किसी भी प्रकार की योग्यता (विधिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक अथवा न्यायिक) का निर्धारण नहीं किया है।
     चुनाव आयोग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों के मध्य शक्ति विभाजन के संबंध में कोई स्पष्टता
    नहीं है। इसके अलावा संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्त को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
     धारा 29(A) जो निर्वाचन आयोग में राजनीतिक दलों के पंजीकरण से संबंधित है। यह चुनाव आयोग को राजनीतिक दल के पंजीकरण को रद्द करने की
    शक्ति प्रदान नहीं करता है। चुनाव आयोग के पास विनियामक शक्तियों की कमी के कारण राजनीतिक दलों की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है। वर्तमान में
    कुल पंजीकृत राजनीतिक दलों में से कई राजनीतिक दल चुनाव में भाग नहीं लेते हैं। इसके अलावा कुछ राजनैतिक दल चुनाव प्रणाली और सार्वजनिक धन
    में बोझ बनते हैं।
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  •  धारा 33 (7) जो किसी उम्मीदवार को एक ही समय में दो सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति प्रदान करती है। इससे अतिरिक्त सीट रिक्त हो जाने पर उप-
    चुनाव आयोजित करने हेतु सार्वजनिक धन पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है। यह उन भावी नेताओं के साथ अन्यायपूर्ण है, जिन्हें बड़े नेताओं के लिए
    अपनी सीट छोड़नी पड़ती है। नेताओं के द्वारा इसका उपयोग उनके निम्नस्तरीय राजनीतिक प्रदर्शन के चलते, उनकी विफलता के विरुद्ध सुरक्षा उपाय के
    रूप में किया जाता है।
     धारा 123(3) चुनाव में मत पाने के लिए भ्रष्ट आचरण का पालन करने से संबंधित है। भारत में चुनावों के दौरान धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय और भाषा के
    आधार पर वोट माँगे जाते हैं, जिसे कई बार रोक पाने में चुनाव आयोग विफल हो जाता है।
     चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश के अनुसार अरुणाचल प्रदेश, गोवा और सिक्किम को छोड़कर सभी राज्यों के लोकसभा प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए
    अधिकतम 70 लाख रुपय खर्च कर सकते हैं लेकिन कानून सम्मत खर्च और वास्तविक खर्चों के बीच काफी अंतर पाया जाता है। लोक सभा प्रत्याशियों
    द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किये जाते है। इन खर्चों का वास्तविक ब्यौरा चुनाव आयोग के समक्ष नहीं मिल पाता है।
    द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग रिपोर्ट की सिफारिशें:
  •  इसने सिफारिश की है कि भारत निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कॉलेजियम होना चाहिये जो
    राष्ट्रपति को अनुशंसाएँ भेजता हो।
     अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2015) मामले ने भी निर्वाचन आयोग के लिये एक कॉलेजियम प्रणाली की माँग को बल दिया था।चुनाव आयुक्त
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  •  मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की एक पीठ ने भी इस बात का संज्ञान लिया था कि निर्वाचन आयुक्त देश भर में
    चुनावों का अधीक्षण एवं आयोजन करते हैं और उनका चयन अधिकतम पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिये।चुनाव आयुक्त
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  • भारत निर्वाचन आयोग
    स्थापना:
     भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी।
    अन्य संवैधानिक प्रावधान:
     भारत में निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जो भारत के संविधान में उल्लिखित नियमों और विनियमों के अनुसार भारत में चुनाव कराने के
    लिए जिम्मेदार है।
     अनुच्छेद 325: कोई भी व्यक्ति धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर एक विशेष मतदाता सूची में शामिल होने या शामिल होने का दावा करने के
    लिए अयोग्य नहीं है।
     अनुच्छेद 326: राज्यों की लोकसभा और विधान सभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे।
     अनुच्छेद 327: विधायिका के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति ।
     अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधान-मंडल की ऐसी विधान-मंडल के निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की शक्ति।
     अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक।
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