Reservation//क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?

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परिचय

Reservation//क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?

भारत में Reservation का इतिहास बहुत पुराना है| समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों का आरक्षण पद्धति के प्रति अलग-अलग मत है। 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान ने पहले के कुछ समूहों को अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) के रूप में सूचीबद्ध किया। संविधान निर्माताओं का मानना था, कि जाति व्यवस्था के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे और उन्हें भारतीय समाज में सम्मान तथा समान अवसर नहीं दिया गया और इसीलिए राष्ट्र-निर्माण की गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी कम रही। जिसके कारण निम्न वर्ग के लोगो को आरक्षण दिया गया

ऐतिहासिक भूमिका

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आजादी के पूर्व

भारत में आरक्षण का इतिहास आज़ादी से पहले से है|  भारत में आरक्षण की शुरूआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुई थी|  उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की थी।

  • 1891 के आरंभ में त्रावणकोर के सामंती रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी करके विदेशियों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन के साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए मांग की गयी।
  • 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण की शुरूआत की गई| यह अधिसूचना भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश है।
  • 1908 में अंग्रेजों द्वारा बहुत सारी जातियों और समुदायों के पक्ष में, प्रशासन में जिनका थोड़ा-बहुत हिस्सा था, के लिए आरक्षण शुरू किया गया|
  • 1909 और 1919 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया|
  • 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी|
  • 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया, (जो पूना समझौता कहलाता है) जिसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई थी|
  • 1935 के भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया था|
  • 1942 में भारत रत्न बीआर अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की, उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की|
  • 1946 के कैबिनेट मिशन प्रस्ताव में अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया गया था|Reservation//क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?on

आजादी के बाद

  • 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ| भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछले वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष धाराएं रखी गयी हैं। इसके अलावा 10 सालों के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किए गए थे| (हर दस साल के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए इन्हें बढ़ा दिया जाता है) |
  • 1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग का गठन किया गया था| इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के लिए की गयी सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया|
  • 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग की स्थापना की गई थी| इस आयोग के पास अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के बारे में कोई सटीक आंकड़ा था और इस आयोग ने ओबीसी की 52% आबादी का मूल्यांकन करने के लिए 1930 की जनगणना के आंकड़े का इस्तेमाल करते हुए पिछड़े वर्ग के रूप में 1,257 समुदायों का वर्गीकरण किया था|
  • 1980 में मंडल आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और तत्कालीन कोटा में बदलाव करते हुए इसे 22% से बढ़ाकर 5% करने की सिफारिश की| 2006 तक पिछड़ी जातियों की सूची में जातियों की संख्या 2297 तक पहुंच गयी, जो मंडल आयोग द्वारा तैयार समुदाय सूची में 60% की वृद्धि है।
  • 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया। छात्र संगठनों ने इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन शुरू किया।

    On wholesale inflation data//मुद्रास्फीति

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आरक्षण देने का कारण (Reason For Reservation)

भारत में सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न रखने वाले पिछड़े समुदायों तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए भारत सरकार ने सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों और धार्मिक/भाषाई अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को छोड़कर सभी सार्वजनिक तथा निजी शैक्षिक संस्थानों में पदों तथा सीटों के प्रतिशत को आरक्षित करने के लिए कोटा प्रणाली लागू की है। भारत के संसद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व के लिए भी आरक्षण नीति को विस्तारित किया गया है।

आरक्षण के प्रकार (Types Of Reservation)

1.जातिगत आरक्षण (Caste Reservation)

केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थानों में उपलब्ध सीटों में से 22.5% अनुसूचित जाति (दलित) और अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के छात्रों के लिए आरक्षित हैं|  जिसमें से अनुसूचित जातियों के लिए 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% है|  ओबीसी के लिए अतिरिक्त 27% आरक्षण को शामिल करके आरक्षण का यह प्रतिशत 49.5% तक बढ़ा दिया गया है|  अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में 14% सीटें अनुसूचित जातियों और 8% अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों के लिए केवल 50% अंक प्राप्त करना अनिवार्य है।

2.प्रबंधन कोटा (Management Quota)

जाति-समर्थक आरक्षण के अंतर्गत प्रबंधन कोटा सबसे विवादास्पद कोटा है। प्रमुख शिक्षाविदों द्वारा भी इसकी गंभीर आलोचना की गयी है क्योंकि जाति, नस्ल और धर्म पर ध्यान दिए बिना आर्थिक स्थिति के आधार पर यह कोटा है, जिससे जिसके पास भी पैसे हों वह अपने लिए सीट खरीद सकता है। इसमें निजी महाविद्यालय प्रबंधन की अपनी कसौटी के आधार पर तय किये गये|  विद्यार्थियों के लिए 15% सीट आरक्षित कर सकते हैं। इस कसौटी में महाविद्यालयों की अपनी प्रवेश परीक्षा या कानूनी तौर पर 10+2 के न्यूनतम प्रतिशत शामिल होते हैं।

3.लिंग आधारित आरक्षण (Gender Based Reservation)

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महिलाओं को ग्राम पंचायत और नगर निगम चुनावों में 33% आरक्षण प्राप्त है। बिहार जैसे राज्य में ग्राम पंचायत में महिलओं को 50% आरक्षण प्राप्त है|  संसद एवं विधानमंडल में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के उद्देश्य से 9 मार्च 2010 को 186 सदस्यों के बहुमत से “महिला आरक्षण विधेयक” को राज्य सभा में पारित किया गया था, लेकिन यह विधेयक लोकसभा में रुका हुआ है|

4.धर्म आधारित आरक्षण (Religion based reservation)

कुछ राज्यों में धर्म के आधार पर आरक्षण भी लागू है|  जैसे- तमिलनाडु सरकार ने मुसलमानों और ईसाइयों के लिए 3.5-3.5% सीटें आवंटित की हैं, जिससे ओबीसी आरक्षण 30% से 23% कर दिया गया, क्योंकि मुसलमानों या ईसाइयों से संबंधित अन्य पिछड़े वर्ग को इससे हटा दिया गया। केंद्र सरकार ने अनेक मुसलमान समुदायों को पिछड़े मुसलमानों में सूचीबद्ध कर रखा है, इससे वह आरक्षण के हकदार होते हैं।

5.राज्य के स्थायी निवासियों के लिए आरक्षण (Reservation For Permanent Residents of State)

कुछ अपवादों को छोड़कर, राज्य सरकार के अधीन सभी नौकरियां उस राज्य में रहने वाले सभी निवासियों के लिए आरक्षित होती हैं। पीईसी (PEC) चंडीगढ़ में, पहले 80% सीट चंडीगढ़ के निवासियों के लिए आरक्षित थीं और अब यह 50% है।

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आरक्षण के लिए अन्य मानदंड (Other Criteria For Reservation)

  • खेल हस्तियों के लिए आरक्षण
  • सेवानिवृत सैनिकों के लिए आरक्षण
  • शहीदों के परिवारों के लिए आरक्षण
  • स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे/ बेटियों/ पोते/ पोतियों के लिए आरक्षण
  • शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति के लिए आरक्षण
  • अंतर-जातीय विवाह से पैदा हुए बच्चों के लिए आरक्षण
  • सरकारी उपक्रमों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के विशेष स्कूलों (जैसे सेना स्कूलों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के स्कूलों आदि) में उनके कर्मचारियों के बच्चों के लिए आरक्षण
  • वरिष्ठ नागरिकों/ पीएच (PH) के लिए सार्वजनिक बस परिवहन में सीट आरक्षण।

    Abdul Rehman Makki //ग्लोबल टेररिस्ट घोषित

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आरक्षण सम्बन्धी संवैधानिक प्रावधान (Reservation related Constitutional provision)

  • संविधान के भाग 3 में समानता के अधिकार की भावना का वर्णन किया गया है, इसके अंतर्गत अनुच्छेद- 15 में प्रावधान दिया गया है, कि किसी व्यक्ति के साथ जाति, प्रजाति, लिंग, धर्म या जन्म के स्थान पर भेदभाव नहीं किया जाएगा ।  तथा अनुच्छेद 15 (4) के अनुसार यदि राज्य को लगता है, तो वह सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है ।
  • संविधान के अनुच्छेद -16 में अवसरों की समानता की बात कही गई है। अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार यदि राज्य को लगता है, कि सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह उनके लिए पदों को आरक्षित कर सकता है ।
  • अनुच्छेद- 330 के अंतर्गत संसद तथा अनुच्छेद- 332 में राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं ।
  • भारत देश में आरक्षण की शुरूआत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को समृद्ध बनाने तथा समानता प्रदान करने के लिए हुई थी, लेकिन समय के साथ आरक्षण को राजनीतिक पार्टियों ने वोट प्राप्ति के उद्देश्य से आरक्षण राजनीति का शिकार बनता गया, वर्तमान समय में प्रत्येक राजनितिक दल सत्ता प्राप्ति के उद्देश्य से आरक्षण शब्द का प्रयोग कर रहा है,  राजनीति के कारण आरक्षण का मूल उद्देश्य समय के साथ समाप्त होता जा रहा है ।Reservation//क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?

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किन लोगों, वर्गों या समुदायों को आरक्षण मिलता है?

  • मूल संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 330 एवं 332 के तहत, लोकसभा एवं विधानसभा में SC एवं ST के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। और साथ ही अनुच्छेद 15 एवं 16 के तहत पिछड़े वर्गों को (महिलाओं एवं बच्चों सहित), आरक्षण जैसी व्यवस्था को स्वीकृति दी गई थी।
  • आज SC, ST, OBC एवं EWS समुदाय को मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ मिलता है। (साल 2019 से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EWS) के लिए भी 10% आरक्षण की व्यवस्था है।) इन लोगों को जो आरक्षण मिलता है उसेऊर्ध्वाधर आरक्षण (vertical reservation) कहा जाता है।
  • इसके अलावा महिलाओं, दिव्याङ्गजनों एवं तृतीयलिंगी (third gender) को भी आरक्षण का लाभ मिलता है। इनलोगों को जो आरक्षण मिलता है, उसेक्षैतिज आरक्षण (horizontal reservation) कहा जाता है।

मुख्य रूप से भारत में आरक्षण चार समुदायों को मिलता है।

  • अनुसूचित जाति (SC),
  • अनुसूचित जनजाति (ST),
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section)Reservation//क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?

एसटी एवं एससी के लिए आरक्षण की व्यवस्था मोटे तौर पर आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था। जबकि ओबीसी को आरक्षण, 1992 में मंडल आयोग के सिफ़ारिशों को मान लेने के बाद से मिलता है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण 2019 में 103वें संविधान संशोधन पारित होने के बाद से।

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अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है?

  • अनुच्छेद 341 एवं 342 क्रमशः परिभाषित करता है कि अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) कौन है।
    अनुच्छेद 341 एवं 342 कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है वहाँ उसकेराज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों (castes), मूलवंशों (races) या जनजातियों (Tribes) या उसके भाग या उनके समूह को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) समझा जाएगा।
    (2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति को या उसके भाग को या उसके समूह को, खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) अनुसूचित जाति को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी।
    अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आयोग

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अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कौन है?

ओबीसी मूल रूप से आरक्षण का हिस्सा नहीं नहीं रहा है। संविधान इसे सपोर्ट तो करता था लेकिन इसकी तात्कालिक आधिकारिक वजह मण्डल आयोग है; जो कि मोरार जी देशाई की जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में स्थापित की थी।
और इस आयोग के गठन के पीछे का आधार हम अनुच्छेद 340 में ढूंढ सकते हैं जो कि कहता है – ”सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के हित में राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग का गठन किया जा सकेगा।”

मण्डल  आयोग ने 1931 के जनगणना का सहारा लेते हुए (एससी एवं एसटी को छोड़कर) उन जातियों की पहचान की जो की सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े थे। ये संख्या में 3743 थे और आज ये लगभग 5000 जातियाँ एवं उप-जातियों में विस्तारित है।
हालांकि 102वें संविधान संशोधन के माध्यम से ओबीसी के लिए भी (एससी एवं एसटी की तरह) अनुच्छेद 342 ‘के तहत एक परिभाषा दी गई है, जो कि कहता है कि – (1) राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में, जहां वह राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, लोक अधिसूचना द्वारा, सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को या उसके भाग या उनके समूह को विनिर्दिष्ट (specify) कर सकेगा। जिन्हे इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या संघक्षेत्र के संबंध में अन्य पिछड़ी जाति (OBC) समझा जाएगा।
(2) संसद के पास यह अधिकार है कि विधि द्वारा सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को या उसके भाग को या उसके समूह को खंड (1) के अधीन निकाली गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट (specified) ओबीसी को, सूची में सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से अपवर्जित (exclude) कर सकेगी।
एससी एवं एसटी की तरह इसके लिए भी एक आयोग का गठन किया गया है

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आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EWS) कौन है?

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EWS में सामान्य वर्गों के गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सम्मिलित किया जाता है। इसे 1991 में पी. वी. नरसिंहराव की सरकार द्वारा आरक्षण देने की कोशिश की गई लेकिन उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इसे सपोर्ट नहीं किया था। 2019 के 103वें संविधान संशोधन द्वारा इसे स्थापित किया गया है यहाँ ये याद रखिए कि इसका कोई अलग से आयोग नहीं है।

आरक्षण श्रेणीआरक्षण कोटा (%)
अनसूचित जनजाति 7.5
अनुसूचित जाति15
पिछड़ा वर्ग 27
आर्थिक पिछड़ा वर्ग 10
कुल 59.50

तालिका: सरकारी नौकरियों के लिए भारत में आरक्षण कोटा

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क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?

  • यह सरकार का कर्तव्य है कि वह भारत में स्थिति और अवसर की समानता प्रदान करे।
  • आरक्षण कुछ वर्गों के खिलाफ सामाजिक उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ उपकरणों में से एक है। आरक्षण पिछड़े वर्गों के उत्थान में मदद करता है।
  • हालांकि, आरक्षण सामाजिक उत्थान के तरीकों में से एक है। छात्रवृत्ति, धन, कोचिंग और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को प्रदान करने जैसे कई अन्य तरीके हैं।
  • जिस तरह से भारत में आरक्षण को लागू और निष्पादित किया जाता है, वह काफी हद तक वोट बैंक की राजनीति द्वारा शासित होता है।
  • भारतीय संविधान ने केवल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति दी। हालांकि, भारत में, यह वर्ग-आधारित आरक्षण के बजाय जाति-आधारित आरक्षण बन गया।
  • प्रारंभ में, आरक्षण केवल एससी/एसटी समुदायों के लिए था – वह भी 10 साल (1951-1961) की अवधि के लिए। हालांकि, तब से इसे बढ़ा दिया गया है। 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद आरक्षण का दायरा बढ़ाकर इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को शामिल कर लिया गया.
  • आरक्षण का लाभ क्रमिक रूप से केवल कुछ समुदायों (या परिवारों) द्वारा प्राप्त किया गया था, जिसमें वास्तव में योग्य लोग शामिल नहीं थे। आजादी के 70 साल बाद भी आरक्षण की मांग बढ़ी ही है।
  • अब, आरक्षण के लिए आर्थिक मानदंडों की शुरुआत के साथ, पहले से मौजूद जाति-मानदंडों के अलावा, चीजें और अधिक जटिल हो गई हैं।

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क्या आरक्षण ही एकमात्र समाधान है?

  • असमान को समान रूप से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन हमें कुछ सवालों के जवाब चाहिए जैसे, क्या असमान उपचार की वर्तमान प्रणाली सही है? क्या यह अधिक अन्याय पैदा कर रहा है? क्या कल्याणकारी राष्ट्र में यही एकमात्र रास्ता है? यह आत्मनिरीक्षण करने का समय है।
  • पूरी तरह से आर्थिक मानदंडों पर आधारित आरक्षण एक ऑल-इन-वन समाधान नहीं है, हालांकि परिवार की आय मापदंडों में से एक हो सकती है। इसके अलावा, आरक्षण प्रणाली के लिए एक समय अवधि तय करने का समय है, बजाय इसे अनंत काल तक बढ़ाने के।
  • भारत को नकारना, मेधावी उम्मीदवारों की सेवा, जो उन्हें कम शैक्षणिक प्रदर्शन या प्रतिभा के साथ दूसरों से आगे निकलते हुए देखते हैं, भी एक अपराध और अन्याय है।
  • क्या हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान के लिए कोई वैकल्पिक तंत्र नहीं है ताकि सभी को समान अवसर मिलें? अन्य देशों में सकारात्मक कार्रवाई कैसे की जाती है? भारत की आरक्षण प्रणाली में सुधार समय की मांग है। हालांकि, चूंकि आरक्षण का विषय बहुत सारे वोटों के इर्द-गिर्द घूमता है, इसलिए पार्टियां मौजूदा प्रणाली को बाधित करने के लिए अनिच्छुक हैं।

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आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है?

  • इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ, 1992 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जाति-आधारित आरक्षण की सीमा तय करते हुए फैसला सुनाया कि “आरक्षण या वरीयता के किसी भी प्रावधान को इतनी सख्ती से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है कि समानता की अवधारणा को नष्ट किया जा सके”। “चूंकि इस न्यायालय ने लगातार कहा है कि अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) के तहत आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए और राज्यों और संघ ने इसे कुल मिलाकर सही माना है, इसे संवैधानिक निषेध के रूप में माना जाना चाहिए और 50% से अधिक आरक्षण रद्द कर दिया जाएगा। 2019 में आर्थिक आरक्षण के लिए विधेयक पेश करते हुए, अरुण जेटली (वित्त मंत्री) ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण पर लगाई गई 50% की सीमा केवल जाति-आधारित आरक्षण के लिए थी, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) आरक्षण इससे प्रभावित नहीं होगा।
  • ऐतिहासिक ईडब्ल्यूएस आरक्षण में, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 3:2 के बहुमत के साथ 103वें संविधान संशोधन अधिनियम को बरकरार रखा।Reservation//क्या भारत को अब आरक्षण की जरूरत है?
मुद्देन्यायमूर्ति माहेश्वरी, त्रिवेदी और पारदीवालामुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति भट
क्या आरक्षण आर्थिक मानदंडों पर प्रदान किया जा सकता है?हाँहाँ
क्या एससी/एसटी/ओबीसी समूहों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण लाभों से बाहर रखा जा सकता है?हां, वे एक अलग वंचित समूह बनाते हैं।नहीं, एसईबीसी भारत की सबसे गरीब आबादी का बड़ा हिस्सा हैं।
क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण 50% सीमा से अधिक हो सकता है?हां, 50% की सीमा लचीली है और केवल एसईबीसी पर लागू होती हैनहीं, यहां 50% की सीमा का उल्लंघन करना आगे विभाजन के लिए एक प्रवेश द्वार होगा

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