National Green Hydrogen Mission
National Green Hydrogen Mission बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पूरी दुनिया अलग-अलग तरह की समस्याओं का सामना कर रही है। इस समस्या में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का बड़ा हाथ है। इसलिए लगातार नेचुरल सोर्स यानी सूर्य, पानी और हाइड्रोजन से बनी बिजली के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिससे तेल रिफाइनरी, उर्वरक, स्टील और सीमेंट जैसे भारी उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने में मदद मिलेगी और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को भी कम किया जा सकेगा। लेकिन एक मुश्किल ये है कि सूर्य या पानी से बनी बिजली को इकट्ठा करना स्टोर करना थोड़ा कठिन काम है तो अब ये विकल्प बताया जा रहा है कि नेचुरल सोर्स से बिजली पैदा की जाये फिर उस बिजली को पानी में प्रवाहित किया जाये। उससे हाइड्रोजन बनाया जाये और फिर उस हाइड्रोजन को इकठ्ठा किया जाये और फिर अलग-अलग इंडस्ट्री में ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जाये।
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भविष्य का ईंधन इतना महत्वपूर्ण क्यों
हाइड्रोजन, आवर्त सारणी में सबसे हल्का और पहला तत्व है। चूंकि, हाइड्रोजन हवा के मुकाबले हल्का होता है, इसलिए यह वायुमंडल में ऊपर की ओर प्रसारित हो जाता है। यही कारण है कि इसे अपने शुद्ध रूप ‘H2’ में मुश्किल से ही कभी पाया जाता है। सामान्यतः हाइड्रोजन, एक गैर-विषाक्त, अधात्विक, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक ज्वलनशील द्विपरमाणुक गैस है। हाइड्रोजन ईंधन, ऑक्सीजन के साथ जलने पर ‘शून्य-उत्सर्जन’ करता है। हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग से उत्सर्जित होने वाला एकमात्र उप-उत्पाद ‘पानी’ होता है। इसीलिए ये ईंधन 100 प्रतिशत स्वच्छ माना जाता है। इसका उपयोग ईंधन सेलों अथवा आंतरिक दहन इंजनों में किया जा सकता है। खास बात ये है कि यह ब्रह्मांड में पाया जाने वाला सबसे प्रचुर तत्व है। सूर्य और अन्य तारे, व्यापक रूप से हाइड्रोजन से निर्मित होते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हाइड्रोजन का कोई रंग नहीं होता है। हाइड्रोजन के साथ रंगों का नामकरण इसके बनाये जाने के तरीके के हिसाब से किया जाता है। इसे हरे, नीले, ग्रे और फिरोजी जैसे रंगों के नाम से जाना जाता है। इस हाइड्रोजन को बनाने में किसी भी तरह का प्रदूषण पैदा नहीं होता है। इसलिए इसे ग्रीन हाइड्रोजन कहते हैं यानी इसका कलर ग्रीन नहीं होता है।
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भारत ने भी 2070 तक कार्बन-नेट-जीरो हासिल करने का और 2047 तक ऊर्जा के मामलें में स्वयं को स्वतंत्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने पंद्रह अगस्त 2021 को राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का एलान किया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अभी हाल ही में 4 जनवरी 2023 को इस मिशन को मंजूरी दे दी है। मिशन का लक्ष्य 2030 तक देश में लगभग 125 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के साथ, प्रति वर्ष कम से कम 5 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) की उत्पादन क्षमता का विकास करना है।
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इस मिशन के लाभों की बात करें तो इसमें इंसेंटिव के माध्यम से इलेक्ट्रोलाइजर जैसी सामग्री की लागत को कम करने में मदद मिलेगी। दरअसल वर्तमान में प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन की कीमत लगभग 3 अमेरिकी डॉलर है। इस मिशन से आने वाले समय में यह दाम आधे से भी कम हो जाएगा। जिससे लोकल व्यापारी विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे और निर्यात में बढ़ोत्तरी होगी। इससे आयातित पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर निर्भरता कम होगी और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन किया जा सकेगा। इसका उद्देश्य भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत बनाना है। इससे अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में लाखों रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे जिसके चलते भारत में स्वच्छ ऊर्जा के सोर्स में लगने वाली लागत भी कम होगी। कुल मिलाकर उम्मीद है कि यह मिशन देश को कार्बन के नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में लेकर जायेगा।
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