INFLATION
मुद्रास्फीति INFLATION अभिप्राय दीर्घकाल में सामान्य कीमत स्तर में वृद्धि की होने से हैं। जब कीमतों के सामान्य स्तर में लगातार वृद्धि होने लगती हैं तो वह मुद्रास्फीति की अवस्था कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो मुद्रा के मूल्य या क्रय शक्ति का काम होना या कमजोर होना ही मुद्रास्फीति की अवस्था हैं।को दौड़ती हुई मुद्रास्फीति या कूदती हुई मुद्रास्फीति के खतरे के संकेतक हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation)के रूप में देखा जाता है।
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दौड़ती हुई मुद्रास्फीति ( Running Inflation)
बढ़ती कीमतों की दर में तीव्र वृद्धि को ‘दौड़ती हुई मुद्रास्फीति’ कहा जाता है अर्थात् जब मुद्रास्फीति की दर 10-20 प्रतिशत के बीच होती है तो उसे दौड़ती हुई ‘मुद्रास्फीति’ कहते हैं।
थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर समग्र मुद्रास्फीति के मासिक आधार पर जारी किये जाने वाले आँकड़ों को ‘हेडलाइन मुद्रास्फीति’ किया जाता है। भारत सरकार द्वारा फरवरी 2015 से औपचारिक रूप से कहते हैं। इसमें खाद्य पदार्थों व ईंधन सहित सभी वस्तुओं को शामिल मुद्रास्फीति को लक्षित करने की नीति (Inflation Targeting Policy) मुद्रास्फीति माना गया है तथा रिज़र्व बैंक अपनी मौद्रिक एवं साख नीतियों अपनाई जा रही है। इसके अंतर्गत सीपीआई (संयुक्त) को हेडलाइन
इस स्थिति में सरकार दारा मजबूत मौद्रिक एवं राजकोषीय नियंत्रण उपाय किये जाने की आवश्यकता होती हैं, अन्यथा यह अवस्था अति मुद्रास्फीति’ के लिये में इसे ही लक्षित करता है।
मार्ग प्रशस्त करती है।
नोबेल-पुरस्कार
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कूदती हुई मुद्रास्फीति (Galloping / Over Inflation)
ऐसी स्थिति जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें द्विअंकीय या त्रिअंकीय वृद्धि दर से बढ़ती हैं अर्थात् जब उत्पादन में बिना किसी वृद्धि के या नगण्य वृद्धि के कीमतें काफी तेज़ी से बढ़ती हैं और मुद्रास्फीति की दर 20 प्रतिशत से अधिक हो जाती है तो उसे ‘कूदती हुई मुद्रास्फीति’ कहते हैं। इस स्थिति में स्फीति की वार्षिक वृद्धि दर अत्यंत उच्च होती है। अति मुद्रास्फीति (Hyper Inflation)
जब स्फीति की दर तीन अंकों से भी अधिक हो जाए तो उसे ‘अति मुद्रास्फीति’ कहते हैं। इस स्थिति में स्थिर आय वाली सभी परिसंपत्तियों, यथा-वेतन, बचत, गिरवी, बीमा पॉलिसी, बॉण्ड आदि का वास्तविक मूल्य कम हो जाता है। ऐसी मुद्रास्फीति में न सिर्फ बढ़त बड़ी होती है बल्कि ऐसा बहुत कम समय के अंदर हो जाता है । इस स्थिति में पत्र- मुद्रा बेकार हो जाती है। 1920 के दशक में जर्मनी में तथा 2000 के दशक में जिंबाब्वे में अति मुद्रास्फीति की स्थिति देखी गई। ध्यातव्य है कि 2016-17 के दौरान वेनेजुएला में भी अति मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हुई।
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कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation)
इसकी अवधारणा 1981 में एक्स्टेन (Eckstein) ने दी थी । इसके अनुसार मुद्रास्फीति के मापन के दो भाग होते हैं- स्थायी मुद्रास्फीति और अस्थायी मुद्रास्फीति।
जब जनंसख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, नगरीकरण आदि स्थायी कारणों के फलस्वरूप मांग बढ़ने से मुद्रास्फीति फैलती या बढ़ती है तो उसे ‘स्थायी मुद्रास्फीति’ कहते हैं। इसके विपरीत जब मानसून का निष्पादन अच्छा न होने और प्राकृतिक आपदा आने जैसे अस्थायी कारणों से उत्पादन में कमी के कारण मुद्रास्फीति फैलती है तो उसे ‘अस्थायी मुद्रास्फीति’ कहते हैं। रिज़र्व बैंक गैर-खाद्य विनिर्मित वस्तुओं से संबंधित स्फीति को कोर स्फीति के रूप में लेता है। कोर स्फीति में खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को सम्मिलित नहीं किया जाता।
दरअसल मुद्रास्फीति की स्थायी दर को ही मुद्रास्फीति की प्रमुख दर कहा जाता है। प्रायः सरकार एवं केंद्रीय बैंक की नीतियाँ इसी प्रकार की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की होती हैं।
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आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation)
जब विदेशों से आयात किये गए कच्चे उत्पाद की कीमतों में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति फैलती है तो उसे ‘आयातित मुद्रास्फीति’ कहते हैं। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के कारण भारत में जो मुद्रास्फीति फैली है, वह इसी प्रकार की है।
छिपी हुई मुद्रास्फीति (Hidden Inflation)
किसी उत्पाद की पहले की कीमत पर या कीमत में कमी के बावजूद पहले की तुलना में उस उत्पाद की गुणवत्ता या मात्रा में कमी को ‘छिपी हुई मुद्रास्फीति’ कहते हैं अर्थात् पूर्ववत् कीमतों पर ही, लेकिन पहले की अपेक्षा कम वज़न, आकार एवं खराब गुणवत्ता वाला माल बेचा जाना ‘छिपी मुद्रास्फीति’ है।
भारत के विश्व विरासत स्थल
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संरचनात्मक मुद्रास्फीति (Structural Inflation)
मुद्रास्फीति केवल आपूर्ति पर मांग के आधिक्य के कारण ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था में सरकार की मौद्रिक नीतियों के कारण भी बनी रहती है। अधिक लचीली मौद्रिक नीतियों के तहत यदि कोई देश अधिक मात्रा में मुद्रा जारी करता है या ब्याज दरों को दीर्घ अवधि तक कम रखता है तो इस कारण मुद्रा की प्रत्येक इकाई का मूल्य बढ़ी हुई मांग में गिर जाता की तुलना . इसी अवस्था को ‘संरचनात्मक मुद्रास्फीति’ कहते हैं। मुद्रास्फीति के संरचनात्मक सिद्धांत का प्रतिपादन ‘गुन्नार मिर्डल ‘ द्वारा किया गया तथा ‘पॉल स्ट्रीटेन’ ने इसमें और अधिक योगदान दिया। इस सिद्धांत के अनुसार अर्थव्यवस्था की संरचना में होने वाले असंतुलन स्फीति के कारक होते हैं। अर्थव्यवस्था के प्रमुख असंतुलनकारी तत्त्व हैं- खाद्य की कमी, वस्तुओं की आपूर्ति कमी, विदेशी विनिमय अवरोध, सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबंध, संसाधन असंतुलन तथा अवस्थापनात्मक अवरोध इत्यादि ।
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खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation)
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक या सामान्य मुद्रास्फीति के सापेक्ष अनिवार्य खाद्य पदार्थों के थोक मूल्य सूचकांक (खाद्य टोकरी के रूप में परिभाषित) में जारी बढ़ोतरी को खाद्य मुद्रास्फीति के रूप में जाना जाता है। गलत प्रबंधन नीति, गलत बफर स्टॉक नीति और दोषपूर्ण न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति आदि सम्मिलित रूप से खाद्य मुद्रास्फीति के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। फिलिप्स वक्र (Phillips Curve)
न्यूजीलैंड के प्रमुख अर्थशास्त्री ए.डब्ल्यू. फिलिप्स द्वारा प्रतिपादित फिलिप्स वक्र ब्रिटेन के 1861-1957 तक के आनुभविक आँकड़ों
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