राष्ट्रीय पार्टी कमजोर हो रहा ऐसा क्यों
बहुजन समाज पार्टी
राष्ट्रीय पार्टी इस पार्टी की स्थापना 14 अप्रैल, 1984 (अम्बेडकर जन्म दिवस) को उत्तर प्रदेश में हुई थी। उस समय के
लेकर अब तक इस पार्टी के सबसे प्रमुख नेता रहे कांशीराम और मायावती । कांशीराम के अनुसार, उद्देश्य
सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में उच्च जातियों के प्रभुत्व को समाप्त करना और दलितों (185 प्रतिशत) को
संख्या के अनुपात में सत्ता में भागीदारी दिलाना है।”
एक पार्टी के रूप में बसपा के पास न तो कोई श्रृंखलाबद्ध सांगठनिक ढांचा है और न ही कोई दलितों को
आरक्षण नहीं, अनुकम्पा नहीं, वरन् सत्ता में भागीदारी चाहिए। मूल बात यह है कि अब दलित और पिछड़ों
को आरक्षण देकर उन्हें ऊंचा उठाने का प्रयास किया गया है, लेकिन कांशीराम ने इस वर्ग में शासक बनने
की ललक पैदा कर दी।
बसपा में चुनावी नीति के रूप में एक परिवर्तन यह आया है कि 1998 तक कांशीराम और मायावती दलित
हितों की पूरी प्रबलता के साथ नुमायन्दगी के अलावा सवर्ण हिन्दू वर्ग का खुला अपमानजनक विरोध करने
में जुटे हुए थे, लेकिन तेरहवीं लोकसभा के चुनाव (1999) से लेकर आज तक कांशीराम और विशेषतया
मायावती ने सवर्ण हिन्दू वर्ग के प्रति खुले विरोध भाव का त्याग कर दिया। चुनाव अभियान में मायावती ने
सर्व समाज का नारा लगाया और विविध जातियों के बीच जाति जोड़ो अभियान और भाईचारा अभियान
लाने की बात कही। 2005 ई. से पार्टी तिलक (ब्राह्मण वर्ग), तराजू (वैश्य वर्ग) और तलवार ( राजपूत स)
इन तीनों जाति वर्गों को अपने निकट लाने के लिए अभियान चलाया तथा इसमें वह आंशिक रूप से सफल
रही।
राष्ट्रीय पार्टी
1996-2010 ई. में बसपा ने अपनी राजनीतिक शक्ति में निरन्तर वृद्धि की। बारहवीं लोकसभा में इसने 5,
तेरहवीं लोकसभा में 14, चौदहवीं लोकसभा के चुनावों में 19 स्थान प्राप्त किए। पार्टी को उ.प्र. में ग्रीस
समर्थन प्राप्त रहा तथा मई 2007 ई. में उ.प्र. विधानसभा के जो चुनाव हुए, उनमें पार्टी ने 402 में से 36
स्थान (विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर स्पष्ट कर दिया कि वह उ.प्र. में अन्य सभी दलों से बहुत आगे
था। पार्टी की सर्वोच्च और एकमात्र नेता मायावती हैं।
15वीं लोकसभा के चुनाव और बसपा—मायावती के नेतृत्व में पार्टी ने बहुजन से सर्वजनका मार्ग तय
किया था और इसने उ. प्र. के बाहर भी कुछ प्रभाव क्षेत्र प्राप्त कर लिए थे। मायावती ने इन लोकसभा
चुनावों के लिए कोई घोषणा-पत्र तो जारी नहीं किया; लेकिन प्रमुख रूप से दो बातें अपील के रूप में कही :
प्रथम, निर्धन अगड़ों (स्वर्ण हिन्दुओं) को भी आरक्षण तथा द्वितीय, प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार। इन चुनावों में
मायावती ने बहुत अधिक आशाएँ-आकांक्षाएं संजो ली थीं। (दलित की बेटी के लिए प्रधानमन्त्री पद) तथा
इसी कारण मायावती में कांग्रेस की तुलना में भी अधिक, कुल 500 उम्मीदवार खड़े किए तथा लगभग
सम्पूर्ण देश मैं चुनाव-अभियान चलाया। लेकिन चुनाव परिणामों से स्पष्ट हो गया कि मायावती का अपने
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लिए 'प्रधानमन्त्री पद की बात सोचने का कोई औचित्य नहीं है। पन्द्रहवीं लोकसभा में उसे केवल 21 स्थान
ही प्राप्त हुए। विशेष यह रहा कि अप्रैल-मई 2012 ई. में उ. प्र. विधानसभा के जो चुनाव हुए उनमें बसपा ने
अपनी शासक ल की स्थिति की खो दिया।
16वीं एवं 17वीं लोकसभा के चुनाव और बसपा – मायावती ने इन चुनावों के सम्बन्ध में कहा कि वे नील
मोदी की प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगी तथा चुनाव के बाद बेलेंस ऑफ दर की
भूमिका निभायेंगी। वे धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ रहेंगी, किन्तु बसपा को एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई। 17वीं
लोकसभा चुनावों (2019) से पूर्व बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ महागठबंधन किया और उत्तर प्रदेश
में सीटों का बंटवारा करते हुए 38 सीटों पर चुनाव लड़ा, किन्तु उसे मात्र 10 सीटों पर ही सफलता मिली।
बसपा की शक्ति में भारी कमी आई है। शासक दल के रूप में बसपा की रीति-नीति तथा नेता के रूप में
मायावती के व्यवहार तथा आरक्षण को जनता ने पूर्णतया अस्वीकार कर दिया है। वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश
विधान सभा चुनावों में बसपा को मात्र 19 सीटें प्राप्त हुई ।
राष्ट्रीय पार्टी
नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP)
(NATIONAL PEOPLE PARTY )
हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के शानदार प्रदर्शन के चलते
एनपीपी ने राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए जरूरी शर्तों को पूरा किया ।
मेघालय के मुख्यमन्त्री कॉनराड संगमा की नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) को चुनाव आयोग से राष्ट्रीय
पार्टी का दर्जा मिल गया है। इसके साथ ही स्वतन्त्र भारत के इतिहास में पहली बार पूर्वोत्तर की किसी
स्थानीय पार्टी को यह दर्जा मिलने का गौरव प्राप्त हुआ है।
मेघालय के मुख्यमन्त्री कॉनराड संगमा की अध्यक्षता वाली नेशनल पीपल्स पार्टी इसके लिए सभी जरूरी
अहर्ताएं पूरी कर ली थीं। एनपीपी केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए का सहयोगी दल है। यह पहले से ही अरुणाचल
प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और नगालैण्ड में एक राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त है।
हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के शानदार प्रदर्शन के चलते
एनपीपी ने राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए जरूरी शर्तों को पूरा किया था। विधानसभा चुनाव में एनपीपी
ने अरुणाचल प्रदेश में पांच सीटें जीती थीं। 60 सीटों में से 21 सीटों के साथ एनपीपी मेघालय की सबसे
बड़ी पार्टी है।
नोबेल-पुरस्कार NOBEL PRIZE पुरस्कार वितरण की प्रक्रिया क्या है?
राष्ट्रीय पार्टी
चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार, यदि कोई पार्टी चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी की मान्यता रखती
है, तो राष्ट्रीय राजनीतिक दल की मान्यता रखने के लिए सभी आवश्यक शर्तें भी पूरी करती है । राष्ट्रीय
पार्टी का दर्जा मिल जाने के बाद देश में किसी भी अन्य राजनीतिक दल या प्रत्याशी को एनपीपी का
‘पुस्तक वाला चुनाव चिह्न आवंटित नहीं किया जा सकेगा।
नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) का राष्ट्रीय चिह्न पुस्तक है। एनपीपी की स्थापना पूर्व लोकसभा अध्यक्ष
पी. ए. संगमा ने वर्ष 2013 में की थी । संगमा पूर्वोत्तर के सबसे बड़े और लोकप्रिय सांसद रहे हैं। उन्होंने
वर्ष 2012 में कांग्रेस से अलग होकर पार्टी की स्थापना की थी। राजस्थान के किरोड़ीमल मीणा भी संगमाA
के साथ एनपीपी के सह-संस्थापक हैं। राजस्थान के विधानसभा चुनाव में वर्ष 2013 में एनपीपी ने चार
सीटों पर जीत दर्ज की थी। मणिपुर विधानसभा चुनाव वर्ष 2017 में एनपीपी ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा
और 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी ।
कॉनराड संगमा का जन्म 27 जनवरी, 1978 को मेघालय में हुआ था। वे मेघालय राज्य से एक भारतीय
राजनेता हैं तथा मेघालय राज्य के बारहवें व वर्तमान मुख्यमन्त्री हैं। वे पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी. ए. संगमा
के पुत्र हैं। वे वर्ष 2008 में मेघालय के सबसे कम उम्र के वित्त मन्त्री भी बने थे । वे मेघालय विधानसभा
चुनाव 2008 में अपने भाई जेम्स संगमा के साथ पहली बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से विधायक बने और
उन्होंने बाद वर्ष में प्रदेश कैबिनेट में महत्वपूर्ण विभाग जैसे—वित्त, वाणिज्य, पर्यटन तथा सूचना प्रसारण
विभाग भी संभाले थे।
राष्ट्रीय पार्टी कमजोर हो रहा ऐसा क्यों
चुनाव आयोग की समीक्षा 2019 पार्टी ने 14.55% वैध मत प्राप्त किये हैं।
पार्टी ने विधानसभा की साठ सीटों में से पांच सीटें हासिल की हैं। की। अपने प्रदर्शन के फलस्वरूप ही इसने
अरुणाचल प्रदेश में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त • पार्टी पहले से ही मणिपुर, मेघालय और नगालैण्ड
राज्यों में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी थी। अरुणाचल प्रदेश में राज्य पार्टी के रूप में अपनी पहचान के
बाद अब यह चार राज्यों यानी मणिपुर, मेघालय, नगालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश में मान्यता प्राप्त राज्य
पार्टी बन गई है। • इस प्रकार पार्टी ने कम-से-कम चार राज्यों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करते
हुए राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए निर्देशित पात्रता शर्त को पूरा कर लिया।
राष्ट्रीय पार्टी
परिणामस्वरूप चुनाव आयोग ने नेशनल पीपल्स पार्टी को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्रदान की
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