पर्स सीन फिशिंग क्यों महत्वपूर्ण है//सीन फिशिंग पर प्रतिबंध

पर्स सीन फिशिंग

पर्स सीन फिशिंग

चर्चा में क्यों ?
पर्स सीन फिशिंग  भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु की क्षेत्रीय जल सीमा (12 समुद्री मील) से परे और तमिलनाडु के विशेष
आर्थिक क्षेत्र (EEZ) (200 समुद्री मील) के भीतर मछली पकड़ने के लिए कुछ प्रतिबंधों का पालन करते हुए पर्स सीन
फिशिंग के  उपयोग करने की अनुमति दी।
 वर्तमान में तमिलनाडु, केरल, पुदुचेरी, ओडिशा, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन और दीव एवं अंडमान- निकोबार
द्वीप समूह के प्रादेशिक जल में 12 समुद्री मील तक सीन फिशिंग पर प्रतिबंध लागू है।
 जबकि गुजरात, गोवा, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।
पर्स सीन फिशिंग:
 पर्स सीन फिशिंग के तहत नौकायन और लीडलाइन के साथ जाल की एक लंबी दीवार बनी होती है तथा इसके
माध्यम से स्टील के तार या रस्सी से बनी एक लाइन चलती है जिसमें मछलियाँ फँसती हैं।
 इस तकनीक का उपयोग भारत के पश्चिमी परिसर में व्यापक रूप से किया जाता है।
 पारम्परिक मत्स्य गियर का उपयोग करने वाले पारंपरिक मछुआरों के विपरीत पर्स सीनर अत्यधिक मछली पकड़ने
की प्रवृत्ति रखते हैं और पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को खतरे में डालते हैं।

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समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS)

 यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के समुद्रों और महासागरों पर देशों के अधिकार एवं जिम्मेदारियों को
साझा करता है।
 संयुक्त राष्ट्र ने इस कानून को वर्ष 1982 में अपनाया था लेकिन नवंबर, 1994 में यह प्रभाव में आया।
 भारत ने वर्ष 1995 में UNCLOS को अपनाया, इसके तहत समुद्र के संसाधनों को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है- आंतरिक
जल (IW), प्रादेशिक सागर (TS) और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ)।
 आंतरिक जल (IW):यह बेसलाइन की भूमि के किनारे पर होता है तथा इसमें खाड़ी और छोटे खंड शामिल हैं।
 प्रादेशिक सागर (टेरिटोरियल सी-TS): यह बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी तक विस्तृत होता है। इसके हवाई क्षेत्र,
समुद्र, सीबेड और सबसॉइल पर तटीय देशों की संप्रभुता होती है एवं इसमें सभी जीवित और गैर-जीवित संसाधन
शामिल हैं।

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 अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ): EEZ बेसलाइन से 200 समुद्री मील की दूरी तक विस्तृत होता है। इसमें तटीय देशों को
सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है।
संरक्षण और सम्मेलन
 सर्वोच्च न्यायालय को बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सम्मेलनों से उत्पन्न दायित्वों से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए, जो एक
निश्चित अवधि में मछली पकड़ने की स्थायी प्रथाओं को लाने के लिए आवश्यक हैं।
 UNCLOS के अनुच्छेद- 56.1 (a) और 56.1 (b) (iii) के तहत, तटीय राज्यों के पास यह सुनिश्चित करने के लिए संप्रभु
अधिकार हैं कि EEZ के सजीव और निर्जीव संसाधनों का उपयोग, संरक्षण और प्रबंधन किया जाता है जो अतिदोहन
के अधीन नहीं हैं।

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 विदेशी बेड़े द्वारा क्षेत्र में प्रवेश भी पूरी तरह से तटीय राज्य के विवेक और उसके कानूनों और विनियमों के अधीन
है।
 अतिदोहन को रोकने के लिए, तटीय राज्यों को उपलब्ध सर्वोत्तम वैज्ञानिक प्रमाणों के आलोक में EEZ [UNCLOS के
अनुच्छेद 61(1) और (2)] में कुल स्वीकार्य कैच (TAC) का निर्धारण करना चाहिए। दक्षिणी ब्लूफिन टूना-1993 (SBT) के

संरक्षण के लिए कन्वेंशन से मार्गदर्शन भी शीर्ष अदालत द्वारा प्राप्त किया जा सकता था, ताकि मछली पकड़ने के
घटते स्टॉक की वसूली को सक्षम किया जा सके।
 SBT के लिए पार्टियों के बीच आवंटन का वितरण किया गया, जो सामान्य मत्स्यिकी के संरक्षण के दृष्टिकोण से
बहुत प्रासंगिक हैं।
 इसका उद्देश्य मछुआरों के बीच टिकाऊ उपयोग को व्यवहार में लाना और अधिकतम टिकाऊ उपज (MSY) को बनाए
रखना है।
 TAC को लागू करने और आरक्षित क्षेत्रों के प्रयासों को MSY सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित सीमाओं से संबंधित
वैज्ञानिक अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में, स्थापित अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून अभ्यास

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एहतियाती दृष्टिकोण अपनाने पर निर्भर है।
मछली पकड़ने के तरीकों का विनियमन
 (न्यायालय के आदेश में) केवल पर्स सीनर को मछली पकड़ने के लिए दो दिन – सोमवार और गुरुवार को सुबह 8
बजे से शाम 6 बजे तक प्रतिबंधित करना, मछली पकड़ने के तरीकों को विनियमित किए बिना पर्याप्त नहीं है।
 अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रयास धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर वेलापवर्ती जालों के उपयोग को छोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहे
हैं।
 पर्स सीन जाल का विशाल आकार(2,000 मीटर लंबाई और 200 मीटर गहराई) पर्स सीनर्स के लिए अधिकतम पकड़
के लिए सक्षम बनाता है, बदले में पारंपरिक मछुआरों के लिए अपर्याप्त पकड़ को पीछे छोड़ देता है।
 ऐसे कई क्षेत्रीय संगठन हैं जो या तो बड़े ड्रिफ्ट नेट के उपयोग पर रोक लगाते हैं या कम से कम उनके निषेध का
आह्वान करते हैं, जैसे कि 1989 का दक्षिण प्रशांत फोरम की तरावा घोषणा।
 1989 का कन्वेंशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ फिशिंग विथ लॉन्ग ड्रिफ्ट नेट इन द साउथ पैसिफिक, बहाव जाल
फिशिंग जहाजों के लिए पोर्ट एक्सेस को प्रतिबंधित करता है।
 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने संकल्प 44/225 (1989) और 46/215 (1991) को पारित किया और इस विकास का समर्थन
किया और गहन समुद्र में सभी बड़े पैमाने पर पेलाजिक ड्रिफ्ट नेट फिशिंग जहाजों पर रोक लगाने का आह्वान
किया।

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 हालांकि कन्वेंशन और संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव गहन समुद्र में राज्यों पर लागू होते हैं, ये सामान्य रूप से
ओवरफिशिंग को रोकने और EEZ में मत्स्य प्रबंधन के संरक्षण के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं।
आगे की राह
 न्यायालय के अंतिम फैसले में पर्स सीनर्स द्वारा मछली पकड़ने के गैर-चयनात्मक तरीकों पर गौर करने की
आवश्यकता है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य समुद्री जीवित प्रजातियों पर (जिसमें कई बार, लुप्तप्राय प्रजातियां शामिल
हो सकती हैं)  व्यापार प्रतिबंध के लिए एक संभावित आधार हैं।
 अधिकारियों द्वारा अपनाए गए सर्वोत्तम संरक्षण उपायों और मछली पकड़ने के तरीकों के नियमन के बावजूद, समुद्र
के असीम चरित्र से निपटना एक चुनौती होगी।

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 गैरेट हार्डिन का सिद्धांत, 'द ट्रेजेडी ऑफ द कॉमन्स', में कहा गया है कि 'एक कॉमन्स में स्वतंत्रता सभी को बर्बाद
कर देती है', सभी मछुआरों, विशेष रूप से तमिलनाडु के पर्स सीनर को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उन्हें संरक्षण
उपायों के अनुपालन में सहयोग करना चाहिए।

स्रोत – द हिन्दू     RELETED LINK

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