गठबन्धन सरकार में क्षेत्रीय दलों का महत्व
गठबन्धन सरकार में क्षेत्रीय दलों का महत्व क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय सरकार की कार्यप्रणाली को किस प्रकार प्रभावित करते हैं ? – 1996 से लेकर 15वीं
लोकसभा तक क्षेत्रीय दलों की शक्ति में निरन्तर वृद्धि के परिणामस्वरूप केन्द्र में एक दल की सरकार नहीं,
वरन् गठबन्धन सरकार का गठन होता था; जिसके अन्तर्गत कुछ क्षेत्रीय दल भी भागीदार होते थे। ऐसी
स्थिति में गठबन्धन सरकार सत्ता में भागीदार क्षेत्रीय दलों के दृष्टिकोण को अनदेखा नहीं कर सकती। क्षेत्रीय
दल सत्ता में भागीदार सबसे बड़े दल को या गठबन्धन सरकार के कार्यकरण को बातचीत के आधार पर
प्रभावित
करने की कोशिश करते थे तथा विशेष परिस्थितियों में सरकार पर दबाब डालकर उससे अपनी बात मनवा
हो सकता था । गठबन्धन सरकार सामान्यतया एक कमजोर सरकार होती है, अतः वे क्षेत्रीय दल जो
सरकार में थे । यदि सत्ता में सहयोगी क्षेत्रीय दल सरकार से अपना समर्थन सहयोग वापस ले लें, तो सरकार
का पतन
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गठबन्धन सरकार में क्षेत्रीय दलों का महत्व
भागीदार है,
सरकार के कार्यकरण को प्रभावित कर सकते हैं।
बहुदलीय व्यवस्था होने तथा क्षेत्रीय दलों की शक्ति में वृद्धि हो जाने के कारण
क्षेत्रीय दल जो सत्ता में भागीदार नहीं हैं, वे भी विविध तरीकों से सरकार की नीतियों और कार्यप्रणाली
कोई भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय दल अधिक
से अधिक क्षेत्रीय दलों को अपने साथ रखने की कोशिश करते हैं। सत्ता उसी राजनीतिक दल को प्राप्त होनी
है, जिसके साथ लोकसभा में अधिक संख्या वाले क्षेत्रीय दल हों। 16वीं लोकसभा के चुनावों में तीन दशक
बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेतृत्व कर रही भाजपा को स्वयं अपनी 282 सीटों के साथ पूर्ण बहुम
प्राप्त हुआ है। अतः क्षेत्रीय दलों एवं गठबंधन के दलों को सरकार पर दबाव बनाने का मौका नहीं मिलेगा।
इस प्रकार लम्बे समय बाद देश में त्रिशंकु जनादेश का इतिहास टूटा है। यह हमारे लोकतंत्र व दलीय
व्यवस्था राज्यस्तरीय दलों का उदय तथा उनकी शक्ति में वृद्धि नितान्त स्वाभाविक और औचित्यपूर्ण (
राज्यस्तरीय दल व क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय एकता को कमजोर नहीं करते )
के लिये शुभ संकेत है।
गठबन्धन सरकार में क्षेत्रीय दलों का महत्व
एक अरब बाइस करोड़ से अधिक जनसंख्या और भाषा, आचार-विचार और भौगोलिक तथा सामाजिक
परिस्थितियों में भेद तथा विविधताएं राज्यस्तरीय दलों को जन्म दें, उनकी शक्ति में वृद्धि हो यह मिलाक
स्वाभाविक है। प्रायः राज्यस्तरीय दलों की भूमिका को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की हमारी आदत रही
है और हम आसानी से कह देते हैं कि राज्यस्तरीय दल तथा केन्द्र सरकार में उनकी भागीदारी राष्ट्रीय एकता
को कमजोर करते हैं। वस्तुतः ऐसा कुछ भी नहीं है। भारत की संघात्मक व्यवस्था में राज्यस्तरीय दलों की
महत्वपूर्ण सकारात्मक भूमिका रही है तथा आज भी वे इस भूमिका को निभा रहे हैं।
राज्यस्तरीय दलों के अस्तित्व के कारण ही भारतीय संविधान के संघात्मक प्रावधानों के क्रियान्वयन का
सफल परीक्षण हुआ है, केन्द्र की एकदलीय सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाने का रचनात्मक कार्य
सम्पन्न हुआ है तथा संविधान ने राज्यों को जो स्वायत्तता प्रदान की है, उसकी रक्षा सम्भव हो सकी है।
राज्यस्तरीय दलों के कारण अनेक राज्यों में प्रतियोगी दलीय प्रणाली सामने आई, जिससे संसदीय व्यवस्था
का संचालन आसान हुआ है। इन दलों की सबसे बड़ी रचनात्मक भूमिका यह है कि इनके द्वारा राज्य विशेष
के लिए अधिकतम आर्थिक सुविधाओं की मांग की गई जिससे प्रादेशिक विषमता दूर हुई और भारत के
समुचित सर्वांगीण विकास को गति मिली। राज्यस्तरीय दलों के कारण ही विकास की अनेक योजनाओं और
कार्यक्रमों का क्रियान्वयन हुआ है।
गठबन्धन सरकार में क्षेत्रीय दलों का महत्व
इस प्रकार राज्यस्तरीय दलों ने संविधान द्वारा प्रदत्त राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा की है, संसदीय व्यवस्था
के सफल संचालन में सहायता की है तथा राज्यों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उत्तर
पूर्वी भारत के विभिन्न राज्यों में सक्रिय क्षेत्रीय दलों ने भारत सरकार को इस बात के लिए प्रेरित किया कि
इन राज्यों की विशेष परिस्थितियों और आकांक्षाओं को समझें । ये सभी बातें राष्ट्रीय एकता को मजबूत
करने में सहायक हुई हैं। इस प्रकार राज्यस्तरीय दलों का अस्तित्व तथा उनकी शक्ति नितान्त स्वाभाविक
और उचित है तथा इन दलों के कारण राष्ट्रीय एकता को कोई आघात नहीं पहुंचा, वरन् अधिकांश
परिस्थितियों में राष्ट्रीय एकता को बल मिला है। RELETED LINK