डोकरा धातु शिल्प
डोकरा धातु शिल्प पश्चिम बंगाल का लालबाज़ार न केवल एक कला केंद्र है, बल्कि एक लोकप्रिय धातु शिल्प, डोकरा का केंद्र भी बन रहा है। वर्ष 2018 में पश्चिम बंगाल के डोकरा शिल्प को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) टैग के साथ प्रस्तुत किया गया था।A
डोकरा के बारे में:
- डोकरा झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में रहने वालेओझा धातुकर्मियों द्वारा प्रचलित बेल धातु शिल्प का एक रूप है।
- हालाँकि इस कारीगर समुदाय की शैली और कारीगरी भी अलग-अलग राज्यों में भिन्न है।
- ढोकरा या डोकरा कोबेल मेटल क्राफ्ट के रूप में भी जाना जाता है।
- ढोकरा नाम ढोकरा डामर जनजातियों से लिया गया है, जो पश्चिम बंगाल के पारंपरिक धातुकर्मी हैं।
- लॉस्ट वैक्स कास्टिंग की उनकी तकनीक का नाम उनकी जनजाति के नाम पर ढोकरा धातु की ढलाई रखा गया है।
Economyएक राष्ट्र, एक उर्वरक
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डोकरा धातु शिल्प
डोकरा कलाकृतियाँ पीतल की हैं और इस मायने में अनूठी हैं कि इन टुकड़ों में कोई जोड़ नहीं होता है।यह तकनीक लॉस्ट वैक्स कास्टिंग और धातुशोधन का संयोजन है, जिसमें साँचे का उपयोग केवल एक बार किया जाता है और निर्माण के बाद तोड़ दिया जाता है, जिससे यह कला दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र कला बन जाती है।
- यह जनजाति झारखंड से लेकर ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान और केरल तक फैली हुई है।
- प्रत्येक मूर्ति को बनाने में लगभग एक माह का समय लगता है।
- मोहनजोदड़ो (हड़प्पा सभ्यता) की नृत्यांगना सबसे पुरानी ढोकरा कलाकृतियों में से एक है जिसे अब जाना जाता है।
- डोकरा कला का उपयोगअभी भी कलाकृतियों, सामान, बर्तनों और आभूषणों को बनाने के लिये किया जाता है।
डोकरा धातु शिल्प
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