चुनाव चिह्न को लेकर विवाद

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चुनाव चिह्न को लेकर विवाद भारत के चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को ‘शिवसेना’ नाम और पार्टी का धनुष और तीर का चिन्ह आवंटित किया, इस तरह इसे बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित मूल पार्टी के रूप में मान्यता दी गई  ।

संदर्भ:

  • भारतीय चुनाव आयोग ने शुक्रवार को एकनाथ शिंदे गुट को ‘शिवसेना’ नाम तथा दल का प्रतीक ‘धनुष एवं तीर’ आवंटित किया।

परिचय:

  • भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने एकनाथ शिंदे गुट को बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित मूल दल के रूप में मान्यता दी और उन्हें ‘शिवसेना’ नाम तथा दल का प्रतीक ‘धनुष और तीर’ आवंटित किया।
  • आयोग ने “बहुमत परीक्षण” (test on majority) के आधार पर अपना निर्णय दिया है।
  • भारतीय चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और दलों के आंतरिक लोकतंत्र पर चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुरूप 2018 के अपने संविधान में संशोधन करने का भी आदेश दिया है।
  • भारतीय चुनाव आयोग ने टिप्पणी की कि यह “विरोधाभासी” था कि किसी दल के आंतरिक कामकाज की जांच केवल विवाद निवारण के मामलों में की गई थी। आयोग ने पार्टियों से भारतीय चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों का पालन करने और समय-समय पर अपने संविधान की एक प्रति और पदाधिकारियों की सूची अपनी वेबसाइटों पर अपलोड करने के लिए कहा है।

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चुनाव प्रतीकों को लेकर विवाद:

  • निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 के अनुच्छेद 15 के तहत, भारतीय चुनाव आयोग किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रतिद्वंद्वी समूहों या वर्गों के बीच दल के नाम और प्रतीक पर उनके दावे से संबंधित विवादों का फैसला कर सकता है।
  • आयोग का निर्णय ऐसे सभी प्रतिद्वंद्वी वर्गों/समूहों पर बाध्यकारी होगा।
  • यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों के बीच विवादों पर लागू होता है।
  • पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त दलों में विभाजन के मामले में, चुनाव आयोग आमतौर पर संघर्षरत गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या न्यायालय में जाने की सलाह देता है।चुनाव चिह्न को लेकर विवाद

चुनाव आयोग कैसे निर्णय करता है?

  • भारतीय चुनाव आयोग प्राथमिक तौर पर राजनीतिक दल के संगठनात्मक शाखा और विधायी शाखा में दल के दावेदारों को प्राप्त समर्थन की जाँच करता है।
  • संगठनात्मक शाखा के मामले में, आयोग दल के संविधान और दल के एकजुट रहते हुए प्रस्तुत पदाधिकारियों की सूची की जांच करता है। भारतीय चुनाव आयोग संगठन में शीर्ष समिति (समितियों) की पहचान करता है और यह पता लगाता है कि कितने पदाधिकारी, सदस्य या प्रतिनिधि प्रतिद्वंद्वी दावेदारों का समर्थन करते हैं।
  • विधायी शाखा के मामले में, प्रतिद्वंद्वी गुट में सांसदों और विधायकों की संख्या देखी जाती है। भारतीय चुनाव आयोग इन सदस्यों द्वारा दायर हलफनामों पर विचार कर सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे किसके साथ हैं।

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बहुमत का परीक्षण’:

  • अपना निर्णय पारित करते समय, चुनाव आयोग ने सादिक अली बनाम भारतीय चुनाव आयोग मामले 1971 में उल्लिखित तीन परीक्षणों पर विचार किया और उनका विश्लेषण किया, जिसमें दल के संविधान के लक्ष्यों और उद्देश्यों का परीक्षण, दल के संविधान का परीक्षण और बहुमत का परीक्षण शामिल है।चुनाव चिह्न को लेकर विवाद
  • इनमें से, चुनाव आयोग ने दल के संविधान के लक्ष्यों और उद्देश्यों के परीक्षण को अनुपयुक्त पाया।
  • चुनाव आयोग ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान विवाद मामले को निपटाने के लिए दल के संविधान के परीक्षण का उपयोग करना अलोकतांत्रिक होगा और दलों में इस तरह की प्रथाओं के प्रसार में उत्प्रेरक का कार्य करेगा।
    • दल के संविधान की कसौटी पर अमल करते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि शिवसेना का 2018 का संशोधित संविधान आयोग के रिकॉर्ड में नहीं है।
    • चुनाव आयोग ने पाया कि दल को उसके मूल संविधान के अलोकतांत्रिक मानदंडों द्वारा किसी व्यक्ति या समूह की संपत्ति बना दिया गया था।
  • इसके 2018 के संविधान ने एक ही व्यक्ति को विभिन्न संगठनात्मक नियुक्तियां करने की व्यापक शक्तियां प्रदान की थीं।
  • इसलिए, चुनाव आयोग ने विधायी शाखा में बहुमत के परीक्षण पर भरोसा किया, जो गुणात्मक रूप से शिंदे गुट के पक्ष में है, जिसके पास 55 में से 40 विधायकों और 18 में से 13 शिवसेना सांसदों का समर्थन है।

क्या होता है जब कोई निश्चितता नहीं होती है?

  • जहां दल या तो समान रूप से विभाजित होता है या निश्चित रूप से यह कहना संभव नहीं होता है कि किस समूह के पास बहुमत है, वहाँ चुनाव आयोग दल के प्रतीक को फ्रीज कर सकता है और समूहों को नए नामों के साथ खुद को पंजीकृत करने या दल के मौजूदा नामों में उपसर्ग या प्रत्यय जोड़ने की अनुमति दे सकता है।

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क्या होता है जब प्रतिद्वंद्वी गुट भविष्य में एकजुट होते हैं?

  • यदि प्रतिद्वंद्वी गुट फिर से एक हो जाते हैं, तो दावेदार फिर से चुनाव आयोग से संपर्क कर सकते हैं और एक एकीकृत पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने की मांग कर सकते हैं। चुनाव आयोग को समूहों के विलय को एक इकाई में मान्यता देने का भी अधिकार है। चुनाव आयोग मूल पार्टी के प्रतीक और नाम को पुनर्स्थापित कर सकता है।

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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल                                                                                                                                                                      विदेशी हाथ,   

Chilling effect: On defamation, free speech and the Rahul Gandhi case  

                                                                                                                                      

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