महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा
महिलाओं दिल्ली उच्च न्यायालय ने घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत कार्यवाही पर रोक लगा दी है, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाते हुए एक स्थानीय अदालत का रुख किया था।
घरेलू हिंसा क्या है?
घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन पर संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहन करना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताड़ित महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है।
घरेलू हिंसा के कारण
- महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का मुख्य कारण मूर्खतापूर्ण मानसिकता है कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में शारीरिक और भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं।
- प्राप्त दहेज़ से असंतुष्टि, साथी के साथ बहस करना, उसके साथ यौन संबंध बनाने से इनकार करना, बच्चों की उपेक्षा करना, साथी को बताए बिना घर से बाहर जाना, स्वादिष्ट खाना न बनाना शामिल है।
- विवाहेत्तर संबंधों में लिप्त होना, ससुराल वालों की देखभाल न करना, कुछ मामलों में महिलाओं में बाँझपन भी परिवार के सदस्यों द्वारा उन पर हमले का कारण बनता है।
- पुरुषों के प्रति घरेलू हिंसा के कारणों में पत्नियों के निर्देशों का पालन न करना, ‘पुरुषों की अपर्याप्त कमाई, विवाहेत्तर संबंध, घरेलू गतिविधियों में पत्नी की मदद नहीं करना है’ बच्चों की उचित देखभाल न करना, पति-पत्नी के परिवार को गाली देना, पुरुषों का बाँझपन आदि कारण हैं।
- बच्चों के साथ घरेलू हिंसा के कारणों में माता-पिता की सलाह और आदेशों की अवहेलना, पढ़ाई में खराब प्रदर्शन या पड़ोस के अन्य बच्चों के साथ बराबरी पर नहीं होना, माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बहस करना आदि हो सकते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के साथ घरेलू हिंसा के कारणों में बाल श्रम, शारीरिक शोषण या पारिवारिक परंपराओं का पालन न करने के लिये उत्पीड़न, उन्हें घर पर रहने के लिये मजबूर करना और उन्हें स्कूल जाने की अनुमति न देना आदि हो सकते हैं।
- गरीब परिवारों में पैसे पाने के लिये माता-पिता द्वारा मंदबुद्धि बच्चों के शरीर के अंगों को बेचने की ख़बरें मिली हैं। यह घटना बच्चों के खिलाफ क्रूरता और हिंसा की उच्चता को दर्शाता है।
- वृद्ध लोगों के खिलाफ घरेलू हिंसा के मुख्य कारणों में बूढ़े माता-पिता के ख़र्चों को झेलने में बच्चे झिझकते हैं। वे अपने माता-पिता को भावनात्मक रूप से पीड़ित करते हैं और उनसे छुटकारा पाने के लिये उनकी पिटाई करते हैं।
- विभिन्न अवसरों पर परिवार के सदस्यों की इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिये उन्हें पीटा जाता है। बहुत ही सामान्य कारणों में से एक संपत्ति हथियाने के लिये दी गई यातना भी शामिल है।
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महिलाओं
भारत में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप
भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अनुसार, घरेलू हिंसा के पीड़ित के रूप में महिलाओं के किसी भी रूप तथा 18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका को संरक्षित किया गया है। भारत में घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं-
- महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा-किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना जैसे- मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना,महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिये विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करना, किसी महिला या लड़की को अपमानित करना, उसके चरित्र पर दोषारोपण करना, उसकी शादी इच्छा के विरुद्ध करना, आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक दुर्व्यवहार करना आदि। यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड रिपोर्ट के अनुसार, लगभग दो-तिहाई विवाहित भारतीय महिलाएँ घरेलू हिंसा की शिकार हैं और भारत में 15-49 आयुवर्ग की 70% विवाहित महिलाएँ पिटाई, बलात्कार या ज़बरन यौन शोषण का शिकार हैं।
- पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा-इस तथ्य पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है कि महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा एक गंभीर और बड़ी समस्या है, लेकिन भारत में पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। समाज में पुरुषों का वर्चस्व यह विश्वास दिलाता है कि वे घरेलू हिंसा के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। हाल ही में चंडीगढ़ और शिमला में सैकड़ों पुरूष इकट्ठा हुए, जिन्होंने अपनी पत्नियों और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा उनके खिलाफ की जाने वाली घरेलू हिंसा से बचाव और सुरक्षा की गुहार लगाई थी।
- बच्चों के विरुद्ध घरेलू हिंसा-हमारे समाज में बच्चों और किशोरों को भी घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। वास्तव में हिंसा का यह रूप महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बाद रिपोर्ट किये गए मामलों की संख्या में दूसरा है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा भारत में उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के परिवारों में इसके स्वरूप में बहुत भिन्नता है। शहरी क्षेत्रों में यह अधिक निजी है और घरों की चार दीवारों के भीतर छिपा हुआ है।
- बुजुर्गों के विरुद्ध घरेलू हिंसा-घरेलू हिंसा के इस स्वरूप से तात्पर्य उस हिंसा से है जो घर के बूढ़े लोगों के साथ अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा की जाती है। घरेलू हिंसा की यह श्रेणी भारत में अत्यधिक संवेदनशील होती जा रही है। इसमें बुजुर्गों के साथ मार-पीट करना, उनसे अत्यधिक घरेलू काम कराना, भोजन आदि न देना तथा उन्हें शेष पारिवारिक सदस्यों से अलग रखना शामिल है।
घरेलू हिंसा के प्रभाव
- यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में घरेलू हिंसा का सामना किया है तो उसके लिये इस डर से बाहर आ पाना अत्यधिक कठिन होता है। अनवरत रूप से घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद व्यक्ति की सोच में नकारात्मकता हावी हो जाती है। उस व्यक्ति को स्थिर जीवनशैली की मुख्यधारा में लौटने में कई वर्ष लग जाते हैं।
- घरेलू हिंसा का सबसे बुरा पहलू यह है कि इससे पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात से वापस नहीं आ पाता है। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि लोग या तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं या फिर अवसाद का शिकार हो जाते हैं।
- घरेलू हिंसा की यह सबसे खतरनाक और दुखद स्थिति है कि जिन लोगों पर हम इतना भरोसा करते हैं और जिनके साथ रहते हैं जब वही हमें इस तरह का दुख देते हैं तो व्यक्ति का रिश्तों पर से विश्वास उठ जाता है और वह स्वयं को अकेला कर लेता है। कई बार इस स्थिति में लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
- घरेलू हिंसा का सबसे व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। सीटी स्कैन से पता चलता है कि जिन बच्चों ने घरेलू हिंसा में अपना जीवन बिताया है उनके मस्तिष्क का कॉर्पस कॉलोसम और हिप्पोकैम्पस नामक भाग सिकुड़ जाता है, जिससे उनकी सीखने, संज्ञानात्मक क्षमता और भावनात्मक विनियमन की शक्ति प्रभावित हो जाती है।
- बालक अपने पिता से गुस्सैल व आक्रामक व्यवहार सीखते हैं। इस का असर ऐसे बच्चों का अन्य कमज़ोर बच्चों व जानवरों के साथ हिंसा करते हुए देखा जा सकता है।
- बालिकाएँ नकारात्मक व्यवहार सीखती हैं और वे प्रायः दब्बू, चुप-चुप रहने वाली या परिस्थितियों से दूर भागने वाली बन जाती हैं।
- प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि हिंसा की शिकार हुई महिलाएँ समाजिक जीवन की विभिन्न गतिविधियों में कम भाग लेती हैं।
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महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
· यह अक्टूबर 2006 में लागू हुआ और इसका उद्देश्य घरेलू हिंसा के पीड़ितों को सुरक्षा और सहायता प्रदान करना है। · राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति करें, सेवा प्रदाताओं का पंजीकरण करें और आश्रय गृहों और चिकित्सा सुविधाओं को अधिसूचित करें। · यह एक नागरिक कानून है जो घरेलू हिंसा के पीड़ितों की रक्षा और सहायता प्रदान करने के लिए है। · अधिनियम के तहत, पीड़ित महिला विभिन्न राहतों जैसे संरक्षण आदेश, निवास आदेश, हिरासत आदेश, मुआवजे का आदेश, मौद्रिक राहत, आश्रय और चिकित्सा सुविधाओं की मांग कर सकती है। · पीड़ित महिला आईपीसी की धारा 498 ए के तहत भी शिकायत दर्ज कर सकती है। |
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