सिविल सेवा परीक्षा चयन की प्रक्रिया में परिवर्तन की राय। //अभ्यर्थियों के अनुकूल बने संपूर्ण प्रक्रिया।

सिविल सेवा परीक्षा चयन

सिविल सेवा परीक्षा चयन

सिविल सेवा परीक्षा चयन सिविल सेवा का सपना पाले उन तमाम अभ्यर्थियों की आंखों और चेहरे पर एक नजर डालकर  दिन महीने और साल कब कैसे गुजर गए इससे कुछ हद तक समझा जा सकता है इस सपने की अधेड़ बुन में न जाने कितने अभ्यर्थी मानसिक तनाव आर्थिक दबाव अवसाद और बढ़ती उम्र समेत घटते अवसर संभावना और आशंकाओं के बीच झूलते रहते हैं ऐसे में इस परीक्षा और युवाओं को ध्यान में रखकर संभावित विचार समय-समय पर होना स्वाभाविक है यही कारण है कि इन दिनों सिविल सेवा परीक्षा को लेकर एक बार चर्चा फिर जोरों पर है इसकी मुख्य वजह है सिविल सेवा भर्ती की लंबी प्रक्रिया के चलते समय की बर्बादी समेत कई बिंदु हैं विदित हो कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण मामलों को स्थाई संसदीय समिति ने स्पष्ट किया है कि सिविल सेवा भर्ती को लगभग 15 महीने तक चलने वाली लंबी प्रक्रिया उम्मीदवारों का बहुत अधिक समय बर्बाद करती है इसका उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसके अलावा अन्य कई संदर्भों को ध्यान में रखते हुए समिति ने संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी में इस भर्ती प्रक्रिया की अवधि को घटाने को कहा है संबंधित रिपोर्ट में उन कारणों को भी पता लगाने को कहा है जिसकी वजह से युवाओं की संख्या इस परीक्षा को लेकर कम हो रही हैसमिति की राय।

उल्लेखनीय है कि यूपीएससी एक संवैधानिक संस्था है जिसका गठन संविधान के अनुच्छेद 315 ( क) के तहत किया गया है यूपीएससी परीक्षा पास होने का सपना लाखों युवाओं की आंखों में होता है चुनौतियों से भरी सिविल सेवा परीक्षा में सफल होना कठिन तो बहुत है परंतु असंभव बिल्कुल नहीं है इसके लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है सिविल सेवा परीक्षा की भर्ती प्रणाली को लेकर समिति की राय है कि संपूर्ण प्रक्रिया 6 माह से अधिक नहीं होनी चाहिए सिविल सेवा परीक्षा का विज्ञापन आमतौर पर फरवरी में प्रारंभिक परीक्षा मई और मुख्य परीक्षा सितंबर में होती है किंतु साक्षात्कार और मुख्य परीक्षा के बीच काफी लंबी अवधि होती है अमूमन साक्षात्कार अगले साल मार्च-अप्रैल में होते हैं तत्पश्चात परिणाम घोषित होता है हालांकि वर्ष 2020 और 2021 का परीक्षा समय पर नहीं हो पाई थी क्योंकि कोरोना के कारण परीक्षा समय पर नहीं हो पाई थी उल्लेखनीय है कि विज्ञापन और 3.5महीने का अंतर होता है जबकि मुख्य परीक्षा सितंबर में संपन्न होने में महज 4 महीने और अधिक लगते हैं  मगर मुख्य परीक्षा के परिणाम आते-आते आमतौर पर 5 महीने से अधिक समय लग जाता है ऐसे में यह अवधि अधिक प्रतीत होती है यदि मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार की अवधि को संकुचित किया जाए तो इस परीक्षा को वर्ष भर के अंदर अंतिम रूप दिया जा सकता है यही स्थाई संसदीय समिति की मूल चिंता भी है परंतु इसे 6 माह में संपन्न कराना भी संभव नहीं लगता है और न ही अभ्यर्थियों  के लिए हितकारी प्रतीत होता है इसके अतिरिक्त समिति युवाओं को परीक्षा के प्रति घटते रुझान को लेकर भी चिंतित है

घट रही परीक्षार्थियों की संख्या।

बीते कुछ वर्षों के आंकड़ों से स्पष्ट है की सिविल सेवा परीक्षा को लेकर युवाओं आवेदन तो जोर शोर से करते हैं परंतु परीक्षा में शामिल होने के मामले में पिछे रह जाते हैं 2020 में आवेदन करने वालों की संख्या 10.40 लाख से अधिक थी परंतु परीक्षा में शामिल होने वालों की संख्या 4.82 लाख ही रही वर्ष 2021 में 10.93 लाख लोगों ने फॉर्म भरा जिनमें से 5 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने ही परीक्षा दी हालांकि उस वर्ष कोरोना महामारी के कारण भी बहुत सारे अभ्यर्थी शामिल नहीं हो पाए वर्ष 2022 में आवेदनों की संख्या 11.35 लाख हुई और परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों की संख्या 5.73 लाख ही थी इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आवेदन करना और परीक्षा में भागीदारी करना दोनों के बीच का अंतर 50 परसेंट है स्थाई संसदीय समिति की चिंता इस लिहाज से ठीक ही है जो आवेदक फरवरी में यूपीएससी के प्रति आकर्षित होता है वह 3 माह बाद परीक्षा में उस उत्साह के साथ शामिल क्यों नहीं होता?  यूपीएससी को इस सवाल का जवाब तलाशना ही चाहिए।

हीट वेव

 हिंदी और अंग्रेजी माध्यम का अंतर।

2011 में जब इस परीक्षा के पाठ्यक्रम और प्रणाली में अभूतपूर्व परिवर्तन करते हुए प्रारंभिक परीक्षा से वैकल्पिक विषय हटाकर सीसैट जोड़ा गया तो इसमें अंग्रेजी को भी प्रारंभिक परीक्षा के सीसैट में प्रश्नपत्र में शामिल किया गया हालांकि विरोध के चलते 2 साल बाद ही उसे हटा दिया गया यह वही समय था जब हिंदी माध्यम वाले अभ्यर्थियों की चयन दर तेजी से गिरने लगी थी पड़ताल से पता चला कि 2014 में हिंदी माध्यम की चयन दर महज 2 .1 प्रतिशत वर्ष 2015 में 4.28% वर्ष 2016 में 3.45% वर्ष 2017 में 4% और 2019 में यह 2% ही रही संसदीय स्थाई समिति इस संबंध में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की सिफारिश की है जो यह भी पता लगाएगी कि वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में क्या अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने वाले उम्मीदवारों और गैर अंग्रेजी माध्यम के उम्मीदवारों को समान अवसर मिल रहा है या नहीं इस रिपोर्ट में यह जांचने की बात है कि प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा की व्यवस्था क्या व्यक्तियों को उनके शैक्षणिक पृष्ठभूमि से परे समान अवसर प्रदान कर रही है।

 समिति की चिंता।

देखा जाए तो समिति किए चिंता सही भी है की हिंदी और अंग्रेजी का अंतर कितना और कहां है वैसे चयन दर से जुड़े उक्त आंकड़े  निराश करने वाले हैं परंतु बीते कुछ वर्षों में हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों को चयन दर तुलनात्मक रूप से सुधरी है वर्ष 2021 के अंतिम परिणाम में हिंदी माध्यम के टॉपर को 17वी रैंक मिली थी जबकि इससे पहले हिंदी माध्यम के टॉपर 300 रैंक से पहले मुश्किल से ही दिखाई देते थे सिविल सेवा परीक्षा के बदलाव को अगली कड़ी में वर्ष 2013 में मुख्य परीक्षा में 2 वैकल्पिक विषयों के स्थान पर 1 किया गया। सामान्य अध्ययन के प्रश्न पत्रों की संख्या 2 से 4 कर दी गई तब इसकी भर्ती अवधि में तुलनात्मक रूप से कम कर दी गई थी परंतु 15 महीनों का  समय अभी भी अधिक तो है।

 अभ्यर्थियों के अनुकूल बने संपूर्ण प्रक्रिया।

सिविल सेवा परीक्षा को लेकर कार्मिक एवं प्रशिक्षण मामलों को स्थाई संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग और यूपीएससी को विशेषज्ञ समूह द्वारा सिविल सेवा के परीक्षा कार्यक्रम और पाठ्यक्रम में सुधार के बदलाव पर विचार करना चाहिए इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सिविल सेवा परीक्षा पूर्ण होने के बाद भी प्रारंभिक परीक्षा को उत्तर कुंजी यूपीएससी जारी करता है ऐसे में मुख्य परीक्षा से पहले उत्तर  की चुनौती देने का अवसर नहीं मिलता उच्चतम स्तर की सतर्कता के बावजूद भी गलत की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता ऐसे में  अभ्यर्थियों को आपत्ति दर्ज कराने का अवसर मिलना चाहिए स्पष्ट है कि उक्त सभी बातें हर लिहाज से अभ्यर्थियों के हितों की समर्थन करती हुई दिखाई देती है आमतौर पर प्रतियोगिता परीक्षा कई शिकायतों से भरी रहती है कार्मिक और प्रशिक्षण मामलों की स्थाई संसदीय समिति जिन बातों पर जोर दे रही है उसके अनुपालन की स्थिति में सिविल सेवा परीक्षा और उच्च कोटि की बन सकती है इसमें कोई दो राय नहीं कि समय के आईने में समझ को सही से उतारने और उसका निष्पादन करना बदलाव के साथ जरूरी रहा है ऐसे में जो बदलाव अभी तक सिविल सेवा में संभव नहीं हुए हैं उसका होना अच्छा ही रहेगा किसी भी शासन प्रणाली में उसके सिविल सेवकों की गुणवत्ता कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है और इस संदर्भ में भर्ती को बेहतर सकारात्मक बनाना जरूरी है 1951 को गोरवाला समिति से लेकर वर्तमान तक कई समितियों और आयोग में लोक सेवकों को भर्ती प्रशिक्षण आदि को लेकर कई बातें कही गई है इनमें 1966 के द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की संस्तुति भी मील का पत्थर साबित हो रही है कोठारी समिति की संस्तुति पर वर्ष 1979 में भारत में पहली बार सिविल सेवा परीक्षा में त्रिस्तरीय परीक्षा प्रणाली आधार प्रारंभिक मुख्य और साक्षात्कार को शामिल किया गया था जबकि 1993 में इसमें पहली बार निबंध प्रश्नपत्र जोड़ा गया था सतीश चंद्र समिति पीसी होता समिति समेत कई समितियों की संस्तुतियों पिछले तीन दशक में देखने को मिली है कमी वेश तमाम समितियों और आयोगों के रास्ते से गुजरती यह परीक्षा 2011 में एक बार बड़े परिवर्तन से गुजरी और मौजूदा समय में फिर एक नए चिंतन के दौर में है इसके नतीजे क्या होंगे पता नहीं लेकिन इसके प्रति सकारात्मक संभावनाएं जताई जा सकती है वैसे एक वास्तविकता यह भी है कि जैसा स्थाई संसदीय समिति मान रही है कि इसकी लंबी अवधि से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है फिलहाल सिविल सेवा का सपना देखने वाले अभ्यर्थियों हर रोज एक नई रणनीति से जूझते हैं नई समस्याएं रोज उनके सामने आती है अवसर बचाने की चुनौती सही मार्गदर्शन करने की चुनौती कोचिंग्स भोजन किताब कॉपी शुद्ध पेयजल और स्वास्थ्य रोज एक चुनौती है इसके बावजूद इन अभ्यर्थियों के सपनों आंखों से न तो सोते हैं और   न ही जागते हैं और नहीं घटते हैं और न ही यह कम होते हैं ऐसे में संसदीय समिति जो चिंता कर रही है वह इस चिंतन से परिपूर्ण है कि ऐसे अभ्यर्थियों  के लिए उसकी सोच तुलनात्मक  रूप से हितकारी होगी।

सिविल सेवा परीक्षा चयन

सिविल सेवा परीक्षा चयन

 आगे की दिशा।

सिविल सेवा परीक्षा में हर वर्ष लगभग 11लाख प्रत्याशी शामिल होते हैं परंतु इसकी प्रारंभिक परीक्षा से लेकर चयन तक की प्रक्रिया में लगने वाले समयावधि 15 माह तक लंबी हो जाती है लिहाजा कार्मिक एवं प्रशिक्षण मामलों की स्थाई संसदीय समिति ने इस अवधि को कम करने की संस्तुति की है कि समिति का यह मानना है कि कितनी लंबी समयावधि अभ्यर्थियों के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के अलावा वित्तीय प्रबंधन को भी प्रभावित करती है ऐसे में इस और अधिक ध्यान दिया जाना अपेक्षित है

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SAHBAR   DR.SUNIL KUMAR SINGH , DANIK  Jagran

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