समावेशी विकास का पर्याय है मनरेगा // रोजगार की गारंटी योजना

  • समावेशी विकास का पर्याय

  • समावेशी विकास का पर्याय जब उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की समाप्ति हुई तो भारत के समक्ष दो ही असली मुद्दे थे पहला राष्ट्र निर्माण दूसरा सामाजिक आर्थिक प्रगति इसी की पृष्ठभूमि में विकास प्रशासन का जन्म हुआ और समाज के बहुमुखी और नियोजित विकास पर जोर दिया जाने लगा इस यात्रा को 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं और अमृत महोत्सव चल रहा है इसमें कोई असत्य नहीं की आवाजविहीन जड़विहीन और भविष्यविहीन विकास को तभी रोका जा सकता है इसके लिए सुनियोजित और दूरदर्शी कदम निरंतर उठते रहे इस कड़ी में समावेशी विकास विकास की एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें रोजगार के अवसर निहित होते हैं और गरीबी को कम करने में मददगार के रूप में देखा जा सकता है अवसर की समानता तथा शिक्षा और कौशल के माध्यम से लोगों को सशक्त करना भी इसका निहित पक्ष है बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में मसलन आवास भोजन पेयजल स्वास्थ्य आदि समेत आजीविका के साधनों को निरंतर प्रगतिशील बनाए रखना समावेशी विकास के लक्ष्योन्मुख  अवधारणा है गौरतलब है कि देश के ढाचा और उसमें निहित विकास की कई जमावटो से युक्त है जिसमें सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और तकनीकी विकास समेत अन्य शामिल है इसी के अंतर्गत 21वीं सदी के पहले दशक के मध्य में समावेशी विकास को सशक्त करने की दिशा में मनरेगा योजना को फरवरी 2006 में प्रारंभ किया गया था गौरतलब है कि इससे पहले नरेगा यानि कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना तत्पश्चात 2 अक्टूबर 2009 से महात्मा गांधी का नाम जोड़ते हुऐ  इसे मनरेगा की संज्ञा दी गई इस योजना के माध्यम से फिलहाल देश के गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति को सुधारने हेतु शुरू की गई योजनाओं से हैं देश के करोड़ों नागरिकों को लाभ मिल चुका है और इसकी उपलब्धि को देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह महज योजना नहीं बल्कि ग्रामीण रोजगार की दृष्टि से एक क्रांतिकारी पहल है इस योजना ने देश के समावेशी ढांचे को न केवल पुख्ता किया है बल्कि पलायन से लेकर मुफलिसी गरीबी और भुखमरी पर भी अंकुश लगाने में कारगर सिद्ध हुई है सुशासन की दृष्टि से यदि मनरेगा की माप तोल करें तो वहां भी यह शासन की ओर से उठाया गया ऐसा कदम है जो लोग सशक्तिकरण के साथ कदमताल करता है और निहित मापदंडों में बुनियादी विकास की दृष्टि से आजीविका की बेहतरीन खोज है 1 फरवरी 2023 के मनरेगा योजना को लेकर ₹60000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए जो साल 2022,23 के निर्गत बजट में 73000 करोड रूपये के मुकाबले 18% कम है जबकि संशोधित अनुमान से करीब 32% कम है मुख्य बिंदु यह है कि किसी भी योजना की प्रगति पर सफलता में निहित बजट कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है बीते 9 वर्षों की पड़ताल बताती है कि सरकार मनरेगा को लेकर कहीं अधिक सकारात्मक रही है और हर बजट में अनुमान बड़े हुए दर में ही देखने को मिलते हैं जबकि इस बार सरकार का रूख इससे कुछ ज्यादा ही विमुख हुआ है मुख्य आर्थिक सलाहकार की मानें तो मनरेगा के लिए बजट आवंटन घटाने से रोजगार पर कोई असर नहीं पड़ेगा गौरतलब है कि मनरेगा के बजट में कटौती मगर पीएम आवास योजना ग्रामीण और जल जीवन मिशन आदि मदों में राशि अच्छी खासी बढ़ा दी गई है माना जा रहा है कि इस प्रकार की योजना से ग्रामीण को रोजगार मिलने की उम्मीद है तथाकथित परिपेक्ष में यह भी है कि मनरेगा की तुलना रोजगार की दृष्टि से किसी अन्य से करना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि यह रोजगार की गारंटी योजना है

     रोजगार की गारंटी योजना

    सुशासन के लिए आवश्यक है नीतिगत समीक्षा

    समावेशी विकास का पर्याय

    समावेशी विकास का पर्याय

    जबकि अन्य किसी मिशन में रोजगार की संभावना कम ज्यादा के साथ वैकल्पिक होगी मनरेगा में बजट की कटौती ग्रामीण रोजगार की दिशा में जारी समावेशी विकास के लिए भी एक नई समस्या बन सकती है विदित हो कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान जब नगरों और महानगरों से करोड़ों कामगार अपने गांव और घर पहुंचे थे तो मनरेगा ने ही आजीविका चलाने में बड़ी भूमिका अदा की थी  देखा जाए तो मनरेगा दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याण कार्यक्रम है जिसमें ग्रामीण श्रम में एक सकारात्मक बदलाव को प्रेरित किया है आंकड़े बताते हैं कि कार्यक्रम के शुरुआती 10 वर्ष में कुल 300000 करोड रुपए से अधिक खर्च किए गए और आजीविका और सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से यह गरीबों के लिए सशक्तिकरण की अगुवाई करने लगा।   2013-14 में मनरेगा के तहत कार्यरत व्यक्तियों की संख्या लगभग 8 करोड थी जो 2014,15में घटकर 45 करोड़ के आस पास हो गई उसके बाद इसमें बढ़ोतरी भी हुई और कमोवेश ग्रामीण बेरोजगारों के लिए संजीवनी का रूप लिए हुए हैं जिसमें महिलाओं की संख्या आधी और कभी आधी से अधिक भी देखी जा सकती है दूसरे शब्दों में कहें तो लंबी जिंदगी को बड़ी करने में मन नरेगा कईयों के लिए वरदान का काम कर रही है ग्रामीण भारत को श्रम की गरिमा से परिचित कराने वाली मनरेगा किसी परिचय का मोहताज नहीं है इसके तहत प्रत्येक परिवार के सदस्यों के लिए 100 दिन का गारंटी सुधा रोजगार  दैनिक बेरोजगारी भत्ता और परिवहन भत्ता यदि 5 किलोमीटर दूर है तो आधी का प्रावधान किया गया है सूखाग्रस्त और जनजातीय इलाकों में 150 दिनों के रोजगार का प्रावधान है जनवरी 2009 में केंद्र सरकार सभी राज्यों के लिए अधिसूचित की गई मनरेगा मजदूरी की दर  को प्रतिवर्ष संशोधित करती है मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत राज्य में खेतिहर मजदूरों के लिए निर्दिष्ट मजदूरी के अनुसार किया जाता है मनरेगा में कर्मचारियों के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे पीने का पानी प्राथमिक चिकित्सा भी जो बुनियादी ढांचा भी है  जो समावेशी ढांचे से युक्त है  गौरतलब है कि 24 जुलाई 1993 एक बड़ा आर्थिक परिवर्तन उदारीकरण के रूप में देश में आया जिसके रहस्य में आर्थिक प्रगति शामिल थी और इसके ठीक 1 वर्ष बाद 1992 में पंचायती राज व्यवस्था को 73 वें संविधान संशोधन के अंतर्गत संवैधानिक स्वरूप से युक्त किया गया।  देश के तीसरे स्तर की सरकार अर्थात स्थानीय स्वशासन भारत के विकास की कुंजी सिद्ध हुई और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में एक मजबूत पहल के रूप में जाना जाता है देखा जाए तो पंचायती राज व्यवस्था लोकतांत्रिक ढांचे को विकसित करने में कारगर रही है जहां 50 फ़ीसदी से अधिक महिलाओं की भागीदारी और  इन्हीं पंचायती राज संस्थाओं को मनरेगा के तहत किए जा रहे कार्यों के नियोजन और क्रियान्वयनऔर निगरानी हेतु बनाया गया है  दो टूक यह है कि पंचायती राज व्यवस्था लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के साथ समावेशी ढांचे को भी मजबूती देने में कारगर सिद्ध हो रही है जबकि मनरेगा उसी पृष्ठभूमि में आजीविका और गरिमामय जीवन की दृष्टि से इसी ढांचे को सशक्त बना रही है मनरेगा एक अकुशल कर्मचारियों को दिए जाने वाले रोजगार की गारंटी योजना हैं जब तक ग्रामीण क्षेत्र में कौशल निर्माण करना संभव नहीं होगा तब तक स्थाई रोजगार की संभावना कम रहेगी गौरतलब है कि देश में कौशल विकास के 25000 केंद्र हैं जिसमें ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में है  जबकि चीन जैसे बराबर की आबादी वाले देश में 5 लाख ऐसे केंद्र देखे जा सकते हैं दक्षिण कोरिया ऑस्ट्रेलिया जैसे कम आबादी वाले देशों में भी कौशल केंद्रों की संख्या एक लाख है फिलहाल मनरेगा गरीब समर्थक और आजीविका का संयुक्त रोजगार गारंटी की एक ऐसी योजना है जा रूखे सूखे विकास के बीच रोजगार की हरियाली का अवसर मिलता है ऐसे में इसकी शक्ति को न घटा जाए तो देश की ताकत बढ़ेगी और ग्रामीण जनता आर्थिक परेशानियों से कुछ हद तक निजात मिलती रहेगी

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