Chandrayaan-3
Chandrayaan-3 दक्षिण ध्रुव पर लेंडिंग क्यों करेगा आखिर वह घड़ी आने वाली है जिसका इंतजार हर भारतीय को हो रहा है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद यानी इसरो chandrayaan-3 की लॉन्चिंग 14 जुलाई को दोपहर 2:35 पर हो रही है इसरो का यह तीसरा अभियान है पहले शुरुआती दो अभियान क्षेत्र में काफी हद तक सफल भी रहे थे और दूसरी तरफ माने तो विफल भी रहे थे। चंद्रयान 3 2 दिन बाद चंद्रमा की यात्रा पर निकलने के लिए तैयार हैं और यह 14 दिन तक चंद्रमा पर रहेगा अगर चंद्र दिन की बात करें तो 196 दिन वह चंद्रमा पर रहेगा। क्योंकि यह लगभग पृथ्वी के 14 दिन के बराबर है। इस मिशन में दक्षिण ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला मिशन होगा चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्य रेखा क्षेत्र में चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश होते हैं अब सवाल यह रह जाता है कि वैज्ञानिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ही उतारना क्यों चाहते हैं। इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा कि chandrayaan-3 को अंतरिक्ष यान के साथ पूरी तरह से जोड़ दिया गया है और हमने इसका परीक्षण भी पूरा कर लिया है। Chandrayaan-3 को अंतरिक्ष यान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा और इसका प्रक्षेपण एलएमवी,3 रॉकेट के जरिए किया जाएगा जिस से पहले जीएसएलवी मार्क 3 के नाम से जाना जाता था।
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में लैंडिंग क्यों मुश्किल है।
चंद्रमा के धुव छेत्र में सबसे अलग और कठिन धरातल वाले दक्षिण क्षेत्र में स्थित है जहा कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां सूरज की पूर्णत: रोशनी नहीं पहुंच पाती है और हमेशा अंधेरा छाया रहता है और कई जगह तापमान 230 डिग्री सेल्सियस के नीचे तक भी जा सकता है जहां अत्यधिक तापक्रम कम रहता है और सूर्य के प्रकाश की कमी भी रहती है जिसके कारण उपकरण अक्सर काम करना बंद कर देते हैं या उनके संचालन में काफी कठिनाई आती है और इसके अलावा वहां बड़े-बड़े गड्ढे भी हैं जिनका आकार और विस्तार कुछ सेंटीमीटर से लेकर के हजार किलोमीटर तक हो सकते है।
भूमध्य रेखीय इलाके में उतरना क्यों आसान है।
भूमध्य रेखा के पास उतरना काफी आसान और सुरक्षित है क्योंकि इस इलाके का तापमान काफी सामान्य रहता है जिससे उपकरण आसानी से और लंबे समय तक निरंतर कार्य करते रहते हैं यह उनके लिए अधिक अनुकूलन है यहा परत समतल है और चिकनी भी है यहां ढलान बहुत कम है पहाड़ी क्षेत्र में गड्ढे भी बहुत कम है जिसे सूर्य की रोशनी आसानी से पहुंच जाती है और यहां पृथ्वी की ओर वाले हिस्से में ऐसे में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण आसानी से चल सकते हैं अधिकतर अंतरिक्ष यान भूमध्य रेखीय इलाके में उतरते हैं भारत-दक्षिण धुव में ही क्यों लैंडिंग करवा रहा है। दक्षिण ध्रुव का क्षेत्र अपने सामान्य तापक्रम और वातावरण के कारण अभी तक के क्षेत्र में अज्ञात बने हुए हैं कई ऑपरेटर मशीनों ने यहां सबूत भी दिए हैं कि अगर इन क्षेत्रों का पता लगाया जाए तो यह दिलचस्प हो सकते हैं यहां उपस्थित गहरे गड्ढों में पर्याप्त मात्रा में प्रकाश की किरणों की उपस्थिति का भी संकेत मिलता है भारत का पहला चंद्रयान 2008 में जिसको लांच किया था। उसने अपने उपकरणों की सहायता से यहां पानी की उपस्थिति का संकेत भी दिया था इस इलाके में अत्यधिक ठंड के कारण कोई भी वस्तु यहां लंबे समय तक बिना बदलाव के काफी समय तक जमी रहेगी उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की चट्टानों और मिट्टी प्रारंभिक और सौरमंडल के बारे में अधिक जानकारी प्रदान कर सकती है यही वजह है कि हम यहां चंद्रयान को उतार रहे हैं।
चंद्रयान – 3 भेजने का मकसद।
इस चंद्रयान के माध्यम से चांद पर उपस्थित रासायनिक तत्वों और मिट्टी पानी के कणों जैसे प्राकृतिक संसाधनों के बारे में जानकारी लेना और यह अभियान के द्वारा चंद्रमा की जो बनावट को लेकर भी काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है यह अंतरिक्ष यान अपने साथ बहुत सारे उपकरण भी ले जा रहा है जो कई रहस्य मय जानकारियां हमें प्रदान कर सकता है।
यह चंद्रयान मिशन इतना महत्वपूर्ण क्यों?
Chandrayaan-3 का अभियान ने केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है विश्व भर के वैज्ञानिकों की नजर भारत के चंद्रयान पर 14 जुलाई को लॉन्च होने जा रहा है उस पर रहेगी क्योंकि यह एकमात्र अभियान है जो दक्षिण पूर्व में सॉफ्ट लैंडिंग करेगा लैंड चांद की सतह पर जाएगा जिसके बारे में हमें कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है इससे भविष्य में अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमता हों की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति होगी। आइए हम सब मिलकर इस मिशन की सफलता के लिए इसरो की पूरी टीम को अग्रिम शुभकामनाएं निश्चित रूप से 14 जुलाई का दिन ऐतिहासिक होगा जिसका प्रत्येक भारतीय और प्रत्येक वैज्ञानिक समुदाय के लिए नई दिशा देने वाला होगा।