राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023
सुर्खियों में क्यों?
राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023 हाल ही में, नीति आयोग ने "राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति समीक्षा 2023" शीर्षक से
एक रिपोर्ट जारी की है।
बहुआयामी गरीबी क्या है?
- गरीबी – विश्व बैंक के अनुसार, जो लोग प्रतिदिन 2.15 डॉलर कमाने में असमर्थ हैं, वे अत्यधिक
गरीबी में जी रहे हैं।
- यूएनडीपी के अनुसार, यह गरीबी का माप है जो लोगों द्वारा अपने दैनिक जीवन में खराब स्वास्थ्य,
अपर्याप्त शिक्षा और निम्न जीवन स्तर सहित अनुभव किए गए विभिन्न अभावों पर विचार करता है।
- यह गरीबी की जटिलता को पकड़ने का एक साधन है जो केवल मौद्रिक गरीबी से परे कल्याण के
आयामों पर विचार करता है।
- वैश्विक एमपीआई रिपोर्ट – बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम
(यूएनडीपी) द्वारा ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल के सहयोग से प्रतिवर्ष प्रकाशित किया
जाता है।
- यह अल्किरे-फोस्टर (एएफ) पद्धति पर आधारित है जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में
अतिव्यापी अभावों को प्रदर्शित करता है।
नीति आयोग की एमपीआई रिपोर्ट किस बारे में है?
- राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी
सूचकांक: एक प्रगति समीक्षा 2023
– राष्ट्रीय स्तर पर, नीति आयोग
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के
लिए एमडीपी रिपोर्ट जारी करने वाली
नोडल एजेंसी है।
- यह सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)
1.2 की दिशा में प्रगति का आकलन
करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
है – इसके सभी आयामों में गरीबी में
रहने वाले सभी उम्र के पुरुषों,
महिलाओं और बच्चों के अनुपात को
कम से कम आधा करना।
- यह NFHS-4 (2015-16) और
NFHS-5 (2019-21) की सर्वेक्षण
अवधि के बीच बहुआयामी गरीबी में
बदलाव को प्रस्तुत करता है।
- स्रोत डेटा – डेटा इनपुट राष्ट्रीय
परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) से लिया गया है।
- संकेतक – भारत के राष्ट्रीय एमपीआई के 3 समान रूप से महत्व वाले आयाम हैं – स्वास्थ्य, शिक्षा
और जीवन स्तर – जो 12 संकेतकों द्वारा दर्शाए जाते हैं।
- राष्ट्रीय एमपीआई के उप-सूचकांक
कुल संख्या अनुपात (H): कितने गरीब हैं?
जनसंख्या में बहुआयामी गरीबों का अनुपात, जो कुल जनसंख्या से बहुआयामी गरीब
व्यक्तियों की संख्या को विभाजित करने पर निकाला जाता है।
गरीबी की तीव्रता (I): गरीब कितने गरीब हैं?
अभावों का औसत अनुपात जो बहुआयामी गरीब व्यक्तियों द्वारा अनुभव किया जाता है।
तीव्रता की गणना करने के लिए, सभी गरीब लोगों के भारित अभाव अंकों को जोड़ा जाता है
और फिर गरीब लोगों की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है।
एमपीआई मूल्य कुल संख्या अनुपात (H) और गरीबी की तीव्रता (A) को गुणा करके निकाला
जाता है, जो गरीबी में लोगों की हिस्सेदारी और उनके वंचित होने की डिग्री दोनों को दर्शाता है।
इसलिए MPI=H × I
- यदि किसी व्यक्ति के लिए अभाव स्कोर (सभी संकेतकों की भारित स्थिति का योग) 0.33 से अधिक
है, तो एक व्यक्ति को बहुआयामी रूप से गरीब माना जाता है।
प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत में गरीबी – गरीबी में भारी गिरावट आई है, भारत ने 2015-16 और 2019-21 के बीच अपने
एमपीआई मूल्य और हेडकाउंट अनुपात में उल्लेखनीय कमी हासिल की है।
- इसमें बहुआयामी गरीब व्यक्तियों की संख्या में जो वर्ष 2015-16 में 24.85% से घटकर 2019-
2021 में 14.96% दर्ज की गई।
- खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के पानी आदि जैसे संकेतकों में सुधार के कारण 5 साल की
समयावधि के बीच लगभग 13.5 करोड़ भारतीय गरीबी से मुक्त हुए।
- यदपि पोषण और शिक्षा तक पहुंच जैसे संकेतकों में मामूली सुधार के कारण 7 में से 1 भारतीय
बहुआयामी रूप से गरीब है।
- क्षेत्रीय असमानता– शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में 32.59% से 19.28% तक तेजी
से गिरावट देखी गई।
- राज्यों में गरीबी – बहुआयामी गरीबी में रहने वाले 10% से कम लोगों वाले राज्यों की संख्या वर्ष
2016 और 2021 के बीच पांच वर्षों में दोगुनी हो गई है।
- गरीबी को स्थिर अथवा कम करने वाले राज्य हैं मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, सिक्किम,
तमिलनाडु, गोवा और केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर और उत्तराखंड।
- बिहार के अलावा भारत के किसी अन्य राज्य की एक तिहाई से अधिक आबादी बहुआयामी गरीबी में
नहीं जी रही है।
भारतीयों को बहुआयामी रूप से गरीब बनाए रखने का कारण क्या है?
- एकरूपता का अभाव- जीवन स्तर, स्वास्थ्य और शिक्षा के तीन मुख्य संकेतकों में गरीबी में कमी का
समान रूप से प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है।
- सीमांत स्वास्थ्य प्रदर्शन- स्वास्थ्य के तीन उप-संकेतकों पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर और मातृ
स्वास्थ्य में केवल मध्यम सुधार दिखा।
- पोषण का अभाव- एमपीआई की गणना में इसका योगदान सबसे अधिक 30% के करीब है जिसके
परिणामस्वरूप भारत में लगभग 1/3 बहुआयामी गरीबी है।
- शिक्षा की कमी- यह स्कूली शिक्षा के वर्षों की कमी (16.65%), और वांछित से कम स्कूल उपस्थिति
(9.10%) के कारण है।
- खाना पकाने का ईंधन- हालांकि यह एक महत्वपूर्ण सुधार है, लगभग 44% भारतीय आबादी अभी भी
इससे वंचित है।
- स्वच्छता- इसमें सुधार के बावजूद लगभग 30% आबादी अभी भी स्वच्छता सेवाओं से वंचित है।
- आवास तक पहुंच- भारत में 41% आबादी अभी भी आवास से वंचित है।
राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू और नीति आयोग RELATED LINK