Adi Kailash ki Yatra
Adi Kailash ki Yatra आदि कैलाश और हम…
हिमालय की वादियों के कुछ पन्ने
जीवन एक सफ़र है और हम सब इसके मुसाफ़िर… जीवन के सफ़र में भी इंसान बहुत से सफर करता है… जहां यात्राएं कुछ नया तलाशने में मदद करती हैं… कई बार सफ़र में जाकर ही मुसाफ़िर को ख़ुद को जानने और समझने का मौका मिलता है। साथ ही यात्राओं और सफर से बहुत कुछ नया सीखने और दुनिया को जानने का भी अवसर मिलता है। कुल मिलाकर जब तक जीवन है, हर इंसान का सफ़र जारी रहता है। सबका सफर भले ही अलग हो, पर सफर सबको करना पड़ता है। यदि ख़्वाजा मीर दर्द के शायराना अंदाज़ में कहें तो ….
“सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां..!!”
सीकर जिले के हम आधा दर्जन दोस्त अक्सर दुनियावी सफ़र को करीब से जानने के लिए और इस रंग बिरंगी दुनिया को महसूस करने के लिए थोड़ी बहुत ज़रूरत का सामना लेकर निकल जाया करते हैं कुदरत की गोद में थोड़ी अठखेलियां करने के लिहाज़ से… विगत दिनों हमारा प्लान हिमालयी की खुबसूरती करीब से जानने की चाह लिए हम सप्ताह भर की योजना बनाकर निकल गये… गांव देहात की पगडंडियों पर हिचकोले खाती ज़िंदगी से लेकर एक्सप्रेस वे पर सरपट दौड़ती जिंदगी को देखा… हमने डिजीटल दुनिया में में इमेजिनेशन में जीती दुनिया से लेकर प्रकृति की गोद में विशुद्ध मानव संस्कृति का वो रूप भी देखा जो शायद हमारे अंतर्मन में था और हमें लगातार चुम्बकीय आकर्षण दे रहा था।
हम लोग हिमालय की गोद में स्थित उत्तराखंड में सोरघाटी के नाम से कभी पहचान रखने वाले पिथौरागढ़ नामक नवीन पहचान को थामे धर्म और संस्कृति के अद्भुत स्थल से हिमालय की पर्वतमालाओ में घुसे….यहां उत्तराखंड के नेपाल सीमा को लगते धारचूला में पहुंचे जहां से प्रकृति की नई खुशबू महसूस की जाने लगी थी… अब हम भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी के किनारे चले हिमालय की बर्फ से पिघलकर आता यह निर्मल जल भारत की धमनियों में रक्त की भांति जो बहता है लिहाज़ा इसके घाटियों से उतरते समय कल-कल की ध्वनि लिए बहाव बड़ा रोमांच पैदा हो रहा था…हम धारचूला से हिमालय की गोद में प्रकृति की खूबसूरती को अपने भीतर थामे पर्यटन और हिमालयी संस्कृति को अपने भीतर था में करीब एक दर्जन गांवों को और इनमें सबसे भारत के उस हिस्से को करीब से जानने की कोशिश की जो हमारे हिस्से में पहली बार आया… हमने इन गांवों की खूबसूरती को महसूस किया…. वाकई पहाड़ी गांव और इनपर बैठकर चाय की चुस्कियां अद्भुत सा रोमांच भरती है… ये हमारे अंतर्मन में जगह कर गए गांव दोबट, एला गांव, गस्को, लिम्फेंग, बूंदी, नपल्च्यू, गुंजी, नांबी, रान्कांग गांव देखें गये… भारत नेपाल की सीमा पर अंतिम गांव कुट्टी की संस्कृति को भी करीब से देखा तो हमने यहां हिमालय की गोद में बने गोरी कुण्ड, पार्वती सरोवर, आदि कैलाश को देखा… ऋषि मुनियों की तपोभूमि आदि कैलाश जो समुद्रतल से करीब 6191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उत्तराखंड में चीन सीमा के करीब स्थित है…. इसी इलाके में प्रसिद्ध ओम पर्वत भी मौजूद है… आदि कैलाश देखने में कैलाश की प्रतिकृति ही लगता है… कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह ही आदि कैलाश यात्रा भी रोमांच और खूबसूरती से लबरेज है… यहां चौपहिया वाहन से पहुंचना बेहद साहसिक कार्य नजर आया… एकदम खड़ी चढ़ाई बहुत बार अनहोनी की ओर ले जा रही थी लेकिन जहां आस्था और विश्वास के पैमाने बड़े होते है और शिव की शक्ति की कृपा होती है तो सब ठीक ही होता है… आस्था की बड़ी पीठ आध्यात्मिक शुकून देती है ।
जानकारी के लिए बता देना चाहूंगा कि…
जहां एक तरफ तिब्बत की चीन सीमा के पास आदि कैलाश पर्वत स्थित है…. वहीं से आध्यात्मिक भूमि आदि कैलाश के दर्शन होते हैं… विगत 6 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदि कैलाश पहुंचे थे… इस स्थान पर हम अपनी होंडा wrv के माध्यम से आदि कैलाश पर्वत पर पहुंचे… वहां तैनात आईटीबीपी के जवानों ने बताया कि यह गाड़ी कैसे यहां पहुंच पाई क्योंकि रास्ता बहुत ही ज्यादा खराब और ऊंची ऊंची चोटियों है जहां कच्चे रास्ते बने में उन रास्तों से जब गुजरते हैं तो तिरछे मोड़ आते हैं उन पर एक तरफ खड़े हैं तो एक तरफ पत्थर गाड़ी का संतुलन बिठाना बहुत मुश्किल होता है… यानी यहां इस तरह पहुंचना आश्चर्य प्रदान करता है… वहीं दूसरी तरफ़ हैप्पी पर्वत से काली नदी का उद्गम स्थल है जो भारत और नेपाल की सीमा को अलग करती है… जब हम लिपुलेख धारा की ओर जाते हैं तो वहां काली नदी का उद्गम स्थल का दर्शन करके अपने आप में सौभाग्यशाली समझते हैं…. उसी के समरूप ॐ पर्वत का दर्शन अपने आप में अद्भुत अनुभूति देने वाला है… कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन हमारा तो यही कहना है कभी आइए महसूस कीजिए… इन हिमालयी वादियों में अपने आप को चंद दिन समर्पित कीजिए… क्योंकि जो कहने सुनने से कुछ नहीं होता है आप कभी प्रकृति के करीब जाकर महसूस कीजिए…!!
जमील मलिक के शब्दों में कहें तो…
“यूं तो घर ही में सिमट आई है दुनिया सारी
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो..!!”
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