INDIA CHINA RELATIONSHIP//चीन का अड़ियल रवैया

INDIA CHINA RELATIONSHIP

विदेश मंत्री एस जयशंकर का चीन के लिए दो टूक संदेश है।

  • INDIA CHINA RELATIONSHIP भारत के साथ सीमा विवाद पर चीन के रवैए को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर नाराजगी भरे अंदाज में जो कहा, वह चीन के लिए दो टूक संदेश है।INDIA CHINA RELATIONSHIP
  • आस्ट्रिया की राजधानी वियना में मीडिया से बातचीत में जयशंकर ने साफ कहा कि आज भारत और चीन के बीच जो तनावपूर्ण हालात बने हुए हैं, उसका दोषी चीन ही है। वह पहले विवाद खड़े करता है और फिर उन्हें सुलझाने के लिए जो समझौते करता है, उनका भी पालन नहीं करता। चीन के इस कुटिल रवैए को लेकर विदेश मंत्री यह बात राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों से बार-बार कहते रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन वर्षों से भारत को सीमा विवाद में जिस तरह से उलझाता जा रहा है, उससे क्षेत्रीय शांति को भी खतरा बढ़ रहा है।
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    इतना ही नहीं, चीन भारत से लगी सीमा पर कई इलाकों में जिस तरह से घुसपैठ करता रहा है, उसका नतीजा यह हुआ है कि उत्तर-पूर्व से लेकर लेह-लद्दाख तक नए-नए विवादित सीमा क्षेत्र बनते जा रहे हैं। जाहिर है, भारत को भी हर ऐसे मोर्चे पर अपनी सुरक्षा मजबूत करनी पड़ रही है जहां पिछले कुछ सालों में चीन की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं।

  • इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर चीन अपना दोहरे चरित्र वाला रवैया छोड़ दे और सीमा विवाद से जुड़े समझौतों का पालन करे तो दोनों देशों के बीच हर समस्या का समाधान आसानी से निकल सकता है। भारत तो हमेशा से यह कहता भी रहा है कि वह सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का पक्षधर है। लेकिन चीन का दादागीरी भरा रवैया भारत के शांति प्रयासों पर पानी फेरने वाला ही रहा है।INDIA CHINA RELATIONSHIP
  • इसीलिए विदेश मंत्री जयशंकर को बार-बार यह कहने को मजबूर होना पड़ता है कि सीमा पर तनाव भरे हालात चीन के रवैए की वजह से बिगड़ते जा रहे हैं। गलवान की घटना और उसके बाद भारत के कई इलाकों में अतिक्रमण और घुसपैठ की चीनी सैनिकों की कोशिशें इसका उदाहरण हैं। गौरतलब है कि जून 2020 में गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया था और इसमें चौबीस भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। चीनी सैनिकों ने भारत की सीमा में जिन इलाकों में अतिक्रमण कर लिया था, वहां से चीन को पीछे हटाने के लिए अब तक शांति वार्ताओं के दौर चल रहे हैं और अभी भी पूर्वी लद्दाख में हालात तनावपूर्ण ही हैं।

    India-Tajikistan Relations

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    सीमा विवाद शांति और सद्भाव से सुलझ जाए, इसके लिए भारत की ओर से कम प्रयास नहीं हुए। साल 1996 में दोनों देशों के बीच हुए एक समझौते में साफ कहा गया था कि कोई भी पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में गोली नहीं चलाएगा, न ही इस क्षेत्र में बंदूक, रासायनिक हथियार या विस्फोटक ले जाने की अनुमति होगी।

  • इसके अलावा, 2013 में किए गए सीमा रक्षा सहयोग करार में भी साफ कहा गया था कि अगर दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने आ भी जाते हैं तो वे बल प्रयोग, गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष नहीं करेंगे। लेकिन गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमला करते हुए चीन ने इन समझौतों की धज्जियां उड़ा दीं। और फिर उसके बाद उसने पूरे गलवान क्षेत्र में जिस तरह सैनिकों की तादाद बढ़ाना और स्थायी निर्माण का काम शुरू दिया, विवादित स्थलों पर आज भी उसके सैनिक डटे हैं, यही तनाव बढ़ाने वाली बात है।

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चीन का अड़ियल रवैया

  •   एक महीने से अधिक समय से सिक्किम-तिब्बत-भूटान सीमा के डोका-लाम क्षेत्र में भारत-चीन के सैनिक आमने-सामने डटे हैं| दोनों ओर से गरमागरम बयान जारी किये जा रहे हैं, विशेषकर चीन की ओर से दी जा रही धमकियां| युद्ध तो नहीं, पर युद्ध जैसा माहौल है—स्थिति तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में है| यह भी स्पष्ट है कि युद्ध कोई नहीं चाहता, ऐसे में भारत के सामने प्रश्न यह है की वह चीन की धौंस-पट्टी का जवाब कैसे दे? चीन कभी युद्ध की बात करता है तो कभी पंचशील की| सीमा पर दोनों ओर सैनिक जमे हैं और वाक्पटुता का दौर जारी है |INDIA CHINA RELATIONSHIP

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भारत को नई चीन नीति की ज़रूरत?

  • दोनों देश 1962 की दुश्मनी को पीछे छोड़कर काफी आगे निकल आए हैं तथा द्विपक्षीय एवं वैश्विक स्थितियों ने हालात बिल्कुल बदल दिये हैं| •विगत कुछ वर्षों से चीन के राष्ट्रपति ज़ी जिनपिंग विश्वभर में चीन की नई छवि गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं, और वह नहीं चाहता कि दुनिया उसे उत्तर कोरिया के बड़े भाई के तौर पर जाने|•चीन के राष्ट्रपति इधर कुछ वर्षों से विश्व में आर्थिक एकीकरण और आर्थिक सुधारों के सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे हैं और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर संरक्षणवाद की तीव्र आलोचना की है| •चीन आज एक बड़ी सैन्य शक्ति है, लेकिन उसके आर्थिक हित भारत से इस प्रकार जुड़े हैं कि वह युद्ध नहीं चाहता|•चीन की ओर से प्रत्येक संभावित स्तर पर भारत को चेतावनी देने वाले बयान जारी हुए हैं, जबकि भारत ने अभी तक संयम बनाकर रखा है•भारत-चीन सीमा पर पूर्व में देपसार तथा चुमार में हुए तनाव की तुलना में इस बार दोनों देशों के बीच तनाव भी अधिक है और सैन्य तैनाती भी|INDIA CHINA RELATIONSHIP
  • सीमा पर हैं| •भारत-चीन के बीच सीमा पर इस प्रकार की झड़पें होना असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस डोका-ला क्षेत्र में पहली बार दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आए हैं|•भारत के लिये डोका-लाम का यह क्षेत्र बेहद महत्त्वपूर्ण है, यदि यहाँ चीन की सेना जम गई तो भारत के पूर्वोत्तर तक उसकी पहुँच बेहद आसान हो जाएगी|• इस मामले को कूटनीतिक प्रयासों से तुरंत सुलझाने की आवश्यकता है अन्यथा सीमा पर होने वाले  छोटे-छोटे अन्य विवादों को तूल पकड़ते देर नहीं लगेगी|•अब तक भारत-चीन इस प्रकार के विवादों को कूटनीतिक प्रयासों से हल करते आए हैं, यह पहली बार है जब मामला इतना पेचीदा हो गया है| •अपनी सुरक्षा के मद्देनज़र भारत को हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि 16 जून से पहले की स्थिति बहाल की जाए, जब न तो चीन की तरफ से सड़क निर्माण हो रहा था और न ही भारतीय सैनिक वहाँ थे|•चीन के सैनिक तो वहाँ से हटने को तैयार नहीं हैं और इसे लेकर वहाँ का सरकारी मीडिया (ग्लोबल टाइम्स) अपने कड़े तेवर दिखा चुका है| ऐसे में भारत को इस मामले को सुलझाने के लिये बैक डोर डिप्लोमेसी से काम लेना होगा और ऐसा वह कर भी रहा है|•दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के बीच ‘केमिस्ट्री’ काफी अच्छी है; ऐसे में उच्च स्तर पर प्रयास  करके भी इस विवाद का हल निकाला जा सकता है|INDIA CHINA RELATIONSHIP

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भारत की चीन को चुनौती?

  • कुछ विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि इस विवाद के पीछे चीन की OBOR परियोजना है, जिसमें सुरक्षात्मक कारणों का हवाला देकर भारत शामिल होने से इनकार कर चुका है| विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति होने का चीन का अहम् इससे आहत हुआ है|•चीन ने यह कदम क्षेत्रीय संप्रभुता को बढ़ाने के लिये तो नहीं ही उठाया है, दरअसल वह एशिया में अपनी आर्थिक शक्ति को भारत से मिलने वाली चुनौती को स्वीकार नहीं कर पा रहा है|•भारत CPEC में शामिल होने के चीन के निमंत्रण को भी पहले ही ठुकरा चुका है| ऐसे में उसे लगता है कि भारत ही इस क्षेत्र में उसकी सर्वोच्चता को चुनौती देता है, इसलिये वह इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देता रहता है|• दक्षिण चीन सागर में सेनकाकू द्वीप के मुद्दे पर भी भारत चीन का समर्थन न करके फिलिपींस और वियतनाम जैसे देशों के साथ खड़ा नज़र आता है| चीन को यह स्वीकार नहीं कि एशिया में उसके रुतबे को चुनौती देने वाला कोई हो|•इन बदली हुई परिस्थितियों में भारत के लिये यह ज़रूरी हो गया है कि वह अन्य एशियाई देशों के साथ कूटनीतिक और सामरिक सहयोग बढ़ाकर चीन की चुनौतियों का मुकाबला करे| •ऐसा करने में भारत को अधिक कठिनाई नहीं होगी

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    क्योंकि चीन का अपने सभी पड़ोसियों (14 देश) से किसी-न-किसी  मुद्दे पर या अकारण ही विवाद चलता रहता है|•भारत का यह प्रयास होना चाहिए कि एशियाई देशों को इस बात के लिये राज़ी करे कि वे चीन के साथ भी मधुर संबंध बनाकर रखें ताकि दोनों देशों के हितों पर किसी प्रकार की आँच न आए और चीन भारत को अपना विरोधी न समझे|•भारत हिन्द महासागर और अरब सागर के क्षेत्र में कई देशों के साथ संयुक्त नौसैन्य अभ्यास करता है और चीन यह कभी नहीं चाहता कि भारत तथा अन्य वैश्विक शक्तियों  की कोई ऐसी धुरी बने जो उसकी विरोधी हो|•निरंतर प्रगाढ़ हो रहे भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर भी चीन की चिंता रही है कि यह उसके खिलाफ एक सोची-समझी चाल है और वह इसकी आलोचना भी करता रहा है|• चीन चूँकि प्रत्येक संभावित अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का विरोध करता रहा है, इसलिये भी वह इस क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को अपने लिये चुनौती मान रहा है|•चीन की कई चेतावनियों के बावजूद भारत द्वारा दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश जाने से न रोकने को चीन अपने लिये एक बड़ी चुनौती मानता है; इसलिये भी वह भारत का हर संभावित विरोध कर रहा है|SOURCES-jansatta,THEHINDU   INDIA CHINA RELATIONSHIP

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