- बच्चों की जिंदगी में मोबाइल फोन बन रहा है जहर
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प्रौद्योगिकी
- मोबाइल के दुष्परिणाम वर्तमान समय में हमारे जीवन में प्रौद्योगिकी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है और हर क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हर स्थिति के दो पहलू होते हैं उन पर जो पढ़ने वाले प्रभाव हैं सकारात्मक और नकारात्मक दोनों स्थितियां हमें प्रभावित करती है लेकिन विगत वर्षों में देखा गया है की मोबाइल फोन आम जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है जैसा कि हमारी मूलभूत आवश्यकताएं हैं उनमें अब एक मोबाइल का नाम भी जुड़ गया है लेकिन विभिन्न अवस्थाओं में इसके प्रभाव भी अलग-अलग है जब कोरोना के दौर में देखा गया कि विद्यार्थियों के हाथों में मोबाइल थमा दिए गए और उसका परिणाम धीरे-धीरे नजर आने लगा है ऑनलाइन स्टडी के परिणाम स्वरूप अभिभावक और उनके शिक्षकों के द्वारा जब विद्यालय विपरीत परिस्थितियों में बंद थे तब उन्हें मोबाइल के माध्यम से अध्यापन कार्य करवाया जाता था
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मोबाइल के दुष्परिणाम
- यह उसका एक सकारात्मक पहलू था की बच्चे विद्यालय नहीं जा कर भी अध्ययन कार्य कर रहे थे और अपने जिज्ञासाओं को शांत कर रहे थे लेकिन इसका दूसरा जो पहलू है वह बहुत डरावना है जब हमारे बच्चे हमसे दूर चले जाते हैं तब उनके हाथों में मोबाइल दे देते हैं मोबाइल इसलिए उनको देते हैं ताकि हम उनकी गतिविधियों को लेकर के चिंतित रहते हैं जैसे कि उन्होंने खाना खाया कि नहीं खाया उनकी दिन की गतिविधि कैसी रही अभी वह क्या कर रहे हैं उदाहरण के माध्यम से आप को समझाने का प्रयास कर रहे हैं दिनेश लाड जिसको नवंबर 2022 में द्रोणाचार्य लाइफटाइम अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था भारतीय क्रिकेटर रोहित शर्मा और सादुल ठाकुर के बचपन के दिनों के प्रशिक्षक थे और वे सोचते हैं कि मोबाइल उनकी विजय में बहुत बड़ी बाधा है और इस बात को अनेक बार उन्होंने प्रमाणित भी किया है बड़ोदरा में अंडर 14 वेस्ट जोन लीग टूर्नामेंट में मुंबई की जीत इसका एक ताजा उदाहरण है इस टूर्नामेंट के दौरान दिनेश लाड एक नया नियम लागू किया कि टूर्नामेंट के दौरान किसी भी क्रिकेटर को मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा और यह टूर्नामेंट 25 दिन चला सिर्फ अपने परिवार से पूरे टूर्नामेंट में दो ही बार बात करने दिया गया वह भी केवल दो-तीन मिनट के लिए और यह इसलिए किया गया ताकि उनका पूरा फोकस टूर्नामेंट पर रहे उनके पेरेंट्स उसमें दखल नहीं दे क्योंकि अब पेरेंट्स बहुत बार अपने बच्चों को खुद ही कोचिंग देने लग जाते हैं
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मोबाइल के दुष्परिणाम
- जिसके कारण उनका ध्यान भंग होता है दिनेश लाड का यह प्रयोग सफल रहा क्योंकि उससे सभी बच्चों का ध्यान टूर्नामेंट पर रहा और उनकी आपस में दोस्ती भी हो गई क्योंकि एक दूसरे से दूर रहने के लिए उनके पास मोबाइल नहीं था इसलिए ज्यादा से ज्यादा समय अपने साथी खिलाड़ियों के साथ उन्होंने व्यतीत किया और अपने कार्य से फोकस किया इससे अच्छी टीम बनकर तैयार हो गई और इस नीति को कई बार लागू किया और हमेशा सफल भी रहे 2019-20 में भी मुंबई अंडर 16 के प्रशिक्षक थे तभी उन्होंने जीत हासिल की थी और इस बार भी सीजन का पहला टाइटल उन्होंने जीत लिया है और यह केवल एक संजोग से नहीं हुआ लाड के अनुसार इसमें भी प्रमाणित विज्ञान है गुजरात को पारी और 8 रनों से पराजित किया बड़ौदा को भी उन्होंने पारी और 68 रनों से हराया और महाराष्ट्र के साथ उन्होंने ड्रॉ खेला और कई अन्य कारक भी उनकी जीत में मददगार थे मुंबई की क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा लार्ड पर भरोसा बनाए रखा और उन्हें कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान की चयनकर्ताओं द्वारा एक अच्छी टीम का चुनाव किया गया वास्तव में प्रौद्योगिकी को समझने वाले अभिभावकों के द्वारा बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं अपने बच्चों को मोबाइल फोन नहीं देते हैं जब उनकी स्कूल एजुकेशन पूर्ण हो जाती है तब तक मोबाइल फोन से दूर रखा जाता है साथ ही पेरेंट्स बच्चों को सप्ताह में पिकनिक पर ले जाते हैं और उनके साथ समय व्यतीत करते हैं उसे यह देखा गया है
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मोबाइल के दुष्परिणाम
- बच्चे कहीं ज्यादा मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं परिवार में सभी सदस्यों में आपसी स्नेह का माहौल बना रहता है साथ ही सामाजिक रिश्तो में भी लगाव बना रहता है हमें प्रत्येक महीने में कुछ समय मोबाइल से दूर है कर अपने आप को परिवार व दोस्तों के साथ समय गुजार कर देखें इसके परिणाम बहुत सकारात्मक नजर आने लगेंगे आप अपनी दिनचर्या में कुछ समय मोबाइल से दूर रहे है ताकि आने वाले समय में हम अपने बच्चों को भी यह समझा सकें कि मोबाइल जिंदगी नहीं है मोबाइल के बगैर भी बहुत खुशमिजाज जिंदगी होती है जीवन में प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है लेकिन पूर्ण जिंदगी को प्रौद्योगिकी नहीं बना सकते जब एक क्रिकेटर मोबाइल के बगैर रह कर अच्छा परिणाम दे सकता है तो क्या हम शिक्षा में इसको लागू नहीं कर सकते हैं क्या हम बच्चों को मोबाइल से दूर नहीं रख सकते। यह हम सब शिक्षाविदों के लिए विचारणीय बिंदु है जिस पर हम सब मंथन करें और बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने में सहयोग करें अन्यथा अनावश्यक मोबाइल प्रयोग बच्चों की जिंदगी में जहर घोल सकता है जिसके दुष्परिणाम बहुत भयानक होंगे जिसकी कल्पना नहीं कि होगी मैंने खुद अपने जीवन में लागू किया है क्या आप लागू करेंगे इसी उम्मीद के साथ।
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