चीन-पाकिस्तान परमाणु समझौता
सुर्खियों में क्यों?
चीन-पाकिस्तान परमाणु समझौता हाल ही में, चीन और पाकिस्तान ने पाकिस्तान के चश्मा परमाणु परिसर में 1,200 मेगावाट के परमाणु ऊर्जा
संयंत्र के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
पाकिस्तान का ऊर्जा क्षेत्र
पाकिस्तान वर्तमान में छह चीन निर्मित परमाणु संयंत्रों, चश्मा कॉम्प्लेक्स में चार छोटे रिएक्टर और कराची
परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KANUPP) में दो का संचालन कर रहा है।
पाकिस्तान का सबसे पुराना रिएक्टर, कनाडा निर्मित KANUPP-1, अब बंद हो चुका है, जबकि
KANUPP-2 और KANUPP-3 दोनों 1,100 मेगावाट चीनी Hualong One रिएक्टरों का उपयोग करते
हैं।
निरंतर ऊर्जा घाटे, वित्तीय संकट और बढ़ते आयात बिल का सामना करते हुए, देश को नवीकरणीय ऊर्जा और
परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी तत्काल बढ़ाने की जरूरत है।
वर्ष 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्तमान में ऊर्जा मिश्रण में तापीय स्रोतों की हिस्सेदारी 61%
है, जबकि जलविद्युत की हिस्सेदारी 24%, परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 12% और पवन एवं सौर ऊर्जा की
हिस्सेदारी केवल 3% है।
वर्ष 2019 में शुरू की गई वैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा नीति में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की
हिस्सेदारी को 30% तक बढ़ाने की परिकल्पना की गई है।
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की जांच के दायरे में चीन
एनएसजी परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों का एक समूह है "जो परमाणु निर्यात और परमाणु-संबंधित निर्यात के
लिए दिशानिर्देशों के दो सेटों के कार्यान्वयन के माध्यम से परमाणु हथियारों के अप्रसार में योगदान
करता है।
यह स्पष्ट रूप से अपने सदस्यों द्वारा उन देशों को परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर प्रतिबंध
लगाता है जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
चीन वर्ष 2004 में 48 सदस्यीय समूह में शामिल हुआ और बाद में तर्क दिया कि चश्मा 3 और चश्मा
4 रिएक्टर पाकिस्तान के साथ उसके पहले चश्मा सौदे के तहत थे, जो एनएसजी में उसके शामिल होने
से पहले का था।
चीनी विश्लेषकों ने पाकिस्तान के साथ परमाणु व्यापार को उचित ठहराया है, जो की भारत-अमेरिका
परमाणु समझौते की ओर इशारा करते हुए जारी रक्खा है हालाँकि, महत्वपूर्ण अंतर हैं।
भारतीय मामला: भारत और अमेरिका को अपने नागरिक परमाणु समझौते के लिए एनएसजी से छूट
मांगनी पड़ी, जो वर्ष 2008 में दी गई, जिससे भारत के लिए वैश्विक परमाणु वाणिज्य में प्रवेश का
मार्ग प्रशस्त हुआ।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के सुरक्षा उपायों के तहत सुविधाओं को रखने,
नागरिक और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करने और परीक्षण पर निरंतर रोक जैसी कई
प्रतिबद्धताएं निभाईं हैं।
चीन ने न तो एनएसजी से ऐसी कोई छूट मांगी है और न ही पाकिस्तान ने ऐसी कोई प्रतिबद्धता जताई
है। चीन ने सुझाव दिया है कि रिएक्टरों को IAEA सुरक्षा उपायों के तहत रखा जाना पर्याप्त होगा।
निहितार्थ: विशेषज्ञों को डर है कि नवीनतम सौदों ने परमाणु वाणिज्य को नियंत्रित करने वाले वैश्विक
नियमों को और कमजोर कर दिया है, और एनएसजी की निरंतर प्रासंगिकता, भविष्य और वैश्विक
परमाणु वाणिज्य के शासन दोनों के बारे में भी सवाल उठाए हैं।
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG)
यह परमाणु सामग्री का व्यापार करने वाले प्रमुख देशों का एक स्वैच्छिक, गैर-कानूनी रूप
से बाध्यकारी संघ है और इसकी स्थापना वर्ष 1974 में की गई थी।
एनएसजी का संयुक्त राष्ट्र से कोई औपचारिक संबंध नहीं है, लेकिन इसकी गतिविधियां
परमाणु अप्रसार और निर्यात नियंत्रण के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों में योगदान करती
हैं।
चीन-पाकिस्तान परमाणु समझौता
यह कैसे अस्तित्व में आया?
वर्ष 1970 एनपीटी पर हस्ताक्षरकर्ताओं ने गैर-परमाणु हथियार वाले देशों को परमाणु
सामग्री और विशेष परमाणु उपकरणों के निर्यात पर और अधिक सुरक्षा उपाय लागू करने
की आवश्यकता महसूस की।
परमाणु निर्यात नियंत्रण पर बहुपक्षीय परामर्श अलग-अलग तंत्रों के तहत जारी रहा।
भारत का वर्ष 1974 का पोखरण परमाणु परीक्षण एक ट्रिगर था, क्योंकि इसने यकीनन
प्रदर्शित किया कि कुछ गैर-हथियार प्रौद्योगिकी को विशिष्ट हथियार में बदला जा सकता
है। इसलिए वर्ष 1974 में एनएसजी बनाया गया।
सदस्य: एनपीटी पर हस्ताक्षरकर्ता एनएसजी में शामिल हो सकते हैं। यह सर्वसम्मति के आधार
पर काम करता है, यानी किसी भी निर्णय को सभी सदस्य देशों द्वारा अनुमोदित किया जाना
आवश्यक है। इसमें वर्तमान में 48 सदस्य हैं, जो परमाणु वाणिज्य में संलग्न रहते हुए प्रसार
को रोकने के लिए स्वीकृत दिशानिर्देशों पर काम करते हैं।
भारत की सदस्यता का मामला कहां खड़ा है?
एनपीटी पर गैर-हस्ताक्षरकर्ता होने के कारण, भारत को आम तौर पर एनएसजी सदस्यता के लिए
विचार नहीं किया जाता है।
वर्ष 2006 के भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के बाद, अमेरिका ने देश के त्रुटिहीन
रिकॉर्ड का हवाला देते हुए, भारत के लिए एक अपवाद की कड़ी पैरवी की।
2008 में, एनएसजी सदस्यों ने गैर-एनपीटी देशों के साथ कोई परमाणु व्यापार नहीं करने की पैरवी की RELATED LINK