मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ
सुर्खियों में क्यों?
मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ तमिलनाडु में राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा एक मंत्री को बर्खास्त तथा निलंबित किये जाने के हालिया
निर्णय ने संवैधानिक विवाद को जन्म दे दिया है। हालाँकि बाद में राज्यपाल ने अपना निर्णय बदल दिया
और बर्खास्तगी आदेश को स्थगित कर दिया।
मामला क्या है?
- बिना पोर्टफोलियो वाले राज्य मंत्री वी. सेंथिलबालाजी अस्पताल में हैं और न्यायिक हिरासत में हैं।
- तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने वी. सेंथिलबालाजी को बर्खास्त करने का कारण बताते हुए
कहा कि मंत्रिपरिषद में मंत्री के बने रहने से कानून की उचित प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- बाद में राज्यपाल देर रात अपने फैसले से पीछे हट गए और 'बर्खास्तगी' आदेश को स्थगित रखा।
राज्यपाल का कदम खतरनाक और असंवैधानिक क्यों है?
- राज्यपाल का कदम अभूतपूर्व और जानबूझकर उकसाने वाला है।
- राज्य के मुख्यमंत्री की अनुशंसा के बिना किसी मंत्री को बर्खास्त करने का कृत्य एक खतरनाक
मिसाल कायम करेगा।
- यदि राज्यपालों को अपने विवेक से व्यक्तिगत मंत्रियों को बर्खास्त करने की शक्ति का प्रयोग करने
की अनुमति दी गई तो पूरी संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।
- इसमें संघीय व्यवस्था को खतरे में डालकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने की क्षमता है।
स्वतंत्र भारत में राज्यपाल का पद क्या है?
- भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के तहत, राज्यपाल केवल एक संवैधानिक प्रमुख होता है जबकि वास्तविक
शक्ति राज्य के मुख्यमंत्री के पास होती है।
- वह केवल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य कर सकता है।
- बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि ऐसा कोई कार्यकारी कार्य नहीं है
जिसे राज्यपाल संविधान के तहत स्वतंत्र रूप से कर सके।
- शक्तियाँ – वह संघ और राज्य सरकार के बीच महत्वपूर्ण कड़ी है।
- उसे संवैधानिक और परिस्थितिजन्य विवेकाधीन दोनों शक्तियां प्राप्त हैं।
- उनके पास अनुच्छेद 167, अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 356 के तहत संवैधानिक विवेकाधीन शक्तियां
हैं।
- राज्यपाल अनुच्छेद 213 के तहत राज्य विधानमंडल के अवकाश के दौरान अध्यादेश प्रख्यापित करता
है।
भारतीय संविधान के तहत मंत्रियों की बर्खास्तगी कैसे की जाती है?
- संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा बिना किसी की सलाह के
की जाती है।
- नियुक्ति – राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही व्यक्तिगत मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- अनुच्छेद का तात्पर्य है कि राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार किसी व्यक्तिगत मंत्री को नियुक्त नहीं
कर सकता है।
- अपने मंत्रियों को चुनने का विवेक केवल मुख्यमंत्री के पास है।
- बर्खास्तगी – तार्किक रूप से, राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही किसी मंत्री को बर्खास्त कर
सकता है।
- संविधान ने मुख्यमंत्री के विवेक को राज्यपाल को हस्तांतरित नहीं किया है।
औपनिवेशिक शासन के दौरान बर्खास्तगी की शक्ति क्या थी?
- भारत सरकार अधिनियम 1935 राज्यपाल को मंत्रियों को चुनने के साथ-साथ बर्खास्त करने का पूर्ण
विवेकाधिकार प्रदान करता है।
- नियुक्ति – इस अधिनियम की धारा 51(1) के तहत कहा गया है कि मंत्रियों को राज्यपाल द्वारा चुना
जाएगा और वे उसकी इच्छानुसार पद पर बने रहेंगे।
- इसमें कहा गया है की राज्यपाल द्वारा मंत्रियों को उनके द्वारा चुना जाएगा और बुलाया जाएगा,
उन्हें परिषद के सदस्यों के रूप में शपथ दिलाई जाएगी और उनकी इच्छा तक पद पर बने रहेंगे।
- बर्खास्त – राज्यपाल द्वारा चुने गए मंत्रियों को वह अपने विवेक से बर्खास्त कर सकता है।
- धारा 51(5) के अनुसार इस धारा के तहत मंत्रियों को चुनने, बुलाने और बर्खास्त करने तथा उनके
वेतन के निर्धारण के संबंध में राज्यपाल के कार्यों का प्रयोग वह अपने विवेक से करेगा।
राज्यपाल की स्थिति पर न्यायिक स्पष्टीकरण क्या हैं?
- भारत की संवैधानिक व्यवस्था में राज्यपाल की स्थिति को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई
मामलों में स्पष्ट किया गया है।
- शमशेर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य (1974) – संविधान पीठ ने राज्यपाल की शक्तियों पर
कानून घोषित किया।
- राज्यपाल और विभिन्न अनुच्छेदों के तहत उनकी शक्तियां, इन प्रावधानों के आधार पर, केवल अपनी
औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करेंगी।
- नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामला – पीठ ने शमशेर सिंह मामले में निर्धारित कानून की फिर
से पुष्टि की।
- इसमें आगे कहा गया कि राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां अनुच्छेद 163(1) के प्रावधानों तक
सीमित है।
स्रोत: द हिंदू
मंत्री को बर्खास्त
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